- रंगमंच को सिर्फ सीखने माध्यम मानता है यूथ

- अधिकांश युवा बॉलीवुड में तलाशते हैं करियर

Meerut- रंगमंच को आज केवल सीखने का माध्यम समझा जाता है यूथ केवल फिल्मी दुनियां में ही अपना करियर बनाना पसंद करता है। अब लोग रंगमंच को भी गलत दिशा में ही देखना पसंद करते हैं। क्योंकि उन्हें सही दिशा में परोसा ही नहीं जा रहा है। मेरठ में यूथ अभी भी रंगमंच से अछूता है। शहर में शिक्षा के मंदिर से रंगमंच का लुप्त होना भी बड़ा कारण बताया जा रहा है।

शिक्षा से रंगमंच लुप्त

स्कूल-कॉलेजों से नाट्यकला लुप्त हो चली है। में माध्यमिक शिक्षा परिषद, सीबीएसई व विवि से संबद्ध डिग्री व तकनीकी कॉलेजों की संख्या 400 से अधिक है। अकेले माध्यमिक शिक्षा परिषद के स्कूलों की संख्या 300 सौ से अधिक हैं। अधिकतर में संगीत के शिक्षक नहीं हैं। एक्सपर्ट की मानें तो सीबीएसई के नाट्य विषय को कक्षा-12 में लागू किए जाने के बाद स्थिति में सुधार की उम्मीद जगी है। सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए कुछ स्कूलों ने डांस टीचर्स नियुक्त किए है। डिग्री कॉलेजों में हालात तो बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं। प्राइवेट कॉलेजों ने संगीत विषय से किनारा कर रखा है। हालांकि कालेजों में सांस्कृतिक परिषद गठित है, लेकिन छात्र-छात्राओं से वसूली जाने वाली फीस अन्य मद में खर्च कर दी जाती है।

गलत दिशा भी कारण

एक्सपर्ट की माने तो रंगमंच में अब कोई भी कुछ करना नहीं चाहता है। अब हर कोई गलत दिशा की तरफ जा रहा है और वहीं देखना चाहता है जो फिल्मों में परोसा जा रहा है। पहले धार्मिक नाटक, शिक्षाप्रद नाटकों को ही रंगमंच पर परोसा जाता था। एक्सपर्ट की माने तो कुछ लोग रंगमंच पर ऐसी चीजें परोसने लगे हैं जो यूथ को गलत दिशा की तरफ ले जा रही हैं। शायद इसीलिए शहर के यूथ में अभी रंगमंच के प्रति क्रेज नहीं बढ़ रहा है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

रंगमंच को सीखने का साधन माना जाता है। इसके बाद सभी फिल्मी दुनियां की चकाचौंध में ही करियर बनाना चाहते हैं। शहर के यूथ में रंगमंच के प्रति क्रेज नहीं है। इसका बड़ा कारण यह है कि कुछ लोग रंगमंच के माध्यम से यूथ को भटका रहे हैं।

-शांति वर्मा, उपाध्यक्ष उत्तर प्रदेश, इप्टा

ऐसा नहीं है कि यूथ रंगमंच से बिल्कुल ही दूर हैं, लेकिन स्कूल व कॉलेजों में संगीत के शिक्षकों की कमी होना रंगमंच की पूरी व सही जानकारी न होना यह भी कारण है। अभी भी यूथ को रंगमंच के प्रति कम रूचि है। लेकिन धीरे-धीरे यूथ में रूचि आने लगी है।

-सुरेंद्र कौशिक, मुक्ता आकाश नाट्य संस्था

वास्तव में यूथ रंगमंच से परे नहीं है, हकीकत तो यह हैं कि आजकल का यूथ इसके बारे में भली भांति परिचित नहीं है। किसी भी चीज में तभी रुची बनती हैं जब हमें उसके बारे में पूरी नॉलेज हो। जिसका प्रयास अब सीबीएसई कर रहा है।

-राहुल केसरवानी, सहोदय सचिव

ऐसा नहीं है कि यूनिवर्सिटीज व कॉलेजेज में इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। कई बार यूनिवर्सिटी लेवल पर होने वाले कार्यक्रमों में स्टूडेंट्स द्वारा नाटक आदि प्रस्तुत किए जाते हैं।

-डॉ। इंदु शर्मा, प्रिंसिपल इस्माईल पीजी कॉलेज