-बरसात में बढ़ जाता है जर्जर मकानों के गिरने का खतरा

-शहर में मौजूद हैं सैकड़ों जर्जर मकान

VARANASI : बरसात में शहर की गलियों और रोड पर जरा संभल करना चलिएगा। यहां सैकड़ों जर्जर मकान मौजूद हैं। ये एक वक्त मकान थे लेकिन अब मौत का सामान बन चुके हैं। गाहे-बगाहे इनका कोई न कोई हिस्सा ढहता रहता है। इसकी चपेट में आने से कभी किसी की जान जाती है तो कभी किसी का हाथ-पैर टूटता हैं। जर्जर मकानों की दुश्मन बरसात एक बार फिर आ पहुंची है। इसके आने के साथ ही जर्जर मकानों के गिरने का सिलसिला तेज हो जाएगा। साथ ही जानें भी जाएंगी लेकिन निगम को इसकी कोई फिक्र ही नहीं है। जर्जर मकानों को लेकर ओनर्स भी बहुत सीरियस नहीं हैं। वह जर्जर मकानों को ढहाने का उपाय नहीं कर रहे हैं। इनकी वजह से लोगों की जान जा रही है।

हर जगह मौजूद हैं जर्जर मकान

शहर के अलग-अलग हिस्सों में जर्जर मकानों की संख्या चार सौ से अधिक है। इनमें से अधिकतर गंगा किनारे बसे पुराने इलाकों में हैं। नगवां, अस्सी, शिवाला, सोनारपुरा, पाण्डेय हवेली, दशाश्वमेध, चौक एरिया में ढेरों जर्जर मकान मौजूद हैं। इनके साथ पुरानी बस्तियों खोजवां, रेवड़ी तालाब, भेलूपुर, कमच्छा, मैदागिन, विश्वेश्वरगंज एरिया में ढेरों पुराने और जर्जर हो चुके मकान मौत का सामान बनकर खड़े हैं। जर्जर मकानों को लेकर नगर निगम कितना गंभीर है इस बात का अंदाज इसी से लगता है कि एक अरसे से इनका सर्वे नहीं किया गया है। नगर निगम के पास क्फ्ब् जर्जर मकानों की ही सूची है। इनमें से सबसे अधिक तीन दर्जन जर्जर मकान चौक एरिया में हैं। आदमपुर, कोतवाली और दशाश्वमेध में डेढ दर्जन मकानों की हालत ठीक नहीं है। चेतगंज में क्क्, भेलूपुर में दस, जैतपुरा में आठ, सिकरौल और शिवपुर छह-छह मकान खतरनाक हालत में हैं।

सबके लिए बने हुए हैं खतरा

-जर्जर मकान सिर्फ शहरवासियों के लिए खतरनाक नहीं हैं दूर-दराज से बाबा काशी विश्वनाथ के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी घातक हैं

-विश्वनाथ मंदिर एरिया में भी तमाम जर्जर मकान हैं। तारकेश्वर मंदिर के आसपास, लाहौरी टोला, नीलकंठ और कालिका गली में जर्जर मकानों की संख्या अधिक है

-कुछ साल पहले ढुंढिराज गणेश पॉइंट के पास जर्जर मकान का हिस्सा अचानक गिर जाने से दो श्रद्धालुओं की मौत हो गयी थी

-रेड जोन में शनिदेव मंदिर के पास भी एक जर्जर मकान का हिस्सा ढह गया था। आए दिन हो रही ऐसी घटनाओं से लोग चोटिल हो रहे हैं।

आसान नहीं है इनको गिराना

जर्जर मकानों को गिराना आसान नहीं है। अधिकतर मकान संकरी गलियों में हैं। यहां तक जेसीबी मशीन नहीं पहुंच सकती है। मकानों के अगल-बगल अन्य रिहायशी बिल्डिंग्स भी हैं। जर्जर मकानों को गिराने के दौरान इनके गिरने का खतरा बना रहता है। सबसे बड़ी मुसीबत मकानों के विवाद को लेकर है। कई पुराने मकान ऐसे हैं जिनमें एक अरसे से किरायेदार रह रहे हैं। ओनर के साथ कोर्ट में उनका मुकदमा चल रहा है।

बेहद घातक है बारिश का मौसम

-जर्जर मकानों के लिए बरसात बेहद घातक होती है। मकानों के गिरने के सबसे अधिक मामले इसी सीजन में होते हैं

-आसमान से लगातार गिरते पानी से मकान का जर्जर हिस्सों का जोड़ ढीला हो जाता है और ढह जाता है

-मॉनसून ने सिटी को सराबोर करना भी शुरू कर दिया है। आसमानी पानी रिसते हुए जर्जर मकानों के अंदर पहुंच रहा है। ईट-पत्थरों के जोड़ को ढीला कर दे रहा है

-यह तो बरसात की शुरुआत है। जब भी लगातार देर तक बारिश होगी तो जर्जर मकानों का गिरना तय है

-संकरी गली या चलते रास्ते पर जर्जर मकान का मलबा गिरा तो कई लोग इसकी चपेट में आएंगे

जर्जर मकानों को लेकर नगर निगम प्रशासन गंभीर है। उनकी लिस्ट तैयार करायी गयी है। खतरनाक हो चुके जर्जर मकानों को गिराने का काम चल रहा है। मकान मालिकों को से भी इस काम में सहयोग लिया जा रहा है।

बीके द्विवेदी

अपर नगर आयुक्त