- 68वें गणतंत्र दिवस के मौके पर भी बनारस की सेंट्रल जेल में बंद कैदियों में 221 को है लंबे वक्त से आजादी की आस

- सामाजिक संस्था द्वारा मांगी गयी आरटीआई में हुआ खुलासा, सभी पार कर चुके हैं 70 वर्ष की अवस्था

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रात दिन के बीच का फर्क इनके लिए सिर्फ रोशनी और अंधेरे का होना भर है। इनके लिए जिंदगी का मतलब सांसे लेना भर रह गया है वह भी सलाखों के कैदखाने में। जुर्म किया था तो सजा मिली है। जिस सजा को उम्र के 70वें पायदान पर होने के बाद भी काट रहे हैं। अब तो लगता है इन्हें आजादी मौत ही देगी। लेकिन फिर भी इनके मन में कहीं न कहीं खुली हवा में सांस लेने की आस अब भी बरकरार है। हम बात कर रहे हैं बनारस की सेंट्रल जेल में बंद 221 कैदियों की। जेल में बंद ऐसे बुजुर्ग कैदियों की जो 70 वर्ष की उम्र सीमा पार कर जाने के बाद भी आज तक जेल में ही हैं और हर पल देख रहे हैं अपनी रिहाई का सपना।

आरटीआई से मांगी जानकारी

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र काशी के केन्द्रीय कारागार में बन्द ऐसे 221 कैदियों को आज भी इन्तजार है अपनी रिहाई का। सामाजिक संस्था लोक चेतना के अध्यक्ष केके उपाध्याय द्वारा आरटीआई के माध्यम से मांगी गयी जानकारी में केन्द्रीय कारागार के वरिष्ठ अधीक्षक ने जो सूचना दी है उससे यह पता चलता है कि सरकारें ऐसे मामलों में अब तक सुस्त हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार केन्द्रीय कारागार में विश्वनाथ, भृगु, रामचंदर, रामहित उर्फ चिरकुट, रम्मन उर्फ बीपत, रामदयाल, भगेलू, पड़ोही, परदेशी व छोटेलाल जैसे कैदी वर्ष 1974 से जेल में सजा काट रहे हैं और 70 वर्ष से अधिक की उम्र पारकर चुके हैं। वहीं अच्छेलाल नामक कैदी 1976 से जेल की सजा काट रहा है लेकिन इनकी रिहाई नहीं हो सकी है। आंकड़ों पर गौर किया जाय तो कुल 221 कैदी ऐसे हैं जिन्होंने 70 वर्ष या इससे अधिक की उम्र पार कर चुके हैं लेकिन आज भी अपनी आजादी की बाट जोह रहे हैं।

सरकार कर सकती है फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा था कि 70 वर्ष की आयु सीमा पार कर चुके कैदियों को मानवीय आधार पर छोड़ दिया जाना चाहिए। इस मामले में एक जनहित याचिका दाखिल होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए इसे राज्य सरकार के विवेक पर छोड़ते हुए निर्णय दिया कि राज्य सरकार चाहे तो ऐसे कैदी जो 70 वर्ष की उम्र सीमा पार कर चुके हैं अपने विवेकानुसार निर्णय लेते हुए छोड़ सकती है। जिसके बाद जेल प्रशासन की ओर से ऐसे कैदियों की सूची समय समय पर राज्य सरकार को प्रेषित कि जाती है। जिससे सरकार उनकी रिहाई का निर्णय ले सके।