17 की उम्र में पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए थे रबींद्रनाथ टैगोर
कानपुर। रबींद्रनाथ टैगोर को गुरुदेव भी कहा जाता है। इनका जन्म 7 मई 1861 में कोलकाता में जोरासंको हवेली में हुआ था। इनके पिता का नाम देबेंद्रनाथ टैगोर और माता का नाम सरादा देवी था। इनकी शुरुआती पढ़ाई तो भारत में हुई लेकिन 17 की उम्र में यह इंग्लैंड चले गए थे। इसके कुछ वर्षों बाद इनकी साहित्यिक गतिविधियां बढ़ीं। इन्होंने परिवार को संभालने के साथ ही अपनी रुचि के मुताबिक सामाजिक सुधारों में भी विशेष भूमिका अदा करने लगे।

साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले ये पहले गैर-यूरोपीय शख्स हुए
इसके बाद आम जनमानस से इनके संपर्क का दायरा काफी तेजी से बढ़ने लगा था। रबींद्रनाथ टैगोर ने 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीता था। खास बात तो यह है साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले ये पहले गैर-यूरोपीय शख्स हैं। रबींद्रनाथ टैगोर पहले ऐसे शख्स हुए जिनकी दो रचनाएं दो देशों में नेशनल एंथम यानी कि राष्ट्रगान के रूप में गाई जाती हैं। इसमें एक भारत का जन गण मन...और बांग्लादेश का अमार शोनार बांग्ला...गाया जाता है।

टैगोर की बेहतरीन कविताओं की लिस्ट में शामिल हैं ये कविताएं
टैगोर की  बेहतरीन कविताओं में द फाइनेस्ट आर मानसी (1890), सोनार तार (1894), गीतांजली (1910), और बालाका (1916) और प्लेज सच ऐज राजा (1910), डाकघर (1912), अचलयाटन (1912), मुक्तिधरा (1922) और रकतकारवी (1926) आदि हैं। इसके अलावा इन्होंने कई लघु कथाओं और उपन्यासों की भी शानदार रचना की थी। इनमें गोरा (1910), घारे-बायर (1916) और योगयोग (1929 प्रसिद्ध हुए।

एक भारतीय ज‍िनके ल‍िखे गीत दो मुल्‍कों के बने राष्‍ट्रगान,जन गण मन और अमार शोनार बांग्ला

जीवन के आखिरी समय में अपने अंदर के चित्रकार को भी उभारा था
रबींद्रनाथ टैगोर ने इसके अलावा संगीत नाटक, नृत्य नाटक एवं सभी प्रकार के निबंध, यात्रा डायरी के साथ ही दो आत्मकथाएं भी लिखीं। खास बात तो यह है कि दूसरी आत्मकथा इन्होंने 1941 में दुनिया से अलविदा कहने से कुछ समय पहले ही लिखी थी। इतना ही नहीं रबींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन के आखिरी 17 वर्षों में अपने अंदर के चित्रकार को भी जीवित कर दिया था। बतादें कि शुरू से ही उनका सपना खुद को एक चित्रकार के रूप में भी उभारने का का था।

टैगोर ने 1921 में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की थी
गुरुदेव 2,230 गानों के साथ शानदार संगीतकार भी हुए। इन गानों को 'रवींद्रसंगीत' के नाम से भी जाना जाता है। कम ही लोगों को पता होगा कि प्रसिद्ध अनुभवी बॉलीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर रबींद्रनाथ टैगोर की दूर की रिश्तेदार हैं। पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन को रबींद्रनाथ टैगोर का शहर भी कहा जाता है। यहां जगह बड़ी संख्या में पयर्टकों को आकर्षित करती है। खास बात तो यह है कि टैगोर ने 1921 में यहां पर विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।

सरकार ने टैगोर की रचनाओं को ऑनलाइन करने की घोषणा की
ऐसे में आज यहां संगीत, कला और साहित्य का अनोखा मिश्रण दिखता है। साहित्य प्रेमियों के लिए यह जगह काफी अच्छी मानी जाती हैं। वहीं बतादें कि वहीं टैगोर की 152 वीं जयंती पर, भारत सरकार ने घोषणा की थी कि आने वाले समय में उनका पूरा साहित्यिक कार्य ऑनलाइन उपलब्ध हो जाएगा। इससे पाठकों को इनकी रचनाएं डिजिटल प्रिंट में पढ़ने को मिलेंगी। ऑनलाइन में इनकी विविध रचनाएं दो भाषाओं बंगाली के साथ-साथ अंग्रेजी में भी उपलब्ध होंगी।  

साभार मिड-डे
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