चौंके बिना नहीं

शहर के नर्वल में स्थित ‘जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान’ (डायट), पांच प्राइवेट कॉलेजों और प्रदेश भर के कुल 63 कॉलेजों के कैंपस में बीटीसी की क्लासेज शुरू हो चुकी हैं। सुनने में तो ये साधारण सी बात लग रही है। लेकिन डायट सहित इनमें से किसी भी कॉलेज में सैटरडे से शुरू हुई क्लासेज में जाकर देखने वाला कोई भी व्यक्ति चौंके बिना नहीं रहेगा। इस बैच के बीटीसी स्टूडेंट्स की क्वालीफिकेशंस, मेल-फीमेल रेशियो आदि को देखकर किसी को भी बड़ा बदलाव महसूस होगा। ह्यूमन रिसोर्स एक्सपट्र्स का भी यही कहना है कि जॉब और प्रोफेशन के मामले में सोसाइटी का ट्रेंड  एकदम से ‘रिवर्स’ मोड में आ गया है।  

बस टीचर बनना मांगता

दरअसल दो वर्ष पूूर्व ही स्टेट गवर्नमेंट ने प्राइवेट कॉलेजों को अपने यहां बीटीसी कोर्स संचालित करने की परमीशन दी थी। इस बार दूसरा ही बैच है। क्लासेज शुरू होते ही डायट के टीचर्स, बीटीसी कॉलेजों के प्रिंसिपल और प्रबंधकों ने एक हैरतंगेज खुलासा किया। उनके अनुसार दाखिला लेने वालों में से 50 से 60 फीसदी स्टूडेंट्स इंजीनियर, एमबीए, कंप्यूटर एक्सपर्ट जैसे प्राफेशनल्स हैं। वो अपनी बेहद हैक्टिक, कम वेतन वाली जॉब्स छोडक़र ‘सुकून की सरकारी नौकरी की आस में’ बीटीसी करने चले आए हैं। कई ऐसे भी हैं जिन्होंने हाल में ही शहर या आसपास के संस्थानों से बीटेक, एमटेक, एमसीए, एमबीए जैसे कोर्सेज कंप्लीट किए, पर कहीं, किसी प्राइवेट कंपनी में साधारण सी ‘इनसेक्योर’ जॉब करने में मन नहीं लगा। इसके चलते वो सरकारी टीचर बनने की उम्मीद लिए उन्होंने दो साल के बीटीसी कोर्स में दाखिला ले लिया। वो बीटीसी करने के लिए दूर-दराज स्थित रूरल एरियाज तक के कॉलेजों में दाखिला लेकर पढऩे जा रहे हैं। दूसरा इंट्रेस्टिंग फैक्ट ये है कि जहां पहले टीचिंग जॉब के लिए लड़कियों की संख्या ज्यादा होती थी, इस बार लडक़ों की संख्या ज्यादा है जो कि कुल का लगभग 60 फीसदी है।

यहां 40 में से 11 तो बीटेक पास हैं

घाटमपुर के सांखाहारी एरिया में स्थित श्री शक्ति डिग्री कॉलेज के बीटीसी कोर्स के लेक्चरर्स अरबिंद मिश्रा, राजकुमार शर्मा, आशुतोष शुक्ला आदि ने बताया कि सैटरडे को इंडक्शन के पहले दिन वो ये जानकार हैरत में आ गए कि कॉलेज की 50 बीटीसी सीटों में से 40 पर एडमीशन हुए, लेकिन इन चालीस में से राहुल गुप्ता, मोहित सिंह, राकेश यादव, अभिषेक दीक्षित, पुनीत तिवारी, आकांक्षा, रचना सचान, निधि तिवारी, बीथिका शुक्ला, दीपा देवी आदि 11 स्टूडेंट्स बीटेक पास हैं। तीन-चार एमबीए-बीबीए किए हैं तो वहीं बाकी में कई जर्नलिज्म, कंप्यूटर हार्डवेयर इंजीनियरिंग जैसे प्रोफेशनल कोर्स किए हैं। इतना ही नहीं, इनमें लगभग आधा दर्जन स्टूडेंट्स ऐसे हैं तो 12 से 15 हजार रुपए इनीशियल सैलरी वाली अपनी जॉब छोडक़र टीचर बनने को आए हैं।

डायट ही नहीं, सभी जगह

बिठूर स्थित बंसी कॉलेज के प्रबंधक मयंक अग्निहोत्री और शहीद भगत सिंह कॉलेज के मैनेजर विमल दीक्षित ने भी इस फैक्ट पर मुहर लगा दी। मयंक के अनुसार उनके कॉलेज के कुल बीटीसी स्टूडेंट्स में लगभग 55 फीसदी ऐसे हैं जिन्होंने अपनी अच्छी खासी जॉब और प्रोफेशनल कोर्सेज छोडक़र दाखिला लिया है। ये तो रही तीन बीटीसी कॉलेजों की बात। बाकी के दो कॉलेजों (कानपुर नगर में कुल पांच कॉलेजों में बीटीसी चल रहा है) के प्रबंधन ने भी इस बात पर मुहर लगा दी कि वाकई जॉब और प्रोफेशनल के इस ट्रेंड में ‘रिवर्स गियर’ लग गया है।

ये है इन स्टूडेंट्स की थिंकिंग

इस 2012-13 बीटीसी बैच के स्टूडेंट्स में से अधिकांश ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि एमबीए, एमसीए या बीटेक करके प्राइवेट सेक्टर में हाई सैलरी पैकेज नहीं मिलते। प्राइवेट सेक्टर के जॉब में चैलेंज, बिजी शेड्यूल, टेंशन और डायनेमिज्म तभी पसंद आता है, जब सैलरी खूब हो और जॉब सिक्योर हो। पर ऐसा कतई नहीं है। कंपटीशन, काम और जिम्मेदारी बहुत ज्यादा बढ़ गई। लेकिन सैलरीज घट गईं। रिसेशन या गड़बड़ समय पर स्किल्ड लोगों की भी जॉब्स सुरक्षित नहीं। ऐसे में सरकारी जॉब ही सिक्योर और आराम की महसूस होती है। टीचिंग में खास ये है कि सुबह जाओ और शाम या दोपहर को घर में टाइम बिताओ। बैंक्स वगैरह की जॉब्स के लिए भी तगड़ा कॉम्प्टीशन हो गया है।

सबको दिख रही सरकारी जॉब की गारंटी!

सेल्फ फाइनेंस कॉलेज एसोसिएशन के स्टेट प्रेसीडेंट विनय त्रिवेदी के अनुसार शहर के पांच और प्रदेश भर के उन सभी 63 कॉलेजों में बीटीसी के इस इस बैच के ट्रेंड में रिवर्स गियर लगा दिख रहा है। लगता है 90 के दशक की सिक्योर फ्यूचर और आराम की नौकरी वाली मानसिकता लौट आई है।

दरअसल सबको मालूूम है कि प्रदेश भर के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में इस वक्त शिक्षकों की लगभग 2.5 लाख पद खाली पड़े हैं। जबकि उनको भरने के लिए बीटीसी पास एलिजिबिल लोग ही नहीं हैं। बीटीसी कोर्स में प्रदेश भर के डायट में कुल 10 हजार सीटें भी नहीं। 63 प्राइवेट कॉलेजों में तो प्रति कॉलेज केवल पचास ही सीटें, यानि कि तीन हजार से कुछ ही ज्यादा सीटें हैं। जरूरत लाखों की और प्रोड्यूस हो पा रहेे हर साल केवल चंद हजार टीचर्स। इसलिए बीटीसी करने के बाद, ‘टीईटी’ (टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट) पास करके ये सभी सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 25 से 28 हजार रुपए पाने वाले सहायक अघ्यापक बन सकते हैं।

टीईटी कोई बाधा नहीं, अगर

टीचर्स का कहना है कि बीटीसी करने वालों को टीईटी जैसे कंपल्सरी एग्जाम से कतई डरने की जरूरत नहीं हैं। बंसी कॉलेज के मैनेजर मयंक के अनुसार अगर स्टूडेंट बीटीसी की पढ़ाई ही ठीक से कर ले, क्लासेज अटेंड करता रहे तो टीईटी की अलग से किसी तैयारी की जरूरत नहीं है। येे केवल एक  क्वालिफाइंग एग्जाम ही है। अगर पढ़ाना सीख लिया है तो चुटकियों में ये क्लियर हो जाता है।

जल्द ही बीटीसी के 450 कॉलेज और

बीटीसी की इतनी डिमांड देेखकर संबद्धता और मान्यता के लिए सैकड़ों एप्लीकेशंस स्टेट गवर्नमेंट और एनसीटीई (नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजूकेशन) के पास एप्लीकेशंस का तांता लगा गया है। लगभग 250 कॉलेज एनसीटीई सेे मान्यता मिलने के बाद संबद्धता लेने की कतार में खड़े हैं, तो वहीं 200 कॉलेजों की मान्यता की एप्लीकेशन दे रखी है।