ये कमेटी सुसाइड करने की वजह तलाशने के साथ ही सुझाव भी देगी, जिससे इसको रोका जा सके। सुसाइड रोकने के लिए बनाई गई कमेटियों के सुझाव पर अगर आईआईटी एडमिनिस्ट्रेशन ने अमल किया होता तो शायद माहताब जिंदगी की जंग न हारता। इस बार फिर माहताब के सुसाइड के बाद कमेटी तो बना दी गई है। मगर, आईआईटी के सुसाइड्स रिकॉर्ड को देखकर यह कहना मुश्किल होगा कि इस कमेटी के सजेशन्स को माना जाएगा.

नहीं होता सिफारिशों पर अमल

आईआईटी में जब कोई स्टूडेंट सुसाइड करता है तो तुरंत एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन कर दिया जाता है। जांच के बाद कमेटी कुछ सजेशन्स भी देती है, जिन्हें जल्द से जल्द इम्प्लीमेंट करने को कहा जाता है। कमेटी की सिफारिशें मीडिया को नहीं बताईं जाती हैं। कमेटी का शायद ही कोई ऐसा सजेशन होगा, जिस पर अमल किया गया हो। एक्जाम्पल के तौर पर बीटेक स्टूडेंट माधुरी साले का केस ही ले लीजिए। इस केस की जांच के लिए बनी  कमेटी ने कई सिफारिशें की थीं। कमेटी ने कहा था कि स्टूडेंट्स के रूम्स में लगे सीलिंग फैन्स हटाकर ऑप्शनल अरेंजमेंट्स किए जाएं। यही नहीं ऐसे कई सजेशन्स दिए गए थे लेकिन इनको नजरअंदाज कर दिया गया। कई कमेटियां यह सजेशन दे चुकी हैं कि सीलिंग फैन को हटा दिया जाए.

तो फिर fan बन रहा है वजह

छह सालों में आईआईटी कैम्पस में नौ स्टूडेंट्स ने सुसाइड किया। इनमें से छह स्टूडेंट्स ऐसे हैं जिन्होंने फांसी लगाने के लिए सीलिंग फैन का सहारा लिया। खुद आईआईटी की सीनियर फैकल्टी मेम्बर्स का मानना है कि अगर कमेटी की सिफारिशों पर अमल कर लिया जाता तो शायद माहताब को सुसाइड के लिए कोई प्वाइंट नहीं मिलता। वक्त बीतने पर उसके मन में चल रही उलझन भी खत्म हो जाती और शायद उसकी जान बच जाती। टोया चटर्जी के केस में भी कुछ यही हुआ था। जांच के लिए कमेटी बनी लेकिन उसकी सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया गया. 

ये तो possible ही नहीं

आखिर कमेटीज के सजेशन्स पर अमल क्यों नहीं किया जाता? सीलिंग फैन का ऑप्शनल अरेंजमेंट करने के लिए खुद आईआईटी ने हामी भरी थी। फिर बाद में ऐसा क्या हो गया कि इन फैन्स को नहीं हटाया गया। इस सवाल के जवाब पर आईआईटी के रजिस्ट्रार संजीव एस कशालकर का कहना है कि ऐसा पॉसिबल नहीं हो सकता है। अगर किसी स्टूडेंट को सुसाइड करना होगा तो वो कोई न कोई नया तरीका खोज लेगा। हालांकि, वो इस बात का जवाब नहीं दे सके कि आखिर फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की सिफारिशों को क्यों नहीं माना जाता है। सूत्रों का कहना है कि ऐसा तो नहीं है कि जिन लोगों को जांच का जिम्मा दिया जाता है वो इतने कैपेबल ही नहीं होते हैं कि स्टैंडर्ड सजेशन्स दे सकें और उनसे आईआईटी में बढ़ रहे सुसाइड के मामलों पर रोक लग सके.