ये है मरीज

दौराला के मटौर निवासी गजेंद्र पाल सिंह का कहना है कि उन्होंने अपनी पत्नी अनीता को बुखार के चलते तीन डॉक्टर्स डॉ। विशाल चौधरी, डॉ। आशुतोष और डॉ। परमवीर चौहान से संपर्क किया था। डॉक्टर्स ने लैब पर खून चेक कराकर प्लेटलेट्स काउंट कराने को कहा। गजेंद्र ने एक एजेंट के जरिए अपनी पत्नी के ब्लड जांच को खून निकलवाया।

तीन लैब पर रिपोर्ट

गजेंद्र के अनुसार यह तीनों सैंपल उन्होंने आशीर्वाद पैथोलॉजी लैब, सिरोही पैथोलॉजी लैब और शुभम पैथोलॉजी लैब पर जांच के लिए भेज दीं। जब इन तीनों की रिपोर्ट आई तो वे चौंक गए। दो लैब की रिपोर्ट एक ही डॉक्टर की थीं और दोनों ही पूरी तरह से अलग। जिनमें सिरोही और शुभम पैथोलॉजी लैब की रिपोर्ट शामिल हैं, जिन रिपोर्ट पर डॉक्टर अंजली जैन के साइन हैं। वहीं तीसरी लैब आशीर्वाद की रिपोर्ट भी एकदम अलग है।

ये थी रिपोर्ट

डॉ। अंजली जैन द्वारा दी गई सिरोही और शुभम पैथोलॉजी लैब की रिपोर्ट में प्लेटलेट्स काउंट 84 हजार और 19 हजार है। वहीं तीसरी लैब आशीर्वाद में यह संख्या बीस हजार है। इन रिपोर्ट को लेकर गजेंद्र असमंजस में पड़ गए। एक सही व्यक्ति में प्लेटलेट्स की संख्या डेढ़ लाख से चार लाख के बीच होनी चाहिए। अब उसकी पत्नी को डेंगू है या नहीं। वह उसको भर्ती कराए या फिर घर पर इलाज कराए।

इनको भेजी शिकायत

गजेंद्र ने इन लैब की रिपोर्ट देखकर शिकायत करने का निर्णय लिया। गजेंद्र ने इन रिपोर्ट की कॉपी और शिकायत पत्र डीएम, सीएमओ, स्वास्थ्य मंत्री, मुख्यमंत्री और विधायक कैंट को भेजा। इन पैथोलॉजी पर होने वाले कारनामों की पोल खोलते हुए कार्रवाई की मांग की। साथ ही जांच कराने की भी मांग की गई। गजेंद्र का कहना है कि ये लोग गलत रिपोर्ट देकर लोगों से रुपए ऐंठने में लगे हैं।

बहुत बड़ा है खेल

सरकारी विभाग के अनुसार डेंगू की ऑथराइज्ड रिपोर्ट केवल मेडिकल में माइक्रो बायलॉजिकल लैब की मानी जाएगी। प्राइवेट लैब में होने वाली जांच को ऑथराइज्ड नहीं माना जाएगा। इसके बाद भी शहर में होने वाली लैब पर लोग जांच करा रहे हैं। उनको मेडिकल में होने वाली जांच पर विश्वास नहीं है, इसके चलते प्राइवेट पर जा रहे हैं। यहां जाकर ये लोग पिस रहे हैं। डेंगू बताकर पैसा बना रहे हैं।

सरकारी से प्राइवेट तक

इस वक्त बुखार चरम पर है। लोग वायरल फीवर की चपेट में आ रहे हैं। फीवर कोई भी हो प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं। मेडिकल कॉलेज अस्पताल और जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों में अधिकतर फीवर के मरीज हैं। सरकारी अस्पतालों में पहले से ही मौजूद दलाल पैसा बनाने के चक्कर में मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में भेज देते हैं। जहां इनको कमीशन मिलता है। लैब पर जांच का भी कमीशन लोगों को मिलता है। जिससे मरीज पिसता है।

गलियों के डॉक्टर

गली मोहल्लों में कुकुरमुत्तों की तरह पनपते झोलाछाप डॉक्टर आजकल डेंगू का फायदा उठा रहे हैं। वे मरीजों को पहले तो अपने क्लीनिक पर घोलते रहते हैं और फिर इनको प्राइवेट अस्पताल में रेफर कर देते हैं। लैब पर जांच कराकर प्लेटलेट्स कम दिखा देते हैं। डेंगू बताकर मरीज को आधा मार देते हैं। झोलाछाप की दुकानों पर पिसने वाले पहले ही परेशान रहते हैं अब वे प्राइवेट अस्पतालों में जाकर मरनासन्न में आ जाते हैं। थकहार मौत के मुंह में चले जाते हैं। वायरल वालों को डेंगू बताकर लूटने का खेल शहर में बड़े स्तर पर हो रहा है। जिसको रोकना शायद मुमकिन नहीं है।

'अगर हमारे पास शिकायत आएगी तो कार्रवाई की जाएगी.'

- डॉ। अमीर सिंह, सीएमओ