- सरकार से लेकर डीजीपी तक ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने का कर रहे दावा

- स्टाफ की कमी पूरा करने पर पुलिस विभाग ने साधी चुप्पी,

LUCKNOW : प्रदेश के किसी जिले में चले जाइये, ट्रैफिक व्यवस्था का बुरा हाल है। लंबा जाम और बेतरतीब ट्रैफिक प्रदेश वासियों की नियति बन गया है। सरकार से लेकर डीजीपी तक ट्रैफिक व्यवस्था को जल्द सुधारने का दावा करते हैं। लेकिन, हकीकत में यह हो पाना संभव ही नहीं है। आप भी जानकर हैरान रह जाएंगे कि प्रदेश के 57 हजार नागरिकों पर एक ट्रैफिककर्मी मौजूद है। इतना ही नहीं, ट्रैफिककर्मियों की कुल तादाद का एक चौथाई वीआईपी ड्यूटी या छुट्टी पर रहते हैं। ऐसे में ट्रैफिक संभालने वाले कर्मियों की संख्या और भी घट जाती है। स्टाफ की इस कमी को दूर करने पर सीनियर अधिकारी चुप्पी साधे हैं।

ऊंट के मुंह में जीरा

प्रदेश की आबादी इस वक्त तकरीबन 21 करोड़ है। लोगों की इतनी बड़ी तादाद के ट्रैफिक व्यवस्था का जिम्मा संभालने वाली ट्रैफिक पुलिस के पास नाममात्र के कर्मी हैं। इस वक्त पूरे प्रदेश में ट्रैफिक पुलिस के नाम पर 10 एडिशनल एसपी, 7 डिप्टी एसपी, 9 ट्रैफिक इंस्पेक्टर, 90 ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर, 501 हेड कॉन्सटेबल और 3056 कॉन्सटेबल के पद स्वीकृत हैं। जानकर हैरानी होगी की जितने ट्रैफिककर्मी यूपी भर में ट्रैफिक पुलिस के पास हैं, उससे कहीं ज्यादा मुंबई या दिल्ली ट्रैफिक के पास मौजूद हैं। ऊपर के पदों पर तो अधिकारी तैनात हैं लेकिन, हेडकॉन्सटेबल व कॉन्सटेबल के 20 प्रतिशत पद रिक्त हैं। जो हेड कॉन्सटेबल व कॉन्सटेबल मौजूद हैं, उनकी तैनाती अधिकांश महानगरों में है। इन महानगरों में मौजूद ट्रैफिककर्मियों की कुल संख्या का 25 प्रतिशत ड्यूटी अक्सर वीआईपी या लॉ एंड ऑर्डर में लगा दी जाती है। ऐसे में बाकी बची संख्या से प्रदेश का ट्रैफिक संभाला जा रहा है।

फंड के लिये ताकते हैं पीएचक्यू का मुंह

देश के दो महानगर दिल्ली व मुंबई की बात करें तो वहां पर ट्रैफिक पुलिस को अलग से करोड़ों का बजट मुहैया कराया जाता है। पर, आबादी के लिहाज से सबसे बड़ा प्रदेश होने के बावजूद यूपी ट्रैफिक पुलिस को फंड के लिये यूपी पुलिस मुख्यालय की ओर मुंह ताकना पड़ता है। आलम यह है कि ट्रैफिक संभालने के लिये जरूरी संसाधन तो छोडि़ये यूपी ट्रैफिक पुलिस स्वतंत्र रूप से एक सुई भी खरीदने की हालत में नहीं है। यही वजह है कि महानगरों में ट्रैफिक पुलिस मास्क, हेलमेट, जैकेट, रेडियम टॉर्च जैसी बुनियादी जरूरतों के लिये भी लोकल स्तर पर कॉरपोरेट कंपनियों, एनजीओ व बैंकों से मदद लेने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं, ट्रैफिक में बाधा बनने वाले अवैध रूप से पार्क वाहनों को उठाने के लिये जरूरी क्रेन भी उन महानगरों के नगर निगम की मदद से ही संभव हो पाता है। इसी तरह सुचारू ट्रैफिक में बाधा बन रहे डिवाइडर कट को बंद करने या डिवाइडर बनाने के लिये भी पीडब्ल्यूडी या नगर निगम से गुहार लगानी पड़ती है।

यूपी ट्रैफिक पुलिस के स्वीकृत पद

एडिशनल एसपी 10

डिप्टी एसपी 7

ट्रैफिक इंस्पेक्टर 9

ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर 90

हेड कॉन्सटेबल 501

कॉन्सटेबल 3056