- गर्वनर राम नाईक का यूपी में एक साल पूरा, पुस्तक का भी किया विमोचन

LUCKNOW: राम नाईक ने प्रदेश के गवर्नर के रूप में यूपी में एक साल पूरा कर लिया। इस मौके पर उन्होंने अपनी किताब 'राजभवन में राम नाईक' का विमोचन भी किया। राजभवन में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने सपा सरकार को कई मामलों में कठघरे में खड़ा किया वहीं जाति विशेष के लोगों की नियुक्ति के बारे में भी जवाब मांगने की बात कही। वहीं उन्होंने कहा कि मैं भाजपाई नहीं, आरएसएस का हूं।

राजभवन के प्रति बदला है नजरिया

गवर्नर ने कहा कि राजभवन के प्रति पिछले एक साल में लोगों का नजरिया बदला है। पूरे एक साल में गवर्नर हाउस में आकर गवर्नर से साढ़े पांच हजार से अधिक लोगों ने मुलाकात की और पब्लिक से उन्हें 44 हजार से अधिक शिकायतें मिली हैं। गवर्नर हाउस के बाहर भी गवर्नर ने लखनऊ में 206 कार्यक्रमों में शिरकत की। वहीं प्रदेश के बाकी जिलों में 110 कार्यक्रमों में शिरकत की। यह वह आंकड़े हैं जो बताते हैं कि गवर्नर हाउस पिछले एक साल में कितना सक्रिय हुआ है।

जाति विशेष के लोगों की पोस्टिंग के बारे में सरकार से मांगेंगे जवाब

फील्ड पोस्टिंग में जाति विशेष के लोगों को पोस्टिंग देने के बाबत पूछे गये एक सवाल के जवाब में राम नाईक ने कहा कि अखबारों के थ्रू इसकी जानकारी हुई है, इसको लेकर वह प्रदेश सरकार से जवाब तलब करेंगे।

लोकायुक्त पर उठाया सवाल

गवर्नर ने कहा कि मौजूदा लोकायुक्त का कार्यकाल दूसरे लोकायुक्त की नियुक्ति तक करने को राज्य सरकार ने कहा था। लेकिन इसके लिए भी सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग है कि 6 महीने के अंदर लोकायुक्त की पोस्टिंग उसके कार्यकाल समाप्त होने के अंदर की जाए, लेकिन प्रदेश सरकार ऐसा नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि यह मामला सीधे तौर पर कोर्ट के कंटेंप्ट से जुड़ा है। कोर्ट में इसकी सुनवाई भी चल रही है जिसमें चीफ सेक्रेटरी को हलफनामा देना है।

क्या है लोकायुक्त का मामला?

नाईक ने कहा कि लोकायुक्त का कार्यकाल पिछले साल ही 15 मार्च को समाप्त हो चुका है, लेकिन नये लोकायुक्त की नियुक्ति समय पर नहीं की जा सकी। 24 अप्रैल, 2014 को उच्चतम न्यायालय ने छ: माह में नये लोक आयुक्त की नियुक्ति सुनिश्चित करने को कहा था। नये लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए प्रदेश सरकार से कोई संस्तुति प्राप्त न होने पर उन्होंने मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय इलाहाबाद, मुख्यमंत्री और विधान सभा के नेता विपक्ष को अलग-अलग लेटर लिखकर कार्यवाही के लिए कहा है। लेकिन जवाब सिर्फ चीफ जस्टिस की ओर से आया है।

सीएम से रिश्ता बेहतर

गवर्नर ने कहा कि प्रदेश में सरकार के साथ उनका कोऑर्डिनेशन बेहतर है। समय समय पर सीएम अखिलेश यादव को वह सलाह देते रहते हैं। सीएम के साथ उनके मंत्रियों को भी गवर्नर लेटर लिखते रहते हैं।

विवादों पर भी की चर्चा

मीडिया से बातचीत के दौरान गवर्नर ने उनके साथ जुड़े विवादों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि अयोध्या में एक दीक्षांत समारोह के बाद मीडिया से बातचीत चैनलों की हेडलाइन बन गयी। मुझे हटाने के लिए लोग सुप्रीम कोर्ट तक गये लेकिन सुप्रीम कोर्ट में भी उनकी याचिका खारिज हो गयी। एमएलसी की सूची में शामिल चार नामों पर हरी झंडी दिए जाने और पांच नाम रोके जाने के मसले पर उन्होंने कहा कि जो नाम रोके गए हैं, उनके खिलाफ अपराध दर्ज होने और पैसे के लेन देन की शिकायत मिली थी। जिस पर उन्होंने प्रदेश सरकार को परिक्षण कराने को कहा है।

छोड़ दी है भाजपा

एक सवाल के जवाब में गवर्नर ने कहा कि मैं आरएसएस का हूं, लेकिन भाजपा का नहीं। जिस दिन मुझे यूपी का गवर्नर नियुक्त किया गया था उसी दिन भाजपा छोड़ दी थी। क्योंकि यह एक संवैधानिक पद है। उन्होंने कहा कि शपथ लेने से पहले जब प्रेसीडेंट के पास गया तो प्रेसीडेंट ने उन्हें संविधान की एक कॉपी दी थी। इस लिए वह जो भी काम करते हैं उसी के दायरे में करते हैं।

लोकायुक्त की जांच पर कार्रवाई न होने से होती है पीड़ा

लोकायुक्त की जांच के बारे में उन्होंने कहा कि लोकायुक्त की जांच के बाद भी कार्रवाई ना होने से पीड़ा होती है। इस बावत उनकी तरफ से सीएम को एक लैटर भी लिखा गया। जिसमे से कुछ ही मामले सदन पटल पर रखे गए।

21 में से चार विधेयक पेंडिंग

गवर्नर ने बताया कि इस एक साल में विधानसभा और विधान परिषद से पास होकर कुल 21 विधेयक उनके पास अनुमति के लिए आए। जिनमे 14 को उन्होंने एप्रूव कर दिया। तीन विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा है। क्योंकि इनसे केंद्रीय कानून भी प्रभावित होते हैं। इनमे गुंडा एक्ट, गिरोहबंद अधिनियम और फाइनेंसियल से जुड़ा है। उन्होंने बताया की चार विधेयक उन्होंने परीक्षण करने के लिए रोक रखा है। इनमें सैफई में मेडिकल यूनिवर्सिटी का विधेयक भी है, जिसे सीएम के खुद वीसी होने की वजह से रोका गया है। इसके अलावा अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने और मेयरों के अधिकारों में कटौती करने संबंधी नगरीय निकाय अधिनियम में संशोधन वाले विधेयक को मंजूरी नहीं दी गयी है।