छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र : पूर्वीसिंहभूम जिले में महज 11 सौ रजिस्टर्ड डाक्टरों के सहारे जिले की 23 लाख आबादी को इलाज देने की कोशिश की जा रही है। एमजीएम अस्पताल के साथ ही जिला अस्पताल में ही डाक्टरों की कमी के चलते लोगों को प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के लिए जाना पड़ता हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना डाक्टरों के ही चल रहे हैं, इनमें कहीं पर एक डाक्टर तो कहीं पर दो डाक्टरों के सहारे ही दो से तीन लाख आबादी को इलाज दिया जा रहा हैं।

डॉक्टर-मरीज परेशान

बताते चले कि 11 सौ डाक्टरों में सरकारी और निजी क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टर भी शामिल हैं। प्रदेश में मेडिकल कॉलेज की संख्या कम होने और अस्पतालों में आय दिन होने वाली मारपीट से परेशान डाक्टर सरकारी अस्पतालों में नौकरी नहीं करना चाहते है। इसी के चलते वरिष्ठ डाक्टर गेस्ट फैकल्टी और रेजीडेंट टीचर के रूप में नौकरी करना ज्यादा पसंद करते है।

31 जनवरी को खत्म हो जाएगा अनुबंध

जिले के साथ ही एमजीएम अस्पताल में भी डाक्टरों की भारी कमी है। कई डिपार्टमेंट ऐसे है जहां पर एक भी डाक्टर की तैनाती नहीं है। डाक्टरों की कमी के चलते एमजीएम प्रबंधन ने 14 डाक्टरों से अनुबंध किया था। जिसका अनुबंध भी 30 जनवरी को समाप्त हो रहा है। अस्पतालों में होने वाली मारपीट के चलते अगर डाक्टरों ने रिन्यूवल नहीं किया तो अस्पताल की स्थित बिगड़ सकती है। वहीं प्रदेश के सरकारी अस्पतालों की स्थित को देखकर नये डाक्टर ज्वाइन नहीं कर रहे है।

सदर के कई डिपार्टमेंट डॉक्टर विहीन

एमजीएम अस्पताल के साथ ही जिले के सदर अस्पताल में कई विभागों में एक भी डाक्टर नहीं हैं। ईएनटी विभाग में तैनात प्रभारी का धनबाद मेडिकल कॉलेज में रेंडीडेट पद पर ज्वानिंग होने से नाक कान गला रोग के मरीजों को एमजीएम अस्पताल आने को मजबूर होना पड़ रहा है। वहीं आयुष विभाग में एक पांच डाक्टरों के स्थान पर आयुर्वेद विभाग और होम्यापैथिक विभाग में एक-एक डाक्टर की ही तैनाती है।

ढाई लाख की आबादी पर चार डाक्टर

जिले के पोटका प्रखंड में बने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ब्लॉक की ढ़ाई लाख की आबादी महज 4 डॉक्टर के हवाले है। वहीं बड़ी समस्या होने पर यहां के रोगी जिला अस्पताल और एमजीएम आते है। लेकिन एमजीएम में भी कई विभागों के स्पेशलिस्ट न होने से लोगों को मायूस होकर लौटकर जाना पड़ता है। जिसके बाद उन्हें प्राइवेट अस्पतालों की शरण लेना पड़ता है।

रख-रखाव में हॉस्पिटल की बिल्डिंग जर्जर

जिले के गांव-गांव में डाक्टरों की तैनाती और इलाज का सपना अब धूमिल हो चुका है। जिले के पंचायत स्तर पर बनाये गए अस्पताल डाक्टरों के आने की राह देखते-देखते जमींदोंज हो गए है। धीरे-धीरे कर चोर यहां का सारा सामान चोरी कर ले गए है। कहीं-कहीं पर एएमन की नियुक्ति होने से लोगों को दवाइयां दी जाती है।

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