- आलू में 70 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर लागत, मुआवजा सिर्फ 18 हजार

- आलू की कीमतें कम होने से टेंशन के दौर से गुजर रहा किसान

फीरोजाबाद: आलू किसान यूं ही नहीं मर रहे। एक तरफ मौसम की मार और दूसरी ओर फसल की बहुत कम कीमत से वे तनाव से गुजर रहे हैं। लागत के अनुपात में सरकार द्वारा जो मुआवजा दिया जा रहा है, वह मात्र 25 फीसद ही है। एक हेक्टेयर जमीन में आलू की फसल में लागत करीब 70 हजार रुपये बैठ रही है, मगर मुआवजा मात्र 18 हजार रुपये दिया जा रहा है। इस घाटे को बड़ा किसान तो झेलने में सक्षम हैं, मगर मझले व छोटे किसान कर्ज में डूब गए हैं। यही वजह है कि जिले का किसान आलू की बर्बादी पर आत्महत्या कर रहा है या फिर उसकी सदमा से मौत हो रही है।

यह है आलू फसल की लागत

एक बीघा खेत में आलू की फसल करने पर कुल लागत करीब 14000 रुपये आती है। एक बीघा खेत में आलू बीज के सात पैकेट, एक डीएपी की बोरी, दो किलो सल्फर, दो किलो ¨जक, 15 किलो पोटाश, एक हजार रुपये जुताई, 500 रुपये का पानी लग जाता है। खुदाई कार्य में करीब 1500 रुपये और प्रति पैकेट करीब 20 रुपये बोरी का खर्च आता है।

सरकार ये दे रही मुआवजा

उत्तर प्रदेश सरकार ने फसल के नुकसान पर 18 हजार रुपये प्रति हैक्टेयर का मुआवजा तय किया है। एक हैक्टेयर से अधिक के किसानों को 18000 रुपये प्रति हैक्टेयर से मुआवजा दिया जा रहा है, वहीं 750 रुपये से कम नुकसान वाले किसानों को भी 750 रुपये मुआवजा के तौर पर दिए जा रहे हैं। मुआवजा भी 50 फीसद से लेकर अधिक के नुकसान पर दिया जा रहा है। ऐसे में उन किसानों को कोई मुआवजा नहीं दिया जा रहा, जिनकी फसल में 10 से 49 फीसद तक नुकसान है।

750 रुपये के लिए लंबी भागदौड़

प्रदेश सरकार ने सबसे कम मुआवजा राशि 750 रुपये तय की है। इससे कम के मुआवजा वाले किसानों को भी 750 रुपये दिए जा रहे हैं। मुआवजा चेक से वितरित हो रहा है। जिला प्रशासन के अब तक के सर्वे में 50 फीसद या इससे अधिक के नुकसान वाले किसानों की संख्या करीब एक हजार है। इनमें से पांच से दस फीसद किसान ऐसे हैं जिन्हें मुआवजा राशि के तौर पर 750 रुपये का चेक मिला है। इनमें ऐसे भी किसान हैं जिनके पास बैंक एकाउंट ही नहीं हैं। ऐसे में वे इस राशि के भुगतान को बैंक में खाता खुलवाने को दौड़ रहे हैं। जनधन योजना के तहत जीरो फीसद पर खाता खुलने का प्रावधान है, मगर इतनी आसानी से खाता नहीं खुल पा रहा है, जिससे ये गरीब किसान परेशान हैं। वे बैंकों के चक्कर काट रहे हैं।