तीन महीने में बिना परमिट के मात्र 30 अवैध स्कूली वाहनों को किया सीज

आरटीओ की लापरवाही से परमिट के बगैर गली मोहल्लों में दौड़ती हैं टेम्पो

ALLAHABAD: रीजनल ट्रांसपोर्ट आफिस यानि आरटीओ के भरोसे परिजन रहेंगे तो उनके बच्चों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। बच्चों को अपने वाहनों से स्कूल छोड़ने वाले वाहन मालिक सिर्फ पैसा वसूलना जानते हैं तो आरटीओ अधिकारियों की कार्रवाई ऐसी होती है कि वह ऊंट के मुंह में जीरा की कहावत को चरितार्थ करती है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिना परमिट के बच्चों को स्कूल छोड़ने वाले सिर्फ 30 वाहनों को ही पिछले तीन माह में सीज किया गया है। जबकि शहर के गली-मोहल्लों से रोजाना सैकड़ो छोटे वाहन ठसाठस बच्चों को भरकर स्कूलों ले जाते हैं।

रिजेक्ट वाहनों की भरमार

आरटीओ के आंकड़ों पर गौर करें तो इलाहाबाद में 1700 छोटी स्कूली बसों का रजिस्ट्रेशन है। लेकिन शहरी इलाकों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में सैकड़ों मारुति वैन, वैगन आर व टेम्पो की भरमार है जो गली-मोहल्लों से बच्चों को स्कूल तक ले जाते हैं। इनके पास न तो परमिट होता है और न ही चालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस। यही नहीं ऐसे वाहन संबंधित स्कूलों से 50 या सौ मीटर की दूरी पर ही बच्चों को छोड़ देते हैं और उसके बाद सवारी भरने के लिए यात्रियों की तलाश में निकल पड़ते हैं।

रोजाना चेकिंग का प्राविधान

इलाहाबाद में तीन महीने में चेकिंग के नाम पर आरटीओ की कार्रवाई ऐसी है कि उसे खानापूरी भी नहीं कहा जा सकता। तीन महीने में अधिकारियों की ओर से चलाए गए अभियान में महज 30 स्कूली बसों का चालान किया गया है। जबकि शासन का स्पष्ट निर्देश है कि रेग्यूलर अभियान चलाया जाए। एआरटीओ आरएल चौधरी की मानें तो तो प्रतिदिन प्रतिदिन अलग-अलग इलाकों में टीम भेजी जाती है।

1700

है इलाहाबाद में आठ सीटर से ऊपर छोटे वाहनों की संख्या

356

बसों की जांच जून, जुलाई व अगस्त में की गई

65

से 70 के बीच ही रहा मार्च, अप्रैल और मई में वाहनों की जांच का कार्य

वाहनों की धरपकड़ के लिए निर्देश दिया जाता है। एक-एक महीने पर मानिटरिंग भी होती है। तीन महीने में स्कूलों के बाहर से 30 छोटी बसों को पकड़ा गया है। इनके पास न परमिट था और न ड्राइवर के पास लाइसेंस। सभी सीज कर समन शुल्क वसूला गया।

सगीर अहमद, आरटीओ