सिटी में फिल्मों के बढ़ते क्रेज से यूथ का अट्रैक्शन बढ़ा है। सिनेमा में कैरियर की संभावनाओं के सपने भी जवां होने लगे हैं। स्टार बनकर परदे पर चमकने की चाहत हर यूथ में उठ रही हैै। फिल्मी पर्दे पर कुछ कर गुजरने की यूथ की चाहत को देखकर फिल्मी जालसाजों ने अपनी दुकान खोल ली है। फिल्मों में काम दिलाने के बहाने फर्जी फिल्म मेकर्स यूथ को चूना लगा रहे हैं। सिटी में भी ऐसी जालसाजों की दुकानें धड़ल्ले से चल रही हैं। जहां बैठे लोग कैरियर के सुनहरे सपने देखने वालों को अपना शिकार बना रहे हैं।

बहा रहे हैं उल्टी गंगा

फिल्मों में काम करने पर पारिश्रमिक मिलता है। लेकिन सिटी में इसके उलट हो रहा है। फिल्मों में काम करने के लिए आर्टिस्ट को पेमेंट देनी पड़ रही है। फिल्मों में कैरियर बनाने के सपने दिखाकर जालसाज यूथ का शोषण करने में लगे हैं। तमाम ऐसे आर्टिस्ट हैं जिनसे पैसे लेकर काम तो शुरू किया गया लेकिन शूटिंग शुरू होने के दो- चार दिनों बाद डायरेक्टर का मोबाइल स्वीच आफ मिला और पूरी शूटिंग यूनिट लापता हो गई। पैसे देकर स्टार बनने वाले सिटी के यूथ्स की माने तो यदि सही जानकारी न हो तो शुरूआत में हर आर्टिस्ट के साथ ऐसा हो जाता है।

और एक्टिव हो गए जालसाज

अच्छी और फ्री की लोकेशन मिलने से सिटी में शूटिंग का सिलसिला बढ़ा है। हर साल आधा दर्जन से अधिक फिल्मों की शूटिंग हो रही है। ऐसे माहौल का नाजायज फायदा उठाने वाले फर्जी फिल्म मेकर यूनिट के आने के पहले ही अपना जाल फैला देते हैं। फिल्मों में रोल दिलाने के बहाने नए आर्टिस्ट से ठीकठाक वसूली कर ली जाती है। भीड़ का हिस्सा बनाने के लिए तक भी आर्टिस्ट से रकम ऐंंठी जाती है। एक स्ट्रगलर ने बताया कि फर्जी फिल्म मेकर नामी गिरामी आर्टिस्ट के साथ अपनी फोटो खिंचवा लेते हैं। उसको दिखाकर नये लड़के- लड़कियों शीशे में उतारा जाता है, ताकि फिल्म बनाने के लिए आराम से पैसे वसूले जाएं।

मोबाइल पर नेटवर्क, होटल में डील

नई फिल्मों में ब्रेक देने वाले जालसाज मोबाइल पर धंधा चलाते हंै। लड़के और लड़कियों से बात होने के बाद किसी होटल या रेस्टोरेंट पर जालसाज अपने शिकार से मिलकर सीधे सेट पर बुला लेते हैं। वहां के तामझाम को देखकर नया आर्टिस्ट मनमाफिक पैसा लगाने को तैयार हो जाता है। फिल्म की सच्चाई मालूम होने तक आर्टिस्ट अपने साथ हुई घटना को बताने लायक नहीं रह जाता है।

न बजट, न एसोसिएशन की मेंबरशिप

फिल्मों के इस फर्जी धंधे में कूदे प्रोड्यूसर बिना बजट डिसाइड हुए ही फिल्म मेकिंग शुरू देते हैं। ऐसे प्रोड्यूसर के पास न तो फिल्म बनाने का लाइसेंस होता है न ही इनके आर्टिस्ट किसी एसोसिएशन के मेंबर होते हैं। सूचना मिली तो पहुंच गए शूटिंग करने, फिल्म रिलीज होगी पता नहीं।

फीचर से आ जाते हैं वीडियो पर

जालसाजी का आलम यह है कि फीचर फिल्में बनाने वाले कम से कम 40 लाख रुपए के बजट की बात करते हैं। काम शुरू होने पर बजट लो होने पर आर्टिस्ट से पैसे मांगते हैं। उसके बाद कोई टेक्निकल प्राब्लम बताकर फीचर फिल्म की जगह वीडियो फिल्म बनने लगती है। अब वीडियो फिल्म कहां रिलीज होगी। इसको कौन देखेगा। पता नहीं। विक्टिम का कहना है कि शूटिंग के लिए हैंडिकैम तक से काम चलाया जा रहा है।

पोस्टर होती है मददगार

ठगी के शिकार आर्टिस्ट बतातें है कि फिल्मों की शूटिंग के पहले ही पोस्टर डिजाइन करा लिए जाते हैं। इन पोस्टरों में एक दो नामी गिरामी चेहरों को रखा जाता है। नये आर्टिस्ट से बताया जाता है कि किसी बड़े आर्टिस्ट के साथ काम का मौका मिलेगा। अचानक पैकअप होने के बाद नये आर्टिस्ट कि इतनी हिम्मत नहीं होती कि नामी गिरामी चेहरे से कुछ पूछ सके।

केस एक:

पैसा लेकर फिल्मों में काम देने वालों की शिकायत न होने से प्रशासन भी शिकंजा नहीं कस पा रहा है। 2011 में रेलवे बस स्टेशन पर फर्जी डायरेक्टर की पिटाई के पैसा लेने का मामला खुला। पीटने वाले युवक युवतियों ने बताया था कि महराजगंज आए एक फर्जी फिल्म डायरेक्टर ने कई युवक- युवतियों को हीरो, हीरोइन बनाने का सब्जबाग दिखाया था। गोरखपुर से लेकर मुंबई तक का तामझाम के बारे में बताया। जब युवक-यवुतियां उसके जाल में फंस गए तो उनसे फिल्म की फाइनेंसियल प्रॉब्लम बताकर पांच लाख रुपए से अधिक हड़प लिए। काफी तलाश के बाद युवकों ने उसको पकड़कर पीटा तो कैंट थाने मे डायरेक्टर ने सभी के पैसे लौटाने को कहा।

केस दो:

गोरखनाथ की एक युवती हीरोइन बनने के चक्कर में अपना सबकुछ गंवा बैठी। वर्ष 2012 में एक कांस्टेबल की बेटी को शूटिंग के बहाने जालसाज बिहार ले गए। होटल में उसके साथ कई दिनों तक दुराचार हुआ। किसी तरह से गोरखपुर लौटने के बाद युवती ने डीआईजी मिलकर शिकायत की। पुलिस हरकत में आई तो कार्रवाई हो सकी।

केस तीन:

2010 में बिहार से भोजपुरी फिल्म की शूटिंग के लिए यूनिट सिटी में आई। स्टेशन रोड के होटल में ठहरी। हीरोइन ने डायरेक्टर पर शोषण का आरोप लगाया। लोगों ने डायरेक्टर को पकड़ लिया। मामला पुलिस के पास पहुंचा तो पड़ताल शुरू हो गई। डायरेक्टर मुंबई भाग खड़ा हुआ।

केस चार:

दिसंबर मंथ में सिटी में फिल्म की जोरशोर से शूटिंग शुरू हुई। चार- पांच दिनों की शूटिंग के बाद फिल्म का पैकअप हो गया। बाद में मालूम हुआ कि फिल्म से जुड़े लोगों ने आर्टिस्ट से ठगी कर ली है। हीरोइन का पैसा भी डूब गया। हालत यह हो गई कि होटल का बिल चुकाने के लिए हीरोइन को सिटी में अपने जानने वालों से उधार मांगना पड़ा।

फिल्मी दुनिया में ऐसा होता रहता है। सिटी में पहले कुछ हुआ होगा तो कह नहीं सकते। लेकिन अब ऐसी शिकायत आई तो जांच पड़ताल करके डायरेक्टर, प्रोड्यूसर के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत कार्रवाई की जाएगी।

रमाकांत, एसपी क्राइम ब्रांच

report by : arun.kumar@inext.co.in