डिपार्टमेंट में है सिर्फ हेड

डीडीयू यूनिवर्सिटी में उर्दू डिपार्टमेंट 1958 में स्टार्ट हुआ था। डिपार्टमेंट में पीजी के साथ यूजी की क्लास रेगुलर चलती है। यूजी के फस्र्ट इयर और सेकेंड इयर में एक-एक क्लास चलती हैं जबकि थर्ड इयर में दो क्लास चलती हैं। साथ ही यूजी में ब्वायज और गल्र्स की अलग-अलग क्लास होती है। डिपार्टमेंट में टीचर्स के लिए 4 सीट है। मगर इस टाइम डिपार्टमेंट सिर्फ एक टीचर के सहारे चल रहा है। 2008 से प्रोफेसर की पोस्ट खाली पड़ी है तो करीब 12 साल से लेक्चरर की पोस्टिंग नहीं हुई। डिपार्टमेंट में लेक्चरर की दो पोस्ट है। इस टाइम डिपार्टमेंट में सिर्फ एक टीचर है डॉ। एमडी रजिर्उरहमान और यही हेड ऑफ डिपार्टमेंट है। बाकी सीट खाली है।

जेआरएफ के सहारे चल रही यूजी क्लास

उर्दू डिपार्टमेंट में यूजी और पीजी मिलाकर डेली 18 क्लास चलती है। ऐसे में एक टीचर के सहारे 18 क्लास चलना मुमकिन नहीं है। इसलिए यूजी की क्लास जेआरएफ के सहारे चल रही है। यूजी में गल्र्स की क्लास दो जेआरएफ गल्र्स ले रहीं हैं तो ब्वायज की क्लास जेआरएफ ब्वायज। इस बात को डिपार्टमेंट के हेड भी मानते है कि जेआरएफ के बगैर क्लास चलना संभव नहीं है। क्योंकि चाहते हुए भी वे अकेले 18 क्लास नहीं ले सकते। फिर अगर रेगुलर क्लास नहीं चलेंगी तो कोर्स कैसे पूरा होगा। पीजी में 120 स्टूडेंट्स का एडमिशन है तो यूजी में लगभग 350 से अधिक स्टूडेंट्स का।

19 एग्जाम कैसे पूरा हो कोर्स

एक ओर टीचर की कमी तो दूसरी ओर एग्जाम का बदला रूप उर्दू डिपार्टमेंट के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब बना है। पहले पीजी में सिर्फ 9 पेपर होते थे। मगर जब से सेमेस्टर प्रणाली लागू हुई है, तब से पीजी में 19 पेपर हो रहे हैं। ऐसे में हर 6 मंथ में सिलेबस पूरा करना स्टूडेंट्स के साथ टीचर के लिए भी किसी जंग जीतना से कम नहीं है। इसलिए स्टूडेंट्स टीचर, जेआरएफ के अलावा सेल्फ स्टडी भी कर रहे हैं।

जबरदस्त है क्रेज

डीडीयू यूनिवर्सिटी का उर्दू डिपार्टमेंट भले ही समस्याओं से घिरा है, मगर गोरखपुराइट्स में इस लैंग्वेज का जबरदस्त क्रेज है। इंट्रेंस एग्जाम होने के बाद जहां अधिकांश सब्जेक्ट में एडमिशन एप्लीकेशन काफी कम हो गई, वहीं उर्दू में एडमिशन पाने वालों की संख्या अभी भी सीट्स से दोगुनी है। पीजी में 60 सीट में एडमिशन के लिए इस साल लगभग 135 अप्लीकेशन आईं थीं। वहीं दो साल पहले जब डायरेक्ट एडमिशन होता था, तब 300 से अधिक फार्म भरे जाते थे।

स्टूडेंट्स के बीच उर्दू लैंग्वेज का क्रेज कम नहीं है। एडमिशन सीट्स हमेशा फुल रहती है तो क्लास लेने वाले स्टूडेंट्स की संख्या भी काफी अच्छी रहती है। मगर टीचर्स की कमी के चलते स्टूडेंट्स की रेगुलर क्लास नहीं चल पाती। हालांकि कोशिश कर मैं जेआरएफ की मदद से सिलेबस पूरा कराने के लिए क्लास लेता हूं।

डॉ। एमडी रजिर्उरहमान, हेड ऑफ उर्दू डिपार्टमेंट

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