पानी तक नहीं मिला:
भारतीय एथलीट ओपी जैशा ने महिला मैराथन स्पर्धा को याद करते हुए बताया कि वहां पर वह मर सकती थीं। वहां काफी गर्मी थी। उन्हें अधिकारियों द्वारा पानी और एनर्जी ड्रिंक मुहैया नहीं कराया गया। सभी देशों के स्टॉल हर दो किमी पर थे जब कि उनके देश का देश का स्टॉल खाली था। इस दौरान आठ किमी पर उन्हें पानी मिला भी लेकिन उसने कोई असर नहीं नहीं किया। जिससे वह रेस पूरी करते करते बेहोश हो गई। करीब सात बोतल ग्लूकोज की ड्रिप लगाने के बाद उन्हें 3 घंटे बाद होश आया था। महिला मैराथन स्पर्धा में निराशाजनक दो घंटे 47 मिनट 19 सेकेंड के समय से 89वें स्थान पर रही थी।
इकोनोमी क्लास में सफर:
रियो ओलंपिक में 100 मीटर की दौड़ में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली धाविका दुती चंद ने भी ऐसी वहां की अव्यवस्थाओं का खुलासा किया है। उन्हें हैदराबाद से रियो तक की यात्रा के दौरान काफी परेशानी हुई। विमान के इकोनोमी क्लास में सफर के दौरान लगातार बैठे रहने से वह काफी थक गई थीं। ऐसे में उनका कहना था कि खिलाड़ियों के लिए सरकार के पास क्या व्यवस्था करने तक की रकम भी नहीं है। अगर खिलाड़ियों को ऐसी ही परेशानियों का सामना करना होगा तो उनसे पदकों की उम्मीद करना थोड़ा कठिन है।
खाना तक नहीं मिला:
ओलंपिक में भारतीय दूतावास और खेल मंत्रालय की तरफ से भारत के स्वतंत्रता दिवस पर खेलगांव में एक समारोह का आयोजन किया गया था। जिसमें भी खिलाड़ियों को असुविधाओं का सामना करना पड़ा था। दो बसों से यहां पर पहुंचे भारतीय एथलीट्स को अपने देश का मनपसंद खाना तक नहीं मिला। उन्हें सिर्फ चाय, कॉफी और शरबत के साथ में कुछ बिस्कुट और चॉकलेट दिए गए। जिस पर यहां पर मौजूद सभी एथलीट्स का कहना था कि क्या सिर्फ इसी के लिए उन्हें यहां पर बुलाया गया था। उन्होंने समूह के प्रमुख को इसकी शिकायत भी की।
कोई लेने नहीं आया:
रियो ओलंपिक में भाग लेकर लौटी स्टार तीरंदाज लक्ष्मी रानी मांझी के साथ जो हुआ वह तो और निराशा जनक रहा। लक्ष्मी के रांची पहुंचने पर खेल संघ या खेल विभाग द्वारा न स्वागत किया गया और न ही उसे घर पहुंचाने की व्यवस्था की गई थी। जिससे रांची स्टेशन पर लगभग डेढ़ घंटे रुकने के बाद वह भाड़े की गाड़ी से अपने घर घाटशिला के लिए निकली। लगभग चार घंटे की लंबी यात्रा के बाद यह ओलंपियन अपने घर पहुंची थी। अपने साथ हुए इस व्यवहार पर लक्ष्मी का कहना है कि अगर वह जीत के आती, तो परिस्थितियां बदली हुई रहतीं। हालांकि उसके लिए ओलंपिक में भाग लेना भी एक बड़ी उपलब्धि है।
बैठने की व्यवस्था नहीं:
रियो में भारतीय हॉकी को भी बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। यहां पर जब टीम पहुंची तो उसे बैठने की व्यवस्था तक नहीं थी। जिससे टीम को मजबूरी में फर्नीचर के अभाव में कमरे में जमीन पर बैठना पड़ा। जिस पर खिलाड़ियों का कहना था कि उनके अधिकारियों को उनकी मूलभूत सुविधाओं की भी शायद कोई फिकर नहीं हैं। तभी एथलीट्स को इन परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। यह कोई छोटी बात नहीं थी।
जर्सी पर नाम नहीं:
रियो ओलंपिक में पहुंचे भारतीय बॉक्सरों को भी एक बार बड़ी चिंता में डूबना पड़ा। यहां पर इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन ने इस बात का ऐलान किया था कि खिलाड़ियों की जर्सी पर इंडिया न लिखा होने से वे बाहर कर दिए जाएंगे। जिस पर खिलाड़ी काफी परेशान हो उठे थे। हालांकि बाद में इसके लिए अधिकारियों ने जल्द बाजी में व्यवस्था करना शुरू किया। ऐसे में साफ है कि जब एथलीट्स को लेकर खेल अधिकारी ऐसी लापरवाहियां कर रहे हैं तो एथलीट्स से पदकों की उम्मीद करना शायद गलत ही होगा।
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