सुंदरता देखकर मोहित हो गया खिलजी

रानी पद्मावती चित्तौड़ की रानी थी। रानी पद्मावती के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मावती की शादी चित्तौड़ के राजा रतनसिंह के साथ हुई थी। रानी पद्मावती बहुत खूबसूरत थी और उनकी खूबसूरती पर एक दिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर पड़ गई।

रानी पद्मावती को पाने की ललक में खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण की ठानी। खिलजी ने एक चाल चली और रतनसिंह को पत्र लिख कर कहा की रानी पद्मावती को वह अपनी बहन समान मानता हैं और एक बार उनके दर्शन करना चाहता हैं इस पर रतनसिंह ने सहमती जताई और रानी पद्मावती कांच में अपना चेहरा दिखाने को राजी हो गईं। रानी पद्मावती की सुन्दरता देखकर खिलजी पागल सा हो गया और उसने राजा रतनसिंह को बंदी बना लिया।

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खिलजी ने लिया था हार का बदला

राजा रतनसिंह को बंदी बनाने की खबर ने पूरे इलाके में हड़कंप मचा दी। चित्तौड़ की सेना अपने राजा को मुक्त कराने के लिए योजना बनाने लगी। अगले दिन सुबह होते ही 150 सैनिक पालकी के साथ रतनसिंह की सेना के सेनापति गोरा और बादल खिलजी के किले की तरफ बढ़ चले। इन पालकियों को देखकर खिलजी उत्साहित हुआ और सोचा इसी में ही पद्मावती को लेकर आये हैं मगर इस मे गोरा बादल की चाल थी इन पालकियो में राजा रतन सिंह को बचाने पहुचे गोरा और बादल और मेवाड़ की सशस्त्र सेना बाहर निकली और खिलजी के चगुल से रतनसिंह को आजाद करवा लिया इस मुठभेड़ में गोरा मेवाड़ी महानायक शहीद हो गया और बादल खिलजी के अस्तबल से घोड़े निकालकर चितोड़ की तरफ चल पड़े।

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आबरू बचाने के लिए अग्निकुंड में कूद गईं थी पद्मावती

खिलजी से यह अपमान सहा नहीं गया और उसने मेवाड़ के साथ खुलेआम युद्ध का शंखनाद फूंक दिया। दोनों सेनाएं मैदान में एक-दूसरे से भिड़ पड़ीं। इस युद्ध में मेवाड़ी सेना के सारे सिपाही मारे गए साथ ही राजा रतन सिंह की भी मृत्यु हो गई। इसके बाद खिलजी ने दुर्ग के भीतर की राजपूत महिलाओ को बंदी बनाने का आदेश दे डाला। राजपूत सेना के हारने की खबर पाकर रानी पद्मावती ने चित्तोड़ दुर्ग के अन्दर एक बड़ी चिता जलाने को कहा और जैसे ही खिलजी की सेना महिलाओं को बंदी बनाने के लिए दुर्ग के भीतर प्रवेश करने लगी। अपनी आबरू की खातिर पद्मावती और सभी राजपूत महिलाएं उस जलती अग्निकुंड में कूद पड़ी और देखते ही देखते सभी ने जोहर कर दिया मेवाड़ के इस जोहर को आज भी लोकगीतों में याद किया जाता हैं।

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