सात साल बाद आया जन्म प्रमाण पर फैसला
बच्चे के जन्म के बारे में अब आपको न डाक्टर के चक्कर लगाने की जरूरत है और न भविष्य के बारे में पता लगाने के लिए ज्योतिषी की। आप घर बैठे मन मुताबिक अपने बच्चे का भविष्य लिख सकते हैं। बस इसके लिए आपकी जेब में पैसे होने चाहिए और नगर निगम के बाबू को मनाने की कुव्वत।

नगर निगम में बड़ा खेल
नगर निगम में फर्जी जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्रों का बनाना जारी है। ऑफिसर्स के हस्ताक्षर से जारी इन प्रमाण पत्रों पर पहले भी सवालिया निशान लगते रह हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम हर बार पल्ला झाड़ लेने की परंपता है। एक बार फिर एक मामला सामने आया है। वैसे तो मामला सात साल पुराना है, लेकिन इतने सालों की जांच के बाद 23 अप्रैल को इस संबंध में फैसला आ गया है। इस मामले में एक ही बच्चे के नाम पर तीन फर्जी जन्म प्रमाण पत्र जारी कर दिए गए थे, जिसकी जांच के रिजल्ट सामने आए हैं।

कमिश्नर की हस्तक्षेप
एक ही बच्चे का तीन बार जन्म प्रमाण पत्र बनने का मामला जब सामने आया तो तत्कालिन कमिश्नर ने इस पर जांच बैठा दी। नगर निगम के ऑफिसर्स की नींद टूटी। इस पूरे मामले के जांच के आदेश दिए गए। मामला सही पाए जाने पर नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने लगभग 7 साल बाद जन्म एवं मृत्यु रजिस्ट्रीकरण अधिनियम की धारा 1969 की धारा 15 में वर्णित अधिकारों का प्रयोग करते हुए 23 अप्रैल 2012 को अपना फैसला सुनाया है। फैसले के अनुसार जिस बच्चे के तीन सर्टिफिकेट जारी किए गए थे उनमें से दिनांक 26 नवंबर 2005 और 6 सितंबर 2008 को बने जन्म प्रमाण पत्रों को निरस्त कर दिया गया है।

क्या इससे हल निकलेगा?
नगर निगम ने फर्जी प्रमाण पत्रों को निरस्त करके पूरे मामले की लीपापोती कर दी गई, लेकिन पूरे घटनाक्रम ने निगम की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा दिया है। सूत्रों की मानें तो इस बात की जानकारी सीनियर ऑफिसर्स को भी है, लेकिन वो कार्रवाई करने से बच रहे हैं। अक्सर ऑफिसर्स यह कह कर बचते आए हैं कि इस तरह की शिकायतें सामने नहीं आती। अब जबकि पूरे प्रमाण के साथ शिकायत सामने आई तो सिर्फ दो सर्टिफिकेट निरस्त करके कर्तव्यों की इतिश्री कर ली गई।

सवाल दर सवाल
ठ्ठ क्या केवल जन्म प्रमाण पत्र के निरस्त होने से ही निगम में हो रहे फर्जीवाड़े पर रोक लग जाएगी?
ठ्ठ जब सबूत भी निगम के पास थे और आरोपी भी तो निगम इतने समय से चुप क्यों बैठा रहा?
ठ्ठ मामले की एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की गई? दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
ठ्ठ सबसे बड़ा सवाल ये है कि निगम के कर्मियों को मनमानी की छूट आखिर क्यों?

क्यों जरूरी है सर्टिफिकेट
बर्थ सर्टिफिकेट बच्चे की पहचान मानी जाती है। जिसका वोटर कार्ड बनवाने में, स्कूल के एडमीशन में, सरकारी जॉब में, शादी विवाह में ऐज की पुष्टि के लिए, प्रापर्टी के हस्तांतरण में, आईडी कार्ड जैसे ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट को बनवाने में इसका यूज होता है।

कहां बनता है सर्टिफिकेट
जन्म मृत्यु रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1969 के मुताबिक पैदा हुए बच्चे के जन्म से 21 दिनों के अंदर बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र जारी करना जरूरी है। इस प्रमाण पत्र को जारी करने का अधिकार केंद्र में रजिस्ट्रार जनरल, स्टेट में चीफ रजिस्ट्रार, डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार और इसके अलावा गांव और टाऊन में क्षेत्रीय रजिस्ट्रार के पास है।

कैसे बनता है प्रमाण पत्र
कंसर्न अथॉरिटी के पास जाकर आपको प्रॉपर तरीके से रजिस्ट्रार के द्वारा जारी फार्म को पूरी तरह फिल करके बच्चे के पैदा होने से 21 दिनों के अंदर एप्लाई करना पड़ता है। इसके बाद जहां बच्चे का जन्म हुआ है वहां के एक्चुअल रिकार्ड के वैरिफिकेशन के बाद कंसर्न अथॉरिटी सर्टिफिकेट को इशू करती है. 

कैसे होता है गोलमाल

फार्म को भरने के बाद पैसे और जाली दस्तावेजों के आधार पर नगर निगम के बाबू के द्वारा सर्टिफिकेट को जारी कर दिया जाता है। सोर्स की मानें तो इसके लिए हॉस्पिटल में रैकेट भी काम करता है जो पैसे लेकर फर्जी सर्टिफिकेट को आसानी से जारी कर देता है।

फिलहाल ये मामला मेरे संज्ञान में नहीं है। नगर स्वास्थ्य अधिकारी जो रिपोर्ट देंगे, उसके आधार पर हम जांच करके आवश्यक कार्रवाई करेंगे।
-अबरार अहमद, म्यूनिसिपल कमिश्नर

फर्जी सर्टिफिकेट का पूरा मामला मेरे संज्ञान में है। फिलहाल दो सर्टिफिकेट निरस्त करने के आदेश दे दिए गए हैं। मामले की विधिक राय लेने के बाद ही आगे की आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।

-रवि शर्मा,नगर स्वास्थ्य अधिकारी

Report by: Amber Chaturvedi, Abhishek Mishra