अशरफ का ये बयान उस समय आया है जबकि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नए प्रधानमंत्री को दो हफ्तों का समय देते हुए ये जानना चाहा था कि वह स्विटजरलैंड के अधिकारियों से राष्ट्रपति के विरुद्ध भ्रष्टाचार के मामलों में फिर से जाँच करने के लिए कहेंगे या नहीं।

इसी मुद्दे पर अशरफ के पूर्ववर्ती यूसुफ रजा गिलानी को पद से हटना पड़ा था। अदालत ने उन्हें अवमानना का दोषी बताया था क्योंकि गिलानी ने लाखों डॉलर की रिश्वत वाले मामलों में जरदारी के विरुद्ध फिर से जाँच करवाने से इनकार कर दिया था।

अशरफ ने लाहौर में पत्रकारों से कहा, "वह पाकिस्तान के लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए राष्ट्रपति हैं और कानून के मुताबिक उन पर तब तक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता जब तक वह पद पर हैं."

जब उनसे ये पूछा गया कि इस मामले पर 12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली अगली सुनवाई में सरकार का रवैया क्या रहेगा तो अशरफ ने दोहराया कि वह राष्ट्रपति को मिली हुई सांविधानिक छूट का जिक्र करेंगे।

मामला

उन्होंने कहा, "सभी सांविधानिक विशेषज्ञों ने हमें यही सलाह दी है इसलिए हमारा इस बारे में यही नजरिया है." विश्लेषक मान रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का ये नोटिस दिखाता है कि न्यायपालिका अभी सरकार के साथ तकरार टालने की इच्छुक नहीं दिखती। इसलिए माना जा रहा है कि फरवरी 2013 से पहले चुनाव की आशंका बनी हुई है।

जरदारी के विरुद्ध लगे आरोप 1990 के दशक के हैं जब उन पर कस्टम जाँच के कॉन्ट्रैक्ट देने में रिश्वत लेने का आरोप लगा था और कहा गया था कि वह पैसा स्विस अकाउंट में जमा कराया गया। जब 2008 में जरदारी राष्ट्रपति बने तो स्विस अधिकारियों ने उनके विरुद्ध मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसके बाद 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक छूट समाप्त कर दी थी जिससे राष्ट्रपति और अन्य राजनीतिज्ञों के विरुद्ध रुके हुए मामले फिर से खोले जा सकें।

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