-नगर निगम से सिर्फ 7 फैक्ट्री हैं रजिस्टर्ड, एफएसडीए को खबर तक नहीं

-खाद्य आयुक्त के आदेश को किया अनदेखा, डीओ को शोकॉज नोटिस

BAREILLY: फूड सेफ्टी एंड ड्रग स्टैंडर्ड के एक्ट और रेग्यूलेशन का फायदा उठाकर ड्रिंकिंग वॉटर (बोथा पैकेज्ड एंड मिनरलल) की आड़ में शहर में अवैध पानी का धंधा चल रहा है। कूल एंड प्योर पानी की सप्लाई के नाम पर धड़ल्ले से फैक्ट्रियां खुली हुई हैं। नगर निगम से सिर्फ 7 फैक्ट्रियां ही रजिस्टर्ड हैं, लेकिन फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी का लाइसेंस कितनों के पास है, इसको लेकर फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफएसडीएए) बेखबर है। परातासपुर में वॉटर कैम्पर में मांस मिलने के बाद दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की पड़ताल में इसका खुलासा हुआ है। यही नहीं एफएसडीए लोगों की सेहत को लेकर इतना लापरवाह है कि उसने खाद्य आयुक्त का आदेश भी दरकिनार कर दिया। खाद्य आयुक्त संजय पांडे ने इस लापरवाही पर डेजिग्नेटेड ऑफिसर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

सिर्फ 7 ही हैं रजिस्टर्ड

वाटर कैम्पर सप्लाई करने वाली शहर में महज 7 फैक्ट्री ही रजिस्टर्ड हैं। जो मठ कमल नयनपुर, बिहारीपुर खत्रियान, घेर जाफर खां, सूफी टोला, संजयनगर, सिविल लाइंस, कटरा चांद खां में एक-एक फैक्ट्री संचालित हैं। बताया कि यह पिछले करीब 5 वर्षो से लगातार संचालित हैं। जबकि करीब दो सौ से अधिक अवैध रूप से फैक्ट्री चल रही हैं। स्वास्थ्य विभाग में लाइसेंस जारी करने का जिम्मा संभाल रहे फिरासत ने बताया कि करीब साल भर पहले हुए सर्वे के मुताबिक सर्वाधिक अवैध फैक्ट्रियां ब्रह्मापुरा, डेलापीर, जाटवपुरा, चाहबाई, बांस मंडी, बड़ा बाजार, बदायूं रोड और नेकपुर गौटिया की तरफ हैं। इन पर कार्रवाई की तैयारी थी लेकिन शासनादेश में हुए बदलाव की वजह से कार्रवाई की जिम्मेदारी एफएसडीए को सौंप दी गई है।

3 के सैंपल हो चुके फेल

अपर नगर आयुक्त के मुताबिक लाइसेंस जारी करने से पहले पानी के सैंपल की जांच की जाती है, जो लखनऊ स्थित लैब से टेस्ट होती है। इसके बाद टेस्टिंग रिपोर्ट के आधार पर आवेदन, वेरिफिकेशन होता है। फिर लाइसेंस जारी किया जाता है। 7 जारी हुए लाइसेंस के पानी की टेस्टिंग में ओके रिपोर्ट मिली। इसके अलावा भी करीब 3 आवेदन हुए थे। जो जांच में फेल पाए गए थे।

इन नियमों का उठा रहे फायदा

खाद्य विभाग से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड 2006 और रेग्युलेशन 2011 के मुताबिक सिर्फ ड्रिंकिंग वॉटर (बोथ पैकेज्ड एंड मिनरल)ही आता है और इन्हीं को एफएसएसआई लाइसेंस जारी किया जाता है। इसके अलावा ओपन वॉटर बिक्री के लाइसेंस का कोई नियम नहीं है। नियम के तहत सिर्फ पैकेज्ड और मिनरल वॉटर का ही सैंपल लिया जा सकता है लेकिन जार या खुले में बिकने वाले पानी का नहीं। इसी नियम का फायदा उठाकर ज्यादातर फैक्ट्री संचालक एफएसएसआई से लाइसेंस ही नहीं लेते हैं।

शासन ने जारी की है एडवाइजरी

शासन ने इस तरह के पानी को लेकर एडवाइजरी जारी की है कि यदि इस तरह से दूषित पानी की सप्लाई का मामला संज्ञान में आता है तो प्रत्येक 6 महीने में एफएसडीए द्वारा फैक्ट्री में जाकर पानी की केमिकल और बॉयोलॉजिकल जांच करायी जाए। डिपार्टमेंट के साथ-साथ फैक्ट्री मालिक भी 6 महीने में इसकी जांच कराए। जांच में पास न होने पर पानी की बिक्री तुरंत रोक देनी चाहिए।

18 मई को जारी किया था आदेश

खाद्य आयुक्त संजय पांडे ने गर्मी में पानी की सप्लाई को लेकर पब्लिक की सेफ्टी को ध्यान में रखते हुए मंडल के चारों जिलों के डेजिग्नेटेड ऑफिसर को एक आदेश जारी किया था। यह आदेश मेल और हार्ड कॉपी के जरिए भेजा गया था। इस आदेश में साफ-साफ लिखा था कि आप अपने डिस्ट्रिक्ट में स्थिति सभी शीतल पेय प्रतिष्ठान, आइस्क्रीम पार्लर, आइसकैंडी निर्माण संस्थान, बर्फ के गोले मिश्रित पेय पदार्थ, फ्रूट जूस के कॉर्नर की सघन चेकिंग करें। इसके अलावा एफएसएस एक्ट और रेग्युलेशन के तहत नमूना संग्रहण एवं सीजर की कार्रवाई करें। इसके अलावा जिन जिलों में वॉटर प्लांट या बर्फ प्लांट संचालित हैं उनमें यूज होने वाले पोर्टेबल वॉटर की केमिकल व बॉयोलॉजिकल जांच करा लें, ताकि पता चल सके जो पानी लोग पी रहे हैं वह पीने योग्य है या नहीं। प्रत्येक सप्ताह में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट भी देनी थी।

आदेश को चेक ही नहीं किया गया

खाद्य आयुक्त का ऑफिस कमिश्नरी में है और कलेक्ट्रेट स्थित एफएसडीए ऑफिस का पैदल रास्ता मात्र 5 मिनट का है। मेल और हार्ड कॉपी दोनों तरह से आदेश उसी दिन एफएसडीए में पहुंच गया था लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने इसपर ध्यान ही नहीं दिया। डेजिग्नेटेड ऑफिसर ममता कुमारी लंबी छुट्टी पर हैं इसलिए उन्होंने मेल ही चेक नहीं किया। उनका चार्ज चीफ फूड इंस्पेक्टर अक्षय प्रधान के पास है लेकिन उन्होंने भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। परातासपुर की घटना के बाद जब खाद्य आयुक्त ने बरेली के फूड इंस्पेक्टर्स की मीटिंग बुलाई तो 11 दिन बाद भी किसी को आदेश के बारे में पता ही नहीं था। जब सीएफआई से पूछा गया तो वह भी जिम्मेदारी से बचते नजर आए। इतनी बड़ी लापरवाही पर खाद्य आयुक्त ने डेजिग्नेटेड ऑफिसर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

नहीं किसी को कोई जानकारी

इतने बड़े हादसे के बाद जब दैनिक जागरण की टीम ने एफएसडीए ऑफिस में जाकर वॉटर सप्लाई की फैक्ट्रियों के लाइसेंस के बारे में जानकारी की तो सभी मामले को टरकाने में लगे रहे। ऑफिस स्टाफ का कहना था कि कोई रिकॉर्ड की हार्ड कॉपी नहीं है। मैडम यानी डेजिग्नेटेड ऑफिस ममता कुमारी के पास ही एफएसएसआई की लॉगिन आईडी व पासवर्ड है। जब ममता कुमारी से फोन पर संपर्क किया गया तो कहा गया कि वह अभी छुट्टी पर हैं और जानकारी देने में अक्षम हैं। जब उनका चार्ज संभाल रहे चीफ फूड इंस्पेक्टर अक्षय प्रधान से पूछा गया तो उन्होंने भी कह दिया कि इसकी जानकारी वह नहीं दे सकते हैं, क्योंकि मैडम के पास लॉग इन आईडी है। वह भी इस तरह की पानी की सप्लाई करने वालों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर एक्ट व रेग्युलेशन का बहाना बनाते नजर आए।

18 मई को गर्मी को देखते हुए शीतल पेय पदार्थो के साथ-साथ पोर्टेबल वॉटर की केमिकल व बॉयोलॉजिकल जांच के आदेश दिए गए थे लेकिन इस आदेश की अनदेखी की गई है। डेजिग्नेटेड ऑफिसर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

संजय पांडे, खाद्य आयुक्त बरेली