प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ़ ने कहा है कि अगर मुमकिन हो तो वे एक दशक से चल रहे चरमपंथ को शांतिपूर्ण तरीक़ों से ख़त्म करना चाहते हैं. लेकिन उन्होंने इस ओर भी इशारा किया कि अगर बातचीत नाकाम होती है, तो ज़्यादा कड़ी सैन्य कार्यवाई होगी.

पाकिस्तानी तालिबान एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है जो पाकिस्तान में शरिया क़ानून लागू करना चाहता है.

चुनावी वादा

सात महीने पहले पाकिस्तान में सत्ता में आई नवाज़ शरीफ़ सरकार ने चंद दिनों पहले तालिबान से शांतिवार्ता के लिए चार लोगों के नामों की घोषणा की थी.

अपने चुनावी वादे के मुताबिक़ नवाज़ शरीफ़ ने सरकार बनाने के बाद से ही तालिबान के साथ बातचीत कर शांति की बहाली की कोशिश शुरू कर दी थी लेकिन अभी तक इसका कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आ पाया है.

सरकार की ओर से बातचीत करने वाली टीम में वरिष्ठ पत्रकार रहीमुल्लाह युसुफ़ज़ई और इरफ़ान सिद्दीक़ी, पूर्व राजदूत रुस्तम शाह मोहमांद और आईएसआई के एक पूर्व मेजर अमीर शाह शामिल हैं.

इमरान ख़ान का इनकार

पाकिस्तान: सरकार और तालिबान पहली बार आमने-सामनेतालिबान ने अपनी टीम में इमरान ख़ान को शामिल किया था लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया.

रविवार को पाकिस्तान तालिबान ने भी अपनी टीम की घोषणा की.

इस पांच सदस्यीय टीम में राजनीतिक दल तहरीके इंसाफ़ के चेयरमैन और पूर्व क्रिकेटर इमरान ख़ान, इस्लामाबाद लाल मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुल अज़ीज़ और तीन अन्य धार्मिक नेता- मौलाना समीयुल हक़, मुफ़्ती किफायतुल्लाह और प्रोफ़ेसर इब्राहीम ख़ान शामिल हैं.

लेकिन सोमवार को तहरीक-ए-इंसाफ़ ने साफ़ किया कि इमरान ख़ान तालिबान की टीम का हिस्सा नहीं बनेंगे.

हालांकि तहरीक-ए-इंसाफ़ तालिबान के साथ बातचीत की हिमायती है लेकिन एक वक्तव्य में पार्टी ने कहा कि इमरान ख़ान किसी अन्य भूमिका में शांति प्रक्रिया की मदद करना पसंद करेंगे.

पार्टी के मुताबिक़ उनकी बातचीत में ज़रूरत नहीं थी क्योंकि पार्टी के एक अन्य सदस्य, रुस्तम शाह मोहमांद, पहले ही सरकारी टीम में शामिल है.

हाल में तालिबान के हमलों में तेज़ी आ गई है. पिछले साल तालिबान के हमलों में लगभग 1200 नागरिक और सुरक्षा बल मारे गए थे.

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