सत्ताधारी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सांसद लालचंद, रमेश लाल, महेश कुमार, राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी की छोटी बहन डॉक्टर अज़रा पेचूहो, नफीसा शाह और अन्य सांसदों ने सिंध में हिंदू लड़कियों की जबरन शादी के ख़िलाफ विरोध प्रदर्शन किया और संसद में मौजूद सभी दलों पर इस बात के लिए जोर दिया कि वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अपनी भूमिका अदा करें।

सत्ताधारी दल पीपुल्स पार्टी के सांसद मियाँ मिट्ठो ने संसद को बताया कि घोटकी निवासी रिंकल कुमारी को जबरन मुसलमान करने का आरोप गलत है। मियाँ मिट्ठो ने ही रिंकल कुमारी को मुसलमान किया था।

सत्ताधारी दल के सांसदों ने व्यक्तिगत रूप से इस मामले को उठाया लेकिन यह एक बहस में बदल गया और सरकार की ओर से किसी ने भी इसका न तो जवाब दिया और न ही मांग के बावजूद संसद में कोई रूलिंग दी गई। लालचंद ने संसद को बताया कि हाल ही में चार हिंदू लड़कियों का अपहरण कर उन्हें मुसलमान किया गया और उनकी जबरन शादी कर दी गई।

हिंदुओं के साथ भेदभाव क्यों?

उन्होंने कहा कि घोटकी ज़िले में पाँच सौ के करीब हथियारबंदों ने रिंकल कुमारी को मुसलमान बनाया और अदालत ने उन्हें कराची के शेल्टर होम भेजा तो वहाँ कराची के बजाए घोटकी की पुलिस को तैनात किया गया है ताकि लड़की को डरा कर मुसलमान होने का बयान दिलवाया जाए।

राष्ट्रपति की बहन डॉक्टर अज़रा पेचूहो ने कहा कि एक वर्ग धर्म के नाम पर जबरन शादियाँ करने के लिए हिंदू लड़कियों को अगवा करता है, जिसकी धर्म में अनुमति नहीं है।

उन्होंने संसद से पूछा कि जब मुसलमान लड़की की शादी के लिए माता-पिता की अनुमति ज़रुरी है तो हिंदू लड़की को यह अधिकार क्यों नहीं दिया जाता? “कल को अगर हमारी लड़कियाँ हिंदुओं से शादी करें तो फिर क्या होगा?”

सांसद रमेश लाल ने कहा कि अगर कोई अपनी मर्ज़ी से इस्लाम कबूल करे या मुसलमान हो जाए तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन हथियार के ज़ोर पर हिंदुओं को मुसलमान नहीं बनाना चाहिए।

उन्होंने बताया कि आशा कुमारी सिंध के ज़िले जैकबाबाद से अगवा हुई तो पुलिस ने कुछ नहीं बताया और जब सुप्रीम कोर्ट ने मामले का अपने आप संज्ञान लिया तो ज़िला पुलिस अधिकारी ने उनके पिता को धमकी दी कि उन्होंने अदालत से संपर्क क्यों किया।

रमेश लाल ने कहा, “यहाँ किसी की मुर्गी चोरी हो जाती है तो प्रशासन परेशान हो जाता है लेकिन हमारी बच्चियाँ और बहनें अगवा हो रही हैं और किसी को कोई परवाह नहीं है.”

उन्होंने बताया कि हिंदू लड़कियों के साथ एक जुल्म यह है कि एक तो उन्हें मुसलमान बना कर जबरन शादी की जाती है और बाद में उन्हें उनके घर वाले बतौर मुसलमान भी स्वीकार नहीं करते हैं।

ताजा रिपोर्ट

इस बीच पाकिस्तान में शांति और न्याय आयोग ने देश में अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं की स्थिति पर बुधवार को एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का जायजा लेने की कोशिश की गई है।

ये रिपोर्ट सिंध और पंजाब प्रांत के 26 जिलों में हिंदू और ईसाई धर्म की लगभग एक हजार महिलाओं से बातचीत के आधार पर तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में ना केवल उनकी समस्याओं का जिक्र किया गया है बल्कि उनके निदान के लिए उपाय भी सुझाए गए हैं।

रिपोर्ट के अनुसार नौकरी या मजदूरी करने के लिए घरों से निकलने वाली अल्पसंख्यक महिलाओं में से 76 फीसदी यौन दुर्व्यवहार का शिकार होती हैं जबकि 43 प्रतिशत महिलाओं ने शैक्षणिक संस्थानों और दूसरी जगहों पर धर्म के आधार पर भेद-भाव किए जाने की शिकायत की है।

शांति और न्याय आयोग के कार्यकारी निदेशक पीटर जैकब ने कहा कि अल्पसंख्यक महिलाओं की वास्तविक स्थिति रिपोर्ट में बताए गए हालात से ज्यादा खराब है और अल्पसंख्यकों में डर और लाचारी समाया हुआ है और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ज्यादातर मामले में अपनी बात इसलिए नहीं कह पाते कि कहीं उन्हें और परेशानियां ना झेलनी पड़ जाएं। पिछले सप्ताह पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने भी सिंध प्रांत में हिंदू लड़कियों की जबरन शादी और बलपूर्वक धर्म परिवर्तन पर गंभीर चिंता जताई थी।

कराची में पत्रकारों से बातचीत के दौरान आयोग के उपाध्यक्ष अमरनाथ मोटुमल और आयोग के सदस्य प्रोफेसर बदर सुमरो, इंदर अहूजा और असद इकबाल बट्ट ने कहा कि सिंध प्रांत में हर महीने औसतन 25 ऐसे मामले सामने आ रहें हैं लेकिन इसके लिए जिम्मेदार लोग मौजूदा कानून में कमियों का सहारा लेकर बच जाते हैं।

आयोग ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय में सुरक्षा का विश्वास दिलाने के लिए नए कानून बनाए जाने की जरूरत है। इस मौकें पर हाल ही में सिंध प्रांत से कथित तौर पर अगवा की जाने वाली चार लड़कियों के परिवार वाले भी मौजूद थे। उन्होंने आरोप लगाया कि स्थानीय पुलिस ने उनकी कोई मदद नहीं की और स्थानीय न्यायपालिका का रोल भी बहुत सराहनीय नहीं था।

जबरन शादी और बलपूर्वक धर्म परिवर्तन की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए मानवाधिकार आयोग ने कहा कि हिंदू समाज के लोग बहुत कम उम्र में ही अपनी लड़कियों की शादी करने के लिए मजबूर हैं या तो फिर वे दूसरे देश में जाकर बस रहें हैं। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के आदेशों का भी स्थानीय प्रशासन पालन नहीं कर रहें हैं।

आयोग का कहना था, ''नागरिकों के जीने और धर्म का पालन करने के अधिकार की हिफाजत करना राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी है.'' प्रोफेसर सुमरो ने कहा कि ये काफी अजीब बात है कि हिंदू समुदाय की जवान लड़कियां ही ज्यादातर इस्लाम धर्म स्वीकार कर रहीं हैं, हिंदू समाज के बुजुर्ग लोग नहीं।

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