कानपुर: गर्म-गर्म पकौड़े। इस डिश का नाम सुनते ही मुंह अपने आप 'चटपटा' हो जाता है। लेकिन पीएम ने एक इंटरव्यू में इसका नाम क्या लिया पूरे देश में 'पकौड़ा' बड़े-बड़े नेताओं की जुबान पर बार-बार आने लगा है। कांग्रेस, सपा, भाजपा समेत हर बड़ी पार्टी के नेता 'पकौड़ा कथा' पर अपने-अपने हिसाब से 'टिप्पणी' कर रहे हैं। इन सबके बीच दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट टीम ने कानपुर के विभिन्न चौराहों पर कई दशकों से 'पकौड़े' तलने वाले दुकानदारों से बात की तो उन्होंने अपनी एक अलग 'कहानी' बयां की। देश में चर्चा का विषय बना पकौड़ा आखिर उनके लिए क्या मायने रखता है?

 

28 साल पुरानी है पकौड़ों की कहानी

बात करीब 28 साल पुरानी है, नौकरी के लिए लाख जतन करने के बाद राजेश के बाबा को जब सफलता हाथ नहीं लगी तो उन्होंने सोच लिया कि अब वो कुछ अपना काम करेंगे। बस फिर क्या था कुछ पैसे उधार लिए और बिरहाना रोड पर पकौड़े का ठेला लगाना शुरु किया। धीरे-धीरे 'पकौड़े के स्वाद' ने 'रफ्तार' पकड़ी और ये पारिवारिक बिजनेस बन गया। राजेश के पिता रमेश और उनके चाचा, ताऊ के लड़के भी पकौड़े तलने के बिजनेस में जुट गए और फिर पकौड़े के साथ-साथ खस्ते भी बेचने शुरू कर दिया। राजेश के बेटे और भतीजे चंदन, रिंकू सबके सब सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक हर रोज यही करते हैं। हम अपने बिजनेस से बहुत खुश हैं और रोजाना हजारों रुपए का टर्नओवर है। नेताओं की पकौड़ा कथा से हमारे बिजनेस का प्रचार हो रहा है। उनका कहना है कि नेता पकौड़े को कुछ भी कहें लेकिन हमारे लिए तो 'जिंदगी' का हिस्सा है।

 

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'पकौड़े' तलना नहीं है आसान

परेड़ चौराहे से कुछ दूर पिछले करीब 15 साल से पकौड़े का ठेला लगाने वाले हीरा ने बताया कि भइया पकौड़े तलना आसान काम नहीं है। बेसन को फेंटते-फेंटते हाथ थक जाते हैं। बेसन को फेंटना फिर उसमें हरी मिर्च, नमक के साथ प्याज और दूसरी चीजें मिलने में कभी-कभी हाथ में दिन पर जलन होती है। नेताजी भले ही पकौड़े को लेकर कुछ भी कह रहे हों लेकिन असलियत में बेरोजगार रहने से तो अच्छा है कि पकौड़े बनाकर कमाई करें और किसी के आगे हाथ न फैलाएं। हीरा बताते हैं कि उनके साथ ठेले पर काम करने वाले तीन-चार और लोगों की रोजी चल रही है। हीरा कहते हैं कि कोई कुछ भी कहे लेकिन हमारे लिए पकौड़ा ही 'जिंदगी' चलाने का जरिया है।

 

 

 

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राजनीति के चलते हो रहा व्यापार का प्रचार

नजीराबाद में पकौड़े का ठेला लगाने वाले विनोद कहते हैं कि पिछले कुछ दिनों से टीवी-अखबार हर जगह पकौड़े का नाम आ रहा है चलो बिना पैसे के हमारे बिजनेस की ब्रांडिंग तो हो रही है। अब हमको भी 'सम्मान' की नजर से देखा जाएगा। दर्शनपुरवा में ठेला लगाने वाले राजू ने कहा कि हमारे पास इतना पैसा तो है नहीं कि हम प्रचार करवा सकें चलो बड़े-बड़े नेता नाम तो ले रहे हैं हमारे व्यापार का। संंत नगर चौराहे के पास पकौड़े का ठेला लगाने वाले राजेश कहते हैं कि कई दशकों के बाद हमारा बिजनेस चर्चा में आया है।

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