खासियत बनी मुसीबत
पैनल डिस्कशन में शामिल लोगों ने शहर के वर्तमान हालत के लिए यहां की खासियत को ही जिम्मेदार बताया। धर्म की नगरी है, बड़े मंदिर हैं जिसके लोग इस शहर की ओर खिंचे चले आते हैं। दूसरे शहर में एजुकेशन के लिए बेहतर कॉलेजेज व यूनिवर्सिटीज हैं जिसके लिए बड़ी संख्या में यूथ पॉपुलेशन शहर में आती है। इसके अलावा बनारस एक बिजनेस सेंटर के रूप में भी जाना जाता है। लोगों को खाने कमाने का यहां बेहतर जरिया मिलता है। इन तीनों बातों पर अगर गौर करें तो यही तीन बातें इस शहर के पॉपुलेशन को बढ़ा दे रही हैं। शहर के आस पास के जिलों के अलावा दूसरे प्रदेशों से लोग यहां रहने के लिए चले आ रहे हैं। लेकिन समस्या यह नहीं है कि लोग बाहर से आ रहे हैं समस्या यहां है कि अधिकतर लोग शहर में रहने का ठिकाना बना रहे है। जिसका सीधा असर यहां सुविधाओं की कमी के रूप में दिखायी दे रहा है।

फ्लोटिंग पॉपुलेशन भी है वजह
पैनल मेम्बर्स ने शहर की समस्याएं बढ़ाने में यहां हर रोज आने वाले वाले फ्लोटिंग पापुलेशन को भी जिम्मेदार ठहराया। रिलीजन, एजुकेशन व बिजनेस के उद्देश्य से हर रोज इस शहर में लाखों की संख्या में लोग आते हैं। निश्चित ही इनके आने से शहर को आमदनी होती है लेकिन दूसरी तरफ ये यहां की सीमित सुविधाओं का उपभोग करते हैं जो समस्या का कारण बनती है। इसके अलावा शहर का एक्सटेंशन नहीं हो रहा है। शहर के बाहर बड़े पैमाने पर जमीनों की खरीद फरोक्त हो रही है जिससे उनके रेट में जोरदार इजाफा हुआ है। लेकिन उन जमीनों को लोग इन्वेस्टमेंट के नजरिये से खरीद रहे हैं। कोई भी शहर के बाहर जाकर रहने को तैयार नहीं है।

रहेंगे तो जायेंगे आयेंगे कैसे ?
बाहर रहने को तैयार भी हो तो कैसे न तो सड़कें सही है और न ट्रांसपोटेशन का बेहतर इंतजाम है। प्राइवेट व्यवस्था है लेकिन उनकी अपनी मनमानी है। अगर कोई शहर के सटे बाहरी इलाके में रहने जाने की सोचता भी है तो उसे वहां से आना जाना पहाड़ लगता है। सरकारी व्यवस्था का कहीं कोई अता पता ही नहीं है। खुदा न खास्ता किसी तबीयत अगर खराब हो जाये तो उसे इलाज के लिए शहर में ही आना होगा। सड़क खराब है, साधन मिलने में देर हुई तो बहुत हद तक संभव है कि वह हॉस्पिटल तक पहुंचते पहुंचते ही रास्ते में दम तोड़ दे।  




बातें जो सामने आयी
- पब्लिक में अवेयरनेस की कमी है।
-एडमिनिस्ट्रेशन अपनी तय जिम्मेदारियों का सही तरह से निर्वहन नहीं करता है।
-शहर का एक्सटेंशन जरूरी है।
-एक्सटेंशन के लिए सड़कों से लेकर ट्रांसपोटेशन तक की व्यवस्था बेहतर हो।
-फ्लोटिंग पॉपुलेशन के लिए रूट्स का निर्धारण सही तरीके से हो।
-एडमिनिस्ट्रेशन नहीं चाहता है कि शहर का एक्सटेंशन हो।
-एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर्स में इच्छाशक्ति की कमी है। जो नियम काननू का पालन सही तरीके से नहीं करा पा रहे हैं।
-शहर को एक मेट्रो रेलवे की बहुत जरूरत है जो बाहरी इलाकों को शहर से जोड़े।
- नो ट्रैफिक जोन, सर्कुलर ट्रैफिक सिस्टम लागू हो।
-पार्किंग की एक बेहतर व्यवस्था हो।
-शहर के बाहर घर-मकान बनाने वालों को सुविधाएं मिले।

 

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आबादी बढ़ रही है लेकिन सुविधाओं का हर जगह टोटा है। अगर हमें शहर को बेहतर बनाना है तो सबसे पहले शहर के कुछ स्थानों को नो ट्रैफिक जोन डिक्लेयर करना होगा। सर्कुलर ट्रैफिक सिस्टम डेवलप करना होगा। सिंगल वे सिस्टम को पूरी तरह से अपनाना होगा। शहर में छोटी इलेक्ट्रिक बसें चला सकते हैं। किसी बड़े ग्राउंड पर अंडर ग्राउंड पार्किंग भी बना सकते हैं। इसके अलावा ऑफिसर्स को उनकी तय जिम्मेदारियों का सही तरीके से निर्वहन करना होगा। नियम तो है लेकिन उनके पालन कराने वाला कमजोर है जिसके चलते प्रॉब्लम्स बढ़ रही है।
डॉ। रत्नाकर त्रिपाठी,  सोशल वर्कर

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मेरी नजर में अगर शहर की सड़कें और ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार कर दिया जाय तो शहर को बहुत हद तक सुधारा जा सकता है। इसके लिए पब्लिक को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी व एडमिनिस्ट्रेशन को भी। शहर में एन्क्रोचमेंट एक बड़ी समस्या है उस पर कड़ाई से एक्शन लेने की जरूरत है। ट्रैफिक सिस्टम व सड़कें दुरुस्त हो गयी तों शहर का एक्स्टेंशन अपने आप ही होने लगेगा। जो नियमों की अनदेखी करे उसके खिलाफ कड़ा एक्शन लिया जाये। सीसी टीवी कैमरे लगाकर आप निगरानी कीजिए।
नारायण द्रविड़, रंगकर्मी

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इस शहर की स्थिति को सुधारने के लिए मेट्रो रेलवे की बहुत जरूरत है। मेट्रो के आने से शहर का विस्तारीकरण अपने आप संभव होगा। दूसरी बात सड़कों की न्यूनतम उम्र तय हो और अगर निश्चित आयु से कम समय में सड़क खराब होने पर उसकी वसूली संबधित ठेकेदार से की जाय। पैदल चलने वाले और साइकिल सवारों के लिए सड़कों पर अलग से व्यवस्था की जाये। इसके लिए सड़कों के किनारे अवैध रूप से बने इमारतों का डिमॉलिशन जरूरी है। नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित कराया जाये। पब्लिक को भी अपनी जिम्मेदारियों का आभास कराया जाय।
चेतन उपाध्याय, सोशल वर्कर

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मेरी नजर में शहर के सुधार की शुरुआत सड़कों और ट्रैफिक से होनी चाहिए। ऑटो और रिक्शा वालों के लिए बनाये गये नियमों को कड़ाई से पालन हो। उनकी रूट्स तय हों और किराया भी। सड़कों पर एन्क्रोचमेंट, छुट्टा पशुओं के खिलाफ अभियान चलाया जाये। एडमिनिस्ट्रेशन को चाहिए कि शहर के एक्सटेंशन को बढ़ावा दे। पब्लिक ट्रांसपोटेशन की व्यवस्था बेहतर हो। इन सब के अलावा नियमों का पालन सही तरीके से कराया जाये। किसी के लिए कुछ नियम और किसी के लिए कुछ यह नहीं चलेगा।
रीता अग्रवाल, सोशलाइट