सक्सेस के किस्से दुनिया भर से आ रहे

महिलाओं का संघर्ष अब पीछे छूट रहा है और उनकी सक्सेस के किस्से दुनिया भर से आ रहे हैं। इंटरनेशनल वीमेंस डे पर उनके संघर्ष और उनकी सक्सेस दोनों ही इश्यूज पर चर्चा हो रही है। इस दौरान शुक्रवार को आईनेक्स्ट द्वारा 'लेडीज इन द लीड रोल' पर आयोजित इस प्रोग्राम में गेस्ट्स ने अपनी बातें खुल कर रखी

अपनी बातें रखने वाले बनते हैं लीडर

लीडर वही बनता है जो अपनी बातें रख सके। कॉलेज की कमियों का विरोध करती थी तो सीनियर्स कहते, तीन साल की बात है, पढ़ाई करो और निकलो। लेकिन जब स्टूडेंट्स यूनियन इलेक्शन का वक्त आया तो मैं आगे बढ़ी। इलेक्शन के दौरान कई कमेंट सुनने को मिले। लड़की समझ कर लड़के दबाने की कोशिश करते। कैंपेनिंग के दौरान भी परेशानियां कम ना थी। लेकिन मैंने इसका मैंने सामना किया और आज मै पुसू सेक्रेटरी हूं। मैंने अपनी बातें रखी तो मैं लीडर बन सकी और अब स्टूडेंट्स की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करती हूं।

अनुप्रिया,

सेक्रेटरी, पीयू स्टूडेंट्स यूनियन

हमेशा खुद से रहा कांपटीशन

जब दूसरे इस काम को कर सकते है तो मै क्यों नहीं कर सकती। मेरा हमेशा खुद से कांपटीशन रहा है। खुद से ही लड़ती रही, संघर्ष किया और मुकाम पाया। इस मुकाम के रास्ते में कई तरह की प्रॉब्लम्स आई। लड़कों ने कमेंट किया, रास्ता रोकने की भी कोशिश की। क्योंकि आज भी लड़के लड़कियों को आगे बढ़ते पचा नहीं पाते। लेकिन मैंने उन कमेंट्स को भी पॉजिटिवली लिया, अपनी एनर्जी को अपने काम में लगाया। बस आगे बढ़ती गई। शुरुआत में फैमिली से भी मुझे विरोध करना पड़ा, लेकिन मेरे कांफिडेंस के आगे फैमिली भी झुकी।

मैथिली,

असिस्टेंट मैनेजर, सिनेपोलिस पटना

घर से लेकर बाहर तक स्ट्रगल है

शुरुआत से ही स्ट्रगल मेरी लाइफ का हिस्सा रहा। इनिशियली मैं केरला में रही। वहां का इंवायरमेंट काफी पॉजिटिव था। उसके बाद मै विशाखापट्टम में रही, वहां तक सबकुछ ठीक रहा। लेकिन जब शादी के बाद मैं पटना आई तो सब बदल गया। यहां हर चीज में कॉम्प्रोमाइज करना पड़ता था। ससुराल में आए दिन फास्टिंग करने का ट्रेडिशन था। मेरी एनर्जी हर टाइम फास्टिंग में ही लग जाती थी। फिर मैने खुद के बल पर फास्टिंग का स्टॉप किया। वहीं बाहर निकलो तो लोगों का कमेंट सुनने को मिलते थे। यहां पर लोग काफी घूर कर देखते हैं।

शंपा शर्मा,

एचओडी, मास कम्यूनिकेशन डिपार्टमेंट,

पटना वीमेंस कॉलेज

अधिकार मिलता नहीं लिया जाता है

आज भी महिलाएं पति का हाथ पकड़ कर चलती हैं। पंचायत से लेकर वार्ड काउंसलर तक महिलाओं के लिए सीटें रिजर्व हैं। लेकिन महिलाएं हर जगह अकेली नहीं जाती। पति के सहारे की जरुरत उन्हें पड़ती है। जब महिलाएं अपने अधिकार की बातें करती हैं तो उसके उपर दबाव दिया जाता है। लेकिन आज महिलाएं सशक्त हो चुकी है। बस उसे समझने की देर है। जो महिलाएं अपने इस अधिकार को समझ चुकी हैं उन्हें किसी के सहारे की जरुरत नहीं होती। इसकी शुरुआत घर से होनी चाहिए। मैंने अपनी लाइफ में ऐसा ही किया है।

आभा लता,

मेंबर, पीएमसी स्टैंडिंग कमेटी

घर में बोल्ड तो बाहर भी बोल्ड

जो घर में बोल्डली सारे प्रॉब्लम को फेस करने की ताकत रखती हैं, वही महिला बाहर भी बोल्ड हो सकती है। आज मैं जो भी हूं वो इसी वजह से हूं। शुरुआत से ही मैंने बोल्डली हर प्रॉब्लम फेस किया है। आज भी एक महिला होने के नाते कई चीजें सुननी पड़ती हैं। लेकिन मैं उसी तरह से उसका सामना करती हूं। लड़की को हमेशा सोसाइटी में यह एहसास दिलाया जाता है कि वो कमजोर है। महिलाओं को हर कदम पर प्रूव करने की जरुरत पड़ती है।

पल्लवी विश्वास,

रंगकर्मी एंड लेक्चर, भारतीय नृत्य कला मंदिर

बोल्डनेस से मिलता है लीड रोल

जिसमें बोल्डनेस हो और आगे बढऩे का कांफिडेंस हो उसे ही लीड रोल मिलता है। मैं बोल्ड हूं यह मुझे पता है। मैं वही करूंगी जो दिल में आएगा। कभी गलत नहीं करूंगी। बस सोसायटी का थोड़ा माइंडसेट चेंज करना पड़ेगा। महिलाओं को पंचायत में स्पेस तो मिल गया। उन्हें 50 परसेंट रिजर्वेशन मिल गया, लेकिन शहर के अंदर कितनी फैसिलिटी दी गई है। महिलाएं वो नहीं कर पातीं जो करना चाहती हैं।

गुलफिशां जबी, काउंसलर, वार्ड नं 53.

फैमिली सपोर्ट भी जरूरी

हम अपने कॅरियर को लेकर बहुत ही कांशस रहते हैं। मैं शुरू से मॉडलिंग में आना चाहती थी। मेरे फैमिली वालों ने काफी सपोर्ट किया। मैं अपने लाइफ में कंप्रोमाइज नहीं कर सकती हूं। इस फील्ड में आने के बाद कई प्राब्लम आती है। कई तरह के कमेंट भी सुनने पड़ते हैं। लेकिन मैं हर कमेंट को इग्नोर कर आगे बढ़ती रही। लड़कों को तो हम कुछ कह नहीं सकते, बस अपना माइंडसेट चेंज करना पड़ेगा।

स्वाति शर्मा, मॉडल

अधिकार दिलाने में मिलता है सैटिस्फैक्शन

मैंने अपना एजुकेशन कई चीज में पूरा किया। जॉब भी करने लगी। लेकिन सैटिस्फैक्शन नहीं हुआ। बार-बार सोचती कि पंचायत लेवल पर उन महिलाओं का क्या होगा जो घर से निकल भी नहीं पाती हैं। मुझे इस संगठन से जुडऩे का मौका मिला। मैंने महिलाओं को एजुकेट करना शुरू किया। ढाई हजार से अधिक महिलाओं को टे्रनिंग दे चुकी हूं। मुझे सैटिस्फैक्शन हो रहा है। इसके लिए मुझे संघर्ष करना पड़ता है। शाहिना परवीन, स्टेट हेड, हंगर प्रोजेक्ट.