पापमोचनी एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है, जो इस वर्ष 31 मार्च को है। इस दिन एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन चार भुजाओं वाले भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की जाती है। पापमोचनी एकादशी के नाम से ही प्रतीत है— पाप को नष्ट करने वाली एकादशी।

व्रत एवं पूजा विधि

इस व्रत का प्रारंभ दशमी तिथि से ही हो जाता है। इस दिन व्रती को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। फिर मन, कर्म और वचन से भगवान श्री विष्णु की प्रार्थना करें। अगले दिन एकादशी को सुबह में स्नान करके संकल्प के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। इसके बाद भगवान के समाने बैठकर पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा का पाठ करें या सुनें।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी के दिन जागरण करने से भी पुण्य मिलता है। अगले दिन द्वादशी को स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की अराधना करें, उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उसे दक्षिणा दें। उनको विदा कराने के बाद खुद भी भोजन करें। 

पापमोचनी एकादशी कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था, राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा कि मनुष्य जो जाने अनजाने पाप कर्म करता है, उससे कैसे मुक्त हो सकता है? तब उन्होंने इस दिन की महत्ता के बारे में विस्तार से बताया।

लोमश ऋषि ने राजा मान्धाता को एक कहानी सुनाई। वह कहानी कुछ इस तरह से है:

चैत्ररथ नाम के सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी तपस्या में लीन थे। एक दिन उस वन में अप्सरा मंजुघोषा की नज़र उन पर पड़ी तो वह मोहित हो गई। इसके बाद अप्सरा उनको अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अनके तरह के प्रयास करने लगी।

उस समय कामदेव भी उस वन से गुजर रहे थे, तभी उनकी नजर मंजुघोषा पर पड़ी और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा मंजुघोषा ने मेधावी को अपनी ओर आकर्षित कर लिया और वे दोनों काम क्रिया में रत हो गए। इस कारण से मेधावी भगवान शिव की तपस्या भूल गए।

काफी वर्षों के बाद मेधावी को अपनी गलती का एहसास हुआ कि वह भगवान शिव की भक्ति से विरक्त हो गए हैं। ऐसे में अप्सरा को इसका दोषी मानकर उसे पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। इससे दुखी होकर अप्सरा मेधावी से क्षमा याचना करने लगी। तब ऋषि मेधावी ने उसे चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करने को कहा।

काम वासना के वशीभूत होने से ऋषि मेधावी का तेज भी नष्ट हो गया था, इस वजह से उन्होंने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनका भी पाप नष्ट हो गया और अप्सरा मंजुघोषा को भी पिशाच योनी से मुक्ति मिल गई। इसके बाद वह स्वर्ग चली गई।

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