वो जमाना गया जब बाप कहता था और बच्चे सुनते थे। खास तौर से पिताजी लोगों का ये कहना कि मैं जो कहूंगा इस घर में वही होगा। ये था मोनोलॉग दौर। मगर अब जमाना बदल गया है। हर बच्चे के दिमाग में एक सवाल हमेशा रहता है और वो सवाल है 'क्योंÓ? हर बच्चे को इस सवाल का जवाब चाहिए। वरना वो बगावत भी कर सकता है। आज जमाना मोनालॉग नहीं डायलॉग का है। यानि कहिये ही नहीं बल्कि सुनिये भी और अपने बच्चों को बताइये कि आप क्या कह रहे हैं। क्यों कह रहे हैं और किसलिए कह रहे हैं। ये कहना है उन एक्सपट्र्स का जो शनिवार को आई नेक्स्ट की ओर से आयोजित पेरेंटिंग टुडे सेमिनार में शामिल हुए।

ग्लोरियस एकेडमी में आयोजन


लंका स्थित ग्लोरियस एकेडमी में हुए इस सेमिनार में सौ से ज्यादा यंग पेरेंट्स ने भागीदारी की। यहां एक्सपर्ट के तौर पर अलग-अलग फील्ड से शामिल लोगों को सुना। इसके बाद इंटरेक्टिव सेशन में अपनी उलझनों या अपने बच्चे से जुड़ी समस्याओं को रखा। एक्सपर्ट ने पेरेंट्स को बेहतरीन सुझाव भी दिये और गाइड भी किया। आप भी सुनिये कि किस एक्सपर्ट ने क्या कहा।

अंजलि अग्रवाल, सोशलिस्ट


स्पेशली मां लोगों से कहना चाहती हूं कि आज के छोटे बच्चों के पास बहुत सी बातें होती हैं जो वो मां से कहना चाहते हैं। जबकि मां लोगों के पास अपने बहुत से काम होते हैं। आप को अपने सारे काम छोड़कर उन्हें समय देना चाहिये और सुनना चाहिये। ये छोटी चीज है मगर इससे पेरेंट्स और बच्चों के बीच बॉन्डिंग मजबूत होती है।

डॉ। नयन कमलेश, डाइटिशियन


स्कूल एज वाले बच्चे ग्रोथ पीरियड में होते हैं। उनके खान-पान पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है। ऐसे बच्चों को प्रोटीन की ज्यादा जरूरत होती है। जरूरी नहीं कि बच्चों को जंक फूड से रोका जाये मगर उसकी लिमिट होना जरूरी है। शरीर को सारे पौष्टिक तत्व, विटामिन्स, एनर्जी, फाइबर्स मिलें तो कोई प्रॉब्लम नहीं।

डॉ। संतोष तिवारी, पेड्रिटिशियन


पेरेंटिंग के तीन गोल्स होते हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और संस्कार। स्वास्थ्य की बात करें तो दो चीजें जरूरी हैं। पहला, बीमारी से कैसे बचा जाए और दूसरा, बीमारी हो जाए तो कैसे ठीक हुआ जाए। याद रखिये कि पेट, सांस और इनफेक्शन से जुड़ी ज्यादातर बीमारियों की जड़ें घर में होती हैं। इसलिए घर में यदि साफ-सफाई का माहौल हो तो बच्चे भी हेल्दी रहेंगे।

डॉ। गिरीश चंद्र तिवारी, एजुकेशनिस्ट


हमारे शास्त्रों में जो लिखा है उस हिसाब से बच्चों को चार स्टेज में चार तरीके से ट्रीट करना चाहिए। पांच वर्ष तक के बच्चों को बिलकुल डांटे-डपटे नहीं। 5-10 वर्ष तक निगरानी में रखें। 10-15 तक उसे सही और गलत का अंतर समझाएं और 16 के बाद उससे मित्रवत व्यवहार करें। पेरेंट्स और टीचर्स दोनों की ये जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को सोशल बनाएं।

प्रो। संजय गुप्ता, साइकिएट्रिस्ट


मैं आज के पेरेंट्स से इतना ही कहना चाहता हूं कि आज जमाना बदल चुका है और पेरेंट्स को जमाने के साथ चलना होगा। आज टेक्निकल लेवल पर बच्चे और पेरेंट्स के बीच इतना बड़ा जेनरेशन गैप है जितना इतिहास में कभी नहीं था। आज के बच्चों को डांटना किसी अपराध से कम नहीं। उससे आप जो कहना या कराना चाहते हैं आपको लॉजिकली प्रूव करके कराना होगा, फोर्सली नहीं। ये भी जरूरी है कि आप जो कहें वो खुद कर के दिखाएं भी।

प्रो। सुषमा त्रिपाठी


आज की जेनरेशन के ज्यादातर बच्चे डिप्रेशन में जी रहे हैं। इसकी वजह पेरेंट्स ही हैं। बच्चे ना सुन ही नहीं सकते। उनकी ना सुनने की आदत पेरेंट्स की ही देन होती है। आज के बच्चों की हर डिमांड पूरी होती है। वो कुछ करना भी नहीं चाहते और ना जिम्मेदारी लेते हैं। जब उन्हें किसी वजह से ना सुनना पड़ता है तो उन्हें बहुत ज्यादा हर्ट होता है। बच्चों को ना सुनने की आदत दिलाना जरूरी है वरना उनके लिए काफी मुश्किल होगी।


एक्सपर्ट के tips


- कभी एक बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे से ना करें। इससे बच्चों में हीन भावना जन्म लेती है।
- अपने बच्चे को अपना डिपेंडेंट ना बनायें। उसे खुद चीजों को करने की आदत डालें ताकि उसे भी जिम्मेदारियों को एहसास होता चले।
- बच्चों की हर डिमांड पूरी ना करें। यदि समर्थ हो तो भी ना करें। कुछ डिमांड अपनी शर्तों पर पूरा करें और कुछ के लिए ना कहना भी सीखें।
- बच्चों के लेवल पर आने की कोशिश करें। यदि टेक्निकली पीछे हैैं तो कोशिश करें कि उनके बराबर पहुंचा जाए वरना जेनरेशन गैप बढ़ेगा।
- आज मोनोलॉग नहीं बल्कि डायलॉग का जमाना है। अपने डिसीजन ना सुनायें बल्कि लॉजिकली प्रूव करें कि आप जो कह रहे हैं वो सही है।
- सोशल नेटवर्क को लेकर अपने दिमाग में निगेटिव थॉट्स न रखें। आज के जमाने में ये जरूरी भी है।
- कोशिश करें कि कम्प्यूटर रूम में नहीं बल्कि कॉमन प्लेस पर हो जहां से कोई भी उसकी मॉनिटरिंग कर सके।
- बच्चों से अपनी बातें मनवाने का तरीका ये भी है कि बच्चों की जिद के टाइम उन्हें टास्क दें और पूरा होने पर बच्चे की डिमांड पूरी करें।


पेरेंट्स के कुछ खास सवाल


- मेरा बच्चा बहुत ज्यादा जिद करता है। जिस चीज पर अड़ जाएगा, वही करेगा। क्या करुं?
जवाब: उसे लॉजिकली समझाइये कि उसकी जिद सही नहीं है। या वो जो कर रहा है वो गलत है। उसे डांटने से वह और जिद करेगा।
- मेरा भी बेटा कोई भी बात नहीं सुनता। कुछ भी कहो, उसे इग्नोर कर देता है।
जवाब: आप भी अपने बच्चे को समझाइये। अपनी बात मनवाने के लिए उससे छोटी छोटी डील करिये जैसे आप ये करोगे तो ही ये होगा।
- मेरे दो बेटे हैं। छोटा अच्छा करता है जबकि बड़ा थोड़ा डल है। छोटे की तारीफ हो तो बड़ा जलता है?
जवाब: बड़ा बच्चा अगर इग्नोर फील करता है या राइवलरी फील करता है तो उसे चीजों में इनवॉल्व करिये। उसी से पूछिये कि आज छोटे ने ये काम अच्छा किया है तो क्या करना चाहिये। इससे वह वैल्यू फील करेगा और पढ़ाई में इनवॉल्व होगा।
- मैं चाहती हूं कि मेरी बच्चे के साथ अच्छी बॉन्डिंग हो मगर इसकी क्या लिमिट होनी चाहिए?
जवाब: ये अच्छी चीज है और इसमें पूरा इनवॉल्वमेंट होना चाहिए। आप उसका सपोर्ट करें। यदि फेसबुक यूज करना चाहता है तो उसकी टाइम तय करें। कोशिश करें कि इंटरनेट आपके प्रेजेंस में यूज करे।
- मेरा बेटा कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता। हर जगह लापरवाही। यहां तक कि अपने अंडरगारमेंट्स भी नहीं धुलता?
जवाब: उसे थोड़ी जिम्मेदारी दें। आप खुद करती रहेंगी तो उसे जिम्मेदारी का बोध नहीं होगा। उसके अंडरगारमेंट्स धुलना छोड़ दें। जब सारे गंदे हो जाएंगे तो उसे खुद फील होगा।
- मेरा बेटा क्रिकेटर बनाना चाहता है। समझ नहीं आता कि उसका सपोर्ट करुं या फिर उसे रोकूं?
जवाब: सपोर्ट करना बेहतर होगा साथ ही ये समझाना भी कि इसके अलावा और क्या क्या ऑप्शन हैं। बहुत बार बच्चों की चॉइस समय के साथ बदलती है। यदि उसमें कुछ पोटेंशियल दिखे तो आगे बढ़ायें नहीं तो उसे दूसरे ऑप्शन बताते रहें।
(नोट: ये सवाल सेमिनार में शामिल ओंकार, अनामिका सिंह, गरिमा श्रीवास्तव, सुधा अग्रवाल, विभा राय, शिल्पी जायसवाल आदि ने किये)