छोटी क्लास में पढ़ रहे बच्चों को मिल रहे बड़े- बड़े प्रोजेक्ट
प्रोजेक्ट बच्चों के और परेशान हैं पेरेंट्स
- स्कूलों ने प्रोजेक्ट के लिए बताए दुकानों के नाम
- बच्चों के प्रोजेक्ट से अभिभावक हो रहे परेशान
Meerut । गर्मी की छुट्टियां शुरु हो चुकी है, ऐसे में ज्यादातर बच्चे प्रोजेक्ट वर्क को पूरा करने में जुटे हैं। स्कूल से मिले प्रोजेक्ट वर्क ने बच्चों को परेशानी तो नहीं दी है, बल्कि पेरेंट्स की परेशानियां बढ़ा दी है। इन बच्चों की परेशानी रोजमर्रा की पढ़ाई से नहीं हो रही है, बल्कि इन्हें स्कूल की ओर से मिल रहे नए- नए प्रोजेक्ट ने काफी परेशान किया है। स्कूल से ऐसे-ऐसे प्रोजेक्ट बच्चों को दिए गए हैं, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि ये छोटी- छोटी क्लासेस में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स न होकर किसी प्रोफेशनल कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स हैं।
उम्र से बड़ा काम मिला
हाई स्कूल के स्टूडेंट निर्भव बताते हैं कि उनको स्कूल से मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम या सम सामायिक घटना पर प्रोजेक्ट तैयार करना है। इस प्रोजेक्ट को तैयार करते समय खासतौर पर इस बात का ध्यान रखना है कि इसमें कब, क्यों, कहां, कैसे, क्या, कौन जैसे प्रश्नों के जवाब मिलता हो। निर्भव बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट में उन्हें सरकारी पक्ष, जनता की राय, जिन पर घटना का अच्छा बुरा प्रभाव पड़ा हो। ये सब एक प्रोजेक्ट के तौर पर तैयार कर स्कूल में जमा करना है.क्लास एट के सुमित ने बताया कि उनको वर्किंग मॉडल बनाने के लिए कहा है, जिसमें फैक्ट्री व उससे बाहर निकलने वाले कचरे को दिखाना है।
कई पेज लिखने का आदेश
ऐसा नहीं है कि स्कूल में प्रोजेक्ट फाइल में विभिन्न खबरों की कटिंग कर लाने को कह रहा है। स्कूल की ओर से जो निर्देश जारी किया गया है, उसमें साफ कहा गया है कि मौजूदा घटनाक्रम को देखकर उसकी एक रिपोर्ट तैयार करें और यह रिपोर्ट कोई एक या दो पैरे में नहीं होना चाहिए। कम से कम कई पन्नों की रिपोर्ट लिखने को कही है। जिसे स्टूडेंट की जगह उनके पेरेंट्स पूरा कर रहे हैं।
रिश्तेदार भी जुटे
बच्चों के प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए उनके रिश्तेदार भी जुटे हैं। कुछ छात्र तो दुकानों पर पैसे देकर भी प्रोजेक्ट बनवा रहे हैं।
मिल रहे आर्डर
सिटी के बुक्स स्टोर में इस समय प्रोजेक्ट बनाने के लिए काफी आर्डर आ रहे हैं। यहां पर स्टूडेंट्स जिस तरह के भी प्रोजेक्ट की डिमांड करते हैं, उन्हें तैयार कर के दिया जा रहा है। जिसमें खासतौर पर वेस्ट मटीरियल से फ्लैश कार्ड बनाने का प्रोजेक्ट शामिल है। वहीं क्लास फाइव से नीचे के स्टूडेंट्स को भी स्कूलों की ओर से ऐसे प्रोजेक्ट दिए गए हैं। जिसको बनाने में उन्हें बड़ों की हेल्प लेनी पड़ रही है। इसके लिए पुराने शादी के कार्ड, पुरानी कापियों के कवर, कैलेंडर से खिलौने बनाने जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं।
सब कमीशन का है खेल
स्टूडेंट्स तो ये प्रोजेक्ट बना नहीं पा रहे है। स्कूल्स ने भी बकायदा पेरेंट्स को प्रोजेक्ट बनाने वालों के नाम बताकर प्रोजेक्ट बनाने को कहा है। वहीं शहर के कुछ नामचीन स्कूलों ने स्टूडेंट्स को प्रोजेक्ट बनवाने के लिए दुकानों के नाम भी बताएं हैं।
वर्जन
बच्चों को ऐसे प्रोजेक्ट बनाने को दिए है, जिसके लिए भटकना पड़ता है। स्कूलों ने कुछ शॉप्स के नाम भी बताए है जहां से प्रोजेक्ट बनने है।
रेनू, अभिभावक
मेरी बेटी सिक्थ में है, उसको अमूल की फैक्ट्री का मॉडल बनाने को दिया गया है। यह प्रोजेक्ट कहां मिलेगा, इसके लिए स्कूल ने दुकान भी बताई है।
आंचल, अभिभावक
स्कूल्स प्रोजेक्ट बनाने को देते है, लेकिन पेरेंट्स को बनाना पड़ता है, इससे बच्चों का तो कोई फायदा नही है फिर प्रोजेक्ट क्यों दिए जाते है।
अनुज, अभिभावक
समझ नहीं आता, ये प्रोजेक्ट क्यों दिए जाते है, पहले होमवर्क मिलता था तो बच्चे खुद उसे करते थे। जिससे उनको नॉलेज मिलती थी। लेकिन अब तो सब बना बनाया आता है।
मोन, अभिभावक