-शौकीन दे रहे मुंहमांगी कीमत, 1500 से 2500 तक में ही रही एक तोते की बिक्री

-हर महीने एक करोड़ से ज्यादा कमा रहे धंधेबाज

GORAKHPUR: शहर में जानवरों के साथ ही दुर्लभ पक्षियों की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। खासकर इन दिनों शौकीनों की डिमांड पर तस्कर शहर में दुर्लभ प्रजाति के पहाड़ी तोते खपाने में लगे हैं। नेपाल के रास्ते पहाड़ी तोतों का कारोबार काफी तेजी से फल-फूल रहा है। वहीं, नेपाल की पहाडि़यों से लाए जा रहे इन पक्षियों को लेकर पुलिस पूरी तरह अंजान है। शहर के मीर शिकार टोला से लेकर अन्य पक्षी बेचने वाली दुकानों पर खुलेआम इनका सौदा किया जा रहा है और तस्करों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही। उधर, तस्करी के कारण इन तोतों की संख्या नेपाल में काफी कम हो गई है। इस वजह से वहां इनकी खरीद-बिक्री पर रोक लगी है। शहर में चल रहे तस्करी के इस खेल की जानकारी होने पर दैनिक जागरण - आई नेक्स्ट ने पड़ताल की तो चौंकाने वाले खुलासे हुए।

खुलेआम चल रही अवैध मंडी

मीर शिकार टोला में जानवरों व पक्षियों की मंडी अवैध रूप से चलती है। यहां कोई भी प्रतिबंधित जानवर या पक्षी चाहिए तो मिल जाएगा। बस जितना तगड़ा प्रतिबंध उस हिसाब से पैसा देना होगा। यहां पहाड़ी तोते की खूब बिक्री होती है। तोते के एक बच्चे का कारोबारी 1500 स दो हजार रुपए लेते हैं। किसी भी पक्षी को पिंजड़े में कैद करके रखना अपराध है लेकिन यहां इस पर किसी तरह की कोई सख्ती नहीं है।

सेटिंग से चल रहा धंधा

दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के स्टिंग ऑपरेशन में पता चला कि पटना में तोते का कारोबार बड़े पैमाने पर होता है। नेपाल सीमा पर तस्कर सेट हैं। वह पहाड़ी इलाके से तोता लाकर पटना पहुंचाते हैं। इसके लिए उनकी सेटिंग होती है। वह पुलिस को पटाकर धंधा करते हैं। शहर में हर महीने एक करोड़ का यह कारोबार नियम को ठेंगा दिखाने वाला है। नेपाल सीमा से लेकर पटना तक कहीं भी सख्ती होती तो यह कारोबार नहीं चल पाता लेकिन हर जगह खुली छूट है।

दुकानों पर भी देते हैं सप्लाई

ऐसा नहीं है कि पहाड़ी तोतों का कारोबार सिर्फ मीर शिकार टोले में ही हो रहा है। बल्कि शहरभर में करीब एक दर्जन से अधिक दुकानों पर दुर्लभ जानवरों और पक्षियों की खरीद-फरोख्त चल रही है। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट को इन दुकानों पर पहाड़ी तोते की भरमार मिली। किसी भी दुकान पर 500 रुपए से कम में तोता अवेलबल नहीं था। एक दुकानदार ने बताया कि इन्हें मुर्गे के चूजों की तरह छिपाकर लाया जाता है। नेपाल सीमा पर इसे मुर्गी का चूजा बताया जाता है और वैसे ही कागज के कार्टन से पटना तक लाया जाता है। रिपोर्टर ने कई दुकानदारों का स्टिंग किया। लगभग सभी का यही कहना था कि तोता नेपाल की पहाड़ी से आता है इसीलिए महंगा पड़ता है।

दुकानदार से स्टिंग में हुई बातचीत

रिपोर्टर - पहाड़ी तोता चाहिए।

दुकानदार - हां, मिल जाएगा।

रिपोर्टर - कितना दाम लगेगा?

दुकानदार - एक का 1500 और अगर जोड़ा लेना है तो 2500 देना होगा।

रिपोर्टर - बोलने वाला है कि नहीं?

दुकानदार - प्योर ब्रीड है, लेकिन अब थोड़ा बड़ा हो गया है। जैसा सिखाएंगे वैसा बोलेगा।

रिपोर्टर - लेकिन दाम बहुत अधिक बता रहे हैं?

दुकानदार - मिलता कहां है। नेपाल से आता है और पहले का अब थोड़ा ही बचा है। अब रेट और महंगा हो जाएगा।

रिपोर्टर - नेपाल से कैसे आता है, कोई रोक-टोक नहीं क्या ?

दुकानदार - रोक क्यों नहीं है, सब सेटिंग से आता है।

रिपोर्टर - आप लोग जाते हैं नेपाल ?

दुकानदार - नहीं कुछ लोग हैं जो लेकर यहां हर दुकान पर तोता दे जाते हैं।

रिपोर्टर - कितने का कारोबार होता होगा नेपाल सीमा से तोता का?

दुकानदार - तोता और कछुआ का बड़ा कारोबार होता है। इसमें कई लोग शामिल होते हैं। करोड़ों का कारोबार होता है।

क्या कहता है भारत वन्य संरक्ष्ाण अधिनियम

सरकार ने 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था। इसका मकसद वन्यजीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था। इसे 2003 में संशोधित किया गया। तब इसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रखा गया। इसके तहत दंड और जुर्माना को कहीं कठोर कर दिया गया।

क्या है दंड

अगर जानवरों का शिकार किया गया है तो उसमें कम से कम तीन साल के जेल का प्रावधान है, हालांकि इस सजा को सात साल तक बढाया जा सकता है। कम से कम दस हजार रुपए जुर्माना हो सकता है।

न्यूनतम सजा - तीन साल

अधिकतम सजा - सात साल

न्यूनतम आर्थिक दंड - दस हजार रुपए

अधिकतम जुर्माना - 25 लाख रुपए

दूसरी बार अपराध करने पर भी इतनी ही सजा का प्रावधान। लेकिन कम से कम जुर्माना 25 हजार रुपए तक हो सकता है।

वर्जन