-सिर्फ ड्राइवर और हेल्पर को पकड़ने तक ही सीमित पुलिस की कार्रवाई

-पुलिस की ढिलाई का ही हमेशा पशु तस्कर उठाते हैं फायदा

BAREILLY: जिले में पशु तस्करी की एक लम्बी कहानी है, जो वर्षो पुरानी है। योगी सरकार आयी तो लगा इस पर कंट्रोल लग जाएगा, लेकिन सरकार की सख्ती काकस को तोड़ न सकी। पिछले दिनों सिपाही संजीव पोशवाल की पशु तस्कर वाहन से कुचल कर हत्या इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सिपाही की मौत के लिए जिम्मेदार बरेली पुलिस के सिपाही से लेकर एडीजी तक को ठहराया जाए, तो बिल्कुल गलत नहीं होगा। क्योंकि पुलिस जब भी पशु तस्करों को पकड़ती है, तो सिर्फ पशु ले जा रहे वाहनों के ड्राइवर-हेल्पर के खिलाफ कार्रवाई कर शांत हो जाती है। कभी किसी अफसर ने तस्करों के गैंग के करीब तक जाने की जरूरत नहीं समझी। आखिर तस्करों के गैंग से बरेली पुलिस का ऐसा क्या दोस्ताना है कि वह उनकी गिरेबां पर हाथ डालने से हिचकती है।

अलग-अलग वाहनों में पश्ाु तस्करी

पशु तस्करी में अलग-अलग वाहनों का इस्तेमाल किया जाता है। कभी तस्कर ट्राला तो कभी ट्रक का इस्तेमाल करते हैं। डीजल टैंक को वेल्डिंग कर पशु तस्करी की जाती है। लग्जरी गाडि़यों की डिग्गी व पिछली सीट में पशुओं को भरकर ले जाया जाता है। पुलिस, पार्टी व अन्य के स्टीकर व झंडे भी वाहनों पर लगाए जाते हैं।

गाड़ी छोड़कर भाग जाते हैं

जब भी पुलिस को पशु तस्करी की सूचना मिलती है तो पुलिस गोवंशीय पशु से भरी गाड़ी का पीछा करने में लग जाते हैं। कई बार इसका मेसेज आगे की चौकी या थाना पुलिस को दी जाती है तो कई बार नहीं भी दी जाती है। जब पशु तस्कर खुद को फंसता देखते हैं तो वह गाड़ी को साइड में छोड़कर भाग जाते हैं। यदि गाड़ी पकड़ी जाती है तो पुलिस ड्राइवर व हेल्पर को पकड़कर बंद कर जेल भेज देती है।

फर्जी ड्राइवर हो जाते हैं तैयार

कई मामलों में ड्राइवर मौके से नहीं पकड़े जाते हैं, ऐसे मामलों में पशु तस्कर फर्जी ड्राइवर तैयार कर लेते हैं। यह ड्राइवर अपना लाइसेंस लगाकर कोर्ट से गाड़ी भी छुड़वा लेते हैं। कई बार तस्कर फर्जी शख्स को कुछ रुपए देकर कोर्ट में सरेंडर कराकर जेल भिजवा देते हैं और फिर उसकी जमानत भी करा लेते हैं। प्रेमनगर और मीरगंज में इस तरह के मामले पकड़े गए थे।

रामपुर से ही जुड़ते हैं तार

बरेली में जब भी पशु तस्करी का बड़ा मामला पकड़ा गया तो इसके तार हमेशा पड़ोसी जिले रामपुर से ही जुड़े निकले। पुलिस जांच में आया कि पशु कटान के लिए रामपुर ही लेकर जाए जा रहे थे, लेकिन कभी भी पुलिस ने रामपुर में जाकर धरपकड़ नहीं की। अब सिपाही हत्याकांड में भी रामपुर का कनेक्शन आया है।

क्या टोल प्लाजा के कर्मचारी मिले

रामपुर पहुंचने से पहले पशु तस्करों की गाड़ी फतेहगंज पश्चिमी टोल प्लाजा से होकर गुजरती है। टोल प्लाजा पर सीसीटीवी कैमरे भी लगे होते हैं लेकिन कभी भी यहां कोई भी पकड़ा नहीं जाता है। सिपाही हत्याकांड में मौके से कथित पत्रकार से वीडियो डिलीट करने के बाद सवाल खड़े हो रहे हैं कि टोल प्लाजा के कर्मचारी भी तस्करों और पुलिस की सेटिंग से मिले हुए होते हैं।

पशु तस्करी में पुलिस से 10 सवाल

-तह तक जाकर पूरा नेटवर्क क्यों ध्वस्त नहीं करती है

-पुलिस सिर्फ ड्राइवर और हेल्पर को ही क्यों पकड़ती है

-ड्राइवर और हेल्पर से पूछताछ कर मालिक का क्यों नहीं पता लगाती पुलिस

-किसने तस्करों को पशु बेचे, उसका पुलिस क्यों नहीं पता लगाती

-पशु खरीदने वालों के बारे में पुलिस क्यों नहीं जानकारी करती

-पशु कटान करने वालों की धरपकड़ में पीछे क्यों हट जाती पुलिस

-वाहन नंबर व चेचिस नंबर से आगे की कार्रवाई क्यों नहीं की जाती

-पशु तस्करों की संपत्ति क्यों जब्त नहीं की जाती है

-पुलिस और तस्करों की मिलीभगत का नेटवर्क क्यों ध्वस्त नहीं किया जाता

-पुलिसकर्मियों को मनपसंद थाने-चौकी में पोस्टिंग क्यों मिल जाती है