भूकंप के बाद पीएमसीएच में डर से चीखते-चिल्लाते रहे पेशेंट

PATNA: हर कोई अपनी जान की परवाह करता है चाहे कोई मारे या प्राकृतिक आपदा आ जाए। पीएमसीएच के डॉक्टर भी इससे अलग हरगिज नहीं है, पर हद तो यह है कि जिनके जिम्मे पेशेंट की जान बचाने का जिम्मा है वे एक भूकंप के झटके के बाद इमरजेंसी से फुर्र हो गए। इमरजेंसी में पेशेंट के अटेंडेंट लोगों ने बताया कि करीब आधे घंटे तक किसी का चेहरा तक नहीं दिखा। नर्से भी कहां पीछे थी सभी भाग चले। वहीं, पेशेंट डर से चीखते-चिल्लाते रहे। आलमगंज से आए मो। जियाउद्ीन ने बताया कि मैं भूकंप के समय इमरजेंसी में ही था।

कोई भागा, कोई कराहता रहा

मो। जियाउद्ीन ने बताया मैंने देखा कि जो पेशेंट चलने-फिरने की स्थिति में थे, वे इमरजेंसी से बाहर निकल पडे़, लेकिन अफसोस की बात है कि अधिकांश पेशेंट चलने से लाचार थे। जो नहीं भी थे वे स्लाइन चढे़ होने या ऑक्सीजन मास्क आदि से लगे रहने के कारण अपने बेड पर ही पड़े रहे। हद तो यह है कि कई पेशेंट का स्लाइन खत्म हो गया तो भी उसे बदलने के लिए कोई मौजूद नहीं था। इमरजेंसी तो जैसे अफरा-तफरी का माहौल था।

आखिर किस बात की कसम

डॉक्टर को इस धरती पर जीता-जागता भगवान कहा जाता है, लेकिन पेसेंट को छोड़ भागने वालों से यह सवाल जरूर पूछना चाहिए कि आखिर डिग्री के समय लिए शपथ को क्यों भूल जाते हैं। पेशेंट और डाक्टर के रिलेशनशिप को क्या बार-बार दोहराने की जरूरत है या इसे स्वार्थ के नई परिभाषा दिया जाना चाहिए। आखिर मुकाम उसे मिलता है जो जूझते हैं न कि अपने जिम्मेदारियों से भाग खड़े होते हैं।

भगवान की मर्जी चाहे जो कर ले

जहां एक ओर भूकंप के समय पीएमसीएच में सब जान बचाकर भाग रहे थे, वहीं दूसरी ओर ऐसे जज्जे की कमी नहीं थी, जो बेहद सहज भाव से अपने बेड पर ही रहे। सैदपुर के रहने वाले मो। नेइम एक ऐसे ही शक्स हैं। जब उनसे भूकंप के समय का हाल पूछा तो कहा कि ये तो कुदरत की चीज है, हम इंसान उसके आगे क्या बिशात रखते हैं। जो हो, वे तो उसकी मर्जी है। उनकी बेटी रोजी ने बताया कि उन्हें सांस लेने की तकलीफ है और वे इमरजेंसी वार्ड में क्फ् अप्रैल से एडमिट हैं।

अफवाह का बाजार दूसरे दिन भी गर्म रहा

शनिवार को पीएमसीएच के ईएनटी डिपार्टमेंट से किसी पेशेंट के घबराकर भागने और रविवार को हथुआ वार्ड से कूदकर भागने की अफवाह से हर जगह लोग परेशान रहे। इसके कारण बेहद बीमार पेशेंट भी नींद नहीं ले सके। कई वार्डो में डर से अटेंडेंट पेशेंट के साथ बेड पर रहने की बजाय जमीन पर ही बैठे रहे।

मैने देखा कि सभी भाग रहे थे, कोई भी डॉक्टर भूकंप के झटके के बाद देर तक मौजूद नहीं था।

-लीलावती, मधुबनी

ये तो कुदरत की चीज है, हम इंसान उसके आगे क्या बिसात रखते हैं। जो हो, वे तो उसकी मर्जी है।

-मो। नेईम,सैदपुर