-जूनियर डॉक्टरों से भरोसे चल रहा है मेडिकल कॉलेज में मरीजों का इलाज

-कॉलेज के टीचर नहीं करते इलाज, सिर्फ एक राउंड से होती है खानापूर्ति

GORAKHPUR: बीआरडी मेडिकल कॉलेज अब सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल होगा। एडमिनिस्ट्रेशन ने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है। मगर इलाज करने वाले सुपर स्पेशलिस्ट तो दूर सीनियर कंसल्टेंट भी नहीं होंगे। जी हां, वहां मरीजों का इलाज जूनियर डॉक्टर करेंगे। सुनकर हैरान मत हो क्योंकि यह हकीकत है पूर्वाचल नहीं बिहार और नेपाल के लिए भगवान का मंदिर बने बीआरडी मेडिकल कॉलेज की। जहां पूरा इलाज जेआर (जूनियर रेजीडेंट) के भरोसे चल रहा है। मौत अगर होती है तो जेआर के अधूरे नॉलेज से और अगर नई जिंदगी मिलती है तो जेआर की मेहनत से। मेडिकल कॉलेज में सिर्फ गोरखपुर नहीं बल्कि महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थ नगर, संतकबीर नगर, गोंडा के साथ बिहार और नेपाल से सैकड़ों मरीज इलाज के लिए आते हैं। इन सभी मरीजों की जिंदगी जेआर के हाथ में होती है क्योंकि सीनियर कंसल्टेंट सिर्फ राउंड लेने आते हैं और इलाज जेआर करते हैं। कंडीशन क्रिटिकल होने पर भी सीनियर कंसल्टेंट बमुश्किल ही वार्ड का राउंड लेते हैं।

क्यों न हो मौत

गोरखपुर नहीं पूर्वाचल के साथ बिहार और नेपाल के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज किसी एम्स या पीजीआई से कम नहीं है। कई डॉक्टर से दिखाने के बाद मरीज इलाज के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज पहुंचता है। उसे उम्मीद रहती है कि वहां कॉलेज के सीनियर टीचर (सीनियर डॉक्टर) उनका इलाज उचित ढंग से करेंगे। वे हॉस्पिटल से ठीक होकर बाहर आएंगे। मगर हॉस्पिटल में एडमिट होते ही उनकी सारी उम्मीदें तब टूट जाती है, जब बीएसटी बनाने से लेकर शाम के इलाज तक उन्हें टीचर का इलाज तो दूर शक्ल तक नजर नहीं आती। पूरा काम जेआर करता है। जो अभी पढ़ाई कर रहा है। मतलब जिस बीमारी के बारे में वह अभी जान रहा है और स्पेशलिस्ट बनने का प्रयास कर रहा है, वह मरीजों का इलाज कर रहा है। ऐसे में मरीजों का इलाज कितना बेहतर होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहींहै। कॉलेज के टीचर बमुश्किल मॉर्निग राउंड लेते हैं। बाकी पूरा इलाज जेआर करते हैं। हालांकि इलाज की डिटेल समय-समय पर जेआर अपने सीनियर जेआर और टीचर को देते रहते हैं।

भ्00 बच्चों की जिंदगी फ् जेआर के भरोसे

बीआरडी मेडिकल कॉलेज की पहचान अब उसकी क्वालिटी और सुविधा से नहीं बल्कि इंसेफेलाइटिस से हो रही है। जहां ऐसा कोई दिन नहीं बीतता, जब दो से तीन बच्चों की मौत न होती हो। इसके लिए शासन ने भी मेडिकल कॉलेज में न सिर्फ क्00 बेड का स्पेशल वार्ड बनाया बल्कि पूर्वाचल का पहला एनआईसीयू सेंटर भी खुला। मगर मौत का सिलसिला जारी है। क्योंकि सुविधा तो मिल गई, मगर इनका सही यूज करने वाले सीनियर डॉक्टर राउंड के अलावा इन वार्डो में आना ही नहीं चाहते। फिर इलाज कैसे होता है? शायद ऐसा सोच रहे होंगे। वार्ड में भर्ती सभी मरीजों का इलाज जेआर कर रहे हैं। मतलब भ् जेआर पर करीब भ्00 बच्चों की जिंदगी की जिम्मेदारी है। क्योंकि मेडिकल कॉलेज में करीब क्भ् जेआर है। एक शिफ्ट में 8 घंटे के लिए ड्यूटी लगती है। ऐसे में भ् जेआर इन बच्चों का इलाज करते हैं। मगर जेआर-क् सिर्फ आदेशों का पालन करते हैं, क्योंकि सीनियर डॉक्टर सिर्फ राउंड लेने वार्ड में आते हैं।

बाक्स -

मेडिकल कॉलेज में पीडियाट्रिक वार्ड

वार्ड नंबर म् - भ्ब् बेड

वार्ड नंबर क्0 - भ्ब् बेड

इपेडमिक वार्ड

वार्ड नंबर क्ख् - भ्ब्

इमरजेंसी वार्ड - भ्ब्

इंसेफेलाइटिस वार्ड - क्00

एनआईसीयू - फ्0

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ब् डॉक्टर के भरोसे क्08 मरीज

बच्चों के बाद सबसे अधिक मरीज फिजीशियन के आते हैं। मेडिकल कॉलेज में विभिन्न बीमारियों से परेशान डेली करीब क्00 से अधिक मरीज कई डॉक्टर्स से दिखाने के बाद आते हैं। जिन्हें मेडिकल कॉलेज में सीनियर फिजीशियन के इलाज की जरूरत होती है। ये मरीज आते तो इसी उद्देश्य के साथ हैं, मगर यहां इलाज शुरू करता है जेआर। सीनियर फिजीशियन राउंड में आने के साथ मरीजों से बीमारी के बारे में पूछना भी जरूरी नहीं समझते। वे सिर्फ जेआर से रिपोर्ट समझ वापस चले जाते हैं। मतलब मरीज का इलाज जेआर ही करता है। मेडिकल कॉलेज में क्8 जेआर है। तीन शिफ्ट के हिसाब से वार्ड में म् जेआर के भरोसे मरीज रहते हैं।

मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन वार्ड

वार्ड नंबर भ् (फीमेल मेडिकल वार्ड) - भ्ब्

वार्ड नंबर 9 (मेल मेडिकल वार्ड) - भ्ब्

ये जेआर करते हैं इलाज

डिपार्टमेंट - जेआर

मेडिसिन - क्8

गाइनकोलॉजी - ख्8

आप्थेलमोलॉजी - 9

आर्थोपिडक सर्जरी - क्भ्

पीडियाट्रिक - क्भ्

सर्जरी - ख्क्

बाक्स-

जेआर-क् करते हैं सिर्फ मदद

पीजी का कोर्स तीन साल का होता है। जिन्हें विभिन्न मेडिकल कॉलेज में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। अधिकांश मेडिकल कॉलेज में पीजी फ‌र्स्ट इयर स्टूडेंट्स को जेआर फ‌र्स्ट, पीजी सेकेंड इयर स्टूडेंट्स को जेआर सेकेंड और पीजी थर्ड इयर स्टूडेंट्स को जेआर थर्ड कहा जाता है। इन जेआर के जिम्मे न सिर्फ वार्ड की होती है बल्कि ओपीडी और इमरजेंसी की भी होती है। जेआर फ‌र्स्ट सिर्फ मदद करने को मौजूद रहते हैं। मतलब जेआर सेकेंड और थर्ड के भरोसे ही मरीजों का पूरा इलाज किया जाता है।

इतने हैं वार्ड

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कुल क्ख् वार्ड है। हर वार्ड में भ्ब् बेड हैं। इसके अलावा मेडिकल कॉलेज में कई और वार्ड हैं।

इमरजेंसी वार्ड - भ्ब्

आईसीयू - 0म्

आईसीसीयू - 0फ्

एनएनयू - फ्0

लेबर रूम - क्भ्

लेप्रोसी वार्ड - 0म्