- 2000 की रहती थी ओपीडी, अब आए केवल 30

- सीएमओ से मिली छह डॉक्टर्स की मदद

- प्राइवेट डॉक्टर्स की ओपीडी में हर रोज आते हैं 15000 से ज्यादा मरीज

- जिला अस्पताल में काली पट्टी बांध कर डॉक्टर्स कर रहे काम

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AGRA। पांच दिन बीत चुके हैं। तीन मौतें हो चुकी हैं, लेकिन कोई भी अपनी मांगों से टस से मस नहीं हो रहा है। मरीज परेशान हो रहे हैं। तीमारदार अपने मरीजों को लेकर इधर से उधर भाग रहे हैं। सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं मिल रहा, तो प्राइवेट में भी डॉक्टर्स नहीं देख कर रहे हैं। ऐसे में मरीजों के पास कोई ऑप्शन ही नहीं बचा है। वे परेशान हो रहे हैं। डॉक्टर्स भी मरीजों की दिक्कत समझ रहे हैं, लेकिन वो चाहते हैं कि शासन उनकी मांगों को जल्द से जल्द पूरा करे।

ओपीडी में सिर्फ 30 मरीज

एसएन मेडिकल कॉलेज की ओपीडी में हर रोज 1500 से 2000 मरीजों की आमद रहती थी, लेकिन पिछले पांच दिनों में यह संख्या शून्य के पास पहुंच गई। पहले के दो दिन तो मरीज बिल्कुल ही नहीं आए, लेकिन अब पिछले दो दिनों से मरीज डरे-सहमे से ओपीडी में पहुंच रहे हैं। अभी भी उनकी संख्या 30 से ज्यादा नहीं है।

सीएमओ ने भेजे छह डॉक्टर्स

मेडिकल कॉलेज के प्रिंसीपल डॉ। अजय अग्रवाल ने जूनियर डॉक्टर्स की हड़ताल की वजह से चरमरा चुकी चिकित्सीय सेवाओं को सुचारू करने के लिए सीएमओ से 12 डॉक्टर्स की मदद मांगी थी। इस पर वेडनसडे को सीएमओ ने उन्हें छह डॉक्टर्स उपलब्ध कराए हैं। इन डॉक्टर्स की ड्यूटी आईसीयू और इमरजेंसी में लगाई गई है, जिससे मरीजों को सही इलाज मिल सके।

खाली हो गया मेडिकल कॉलेज

जिस मेडिकल कॉलेज में हर रोज लगभग 750 मरीज भर्ती रहते थे। जहां मरीजों की संख्या को देखते हुए बैड्स की संख्या बढ़ा दी जाती थी, उसी मेडिकल कॉलेज में हड़ताल के पांचवे दिन यह स्थिति थी कि पूरे मेडिकल कॉलेज में केवल 30 या 40 मरीज ही बचे हैं। बाकी के सारे मरीज यहां से पलायन कर गए हैं।

प्राइवेट ओपीडी भी खाली

आईएमए से जुड़े 2500 डॉक्टर्स भी पिछले पांच दिन से ओपीडी नहीं चला रहे हैं। ऐसे में मरीजों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी में इलाज नहीं मिल रहा और प्राइवेट डॉक्टर्स भी ओपीडी नहीं चला रहे। जानकारों के मुताबिक प्राइवेट डॉक्टर्स के पास भी हर रोज 10 से 15 हजार मरीज ओपीडी में पहुंचते हैं। इस समय यह सारे मरीज भगवान भरोसे ही अपनी बीमारी से लड़ रहे हैं।

फ्री ओपीडी पर भारी गुस्सा

आईएमए की हर मीटिंग में चर्चा होती है कि मरीजों को होने वाली दिक्कत को देखते हुए सभी डॉक्टर्स की तरफ से एक फ्री ओपीडी चला दी जाए, लेकिन कानपुर में हुई घटना का गुस्सा इस चर्चा पर भारी पड़ जाता है। डॉक्टर्स को लगता है कि वो इलाज तो कर देंगे, लेकिन शासन को उनकी अहमियत और उनकी मांगों को भी समझना चाहिए।

पूरे शहर में बांटेगे पैम्फलेट्स

कानपुर में हुई घटना का ठीकरा डॉक्टर्स पर ही फोड़ा जा रहा है। इसी बात का गुस्सा डॉक्टर्स पर हावी है। डॉक्टर्स को ही चोटें लगी हैं। उन पर ही केस दर्ज किए जा रहे हैं। इसलिए अब सिटी के डॉक्टर्स द्वारा पैम्फलेट्स बांटे जा रहे हैं। यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा, जब तक पूरा शहर कानपुर में हुई घटना की सच्चाई को नहीं जान लेगा।

जिला अस्पताल में भी है गुस्सा

ऐसा नहीं है कि कानपुर में हुई घटना का गुस्सा सिर्फ मेडिकल कॉलेज या आईएमए की तरफ से ही जताया जा रहा है। जिला अस्पताल में भी डॉक्टर्स काली पट्टी बांधकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं।

"मुझे इस बात का अफसोस है कि हमारे मेडिकल कॉलेज में मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। मरीज परेशान हो रहे हैं। मेडिकल कॉलेज खाली हो गया है। ओपीडी में भी काफी कम मरीज आ रहे हैं। जल्द ही हमें इसका रास्ता निकालना होगा- डॉ। अजय अग्रवाल, प्रिंसिपल, एसएन मेडिकल कॉलेज

"आईएमए मरीजों की दिक्कत को समझ रही है, लेकिन जनता को डॉक्टर्स पर हुए जुल्मों को भी समझना होगा। डॉक्टर्स भी इंसान हैं। उनके साथ अगर कुछ गलत होता है, तो उन्हें भी गुस्सा आएगा। शासन जल्द से जल्द कोई निर्णय ले, तो हम भी अपने कामों पर लौट जाएंगे- डॉ। संजीव वर्मा, सेक्रेटरी, आईएमए