- हर साल लोगों को झेलना होता है जलजमाव

PATNA: चेन्नई में चार दिनों तक बारिश ने सौ सालों का रिकार्ड तोड़ डाला। चारों ओर हाहाकार मच गया। मात्र चौबीस घंटे में ही क्भ् इंच बारिश हो गई थी। भ्0 लाख लोग प्रभावित हुए और सैकड़ों की जान चली गई। स्कूल, कॉलेज, हॉस्पीटल, ट्रेन, एयरपोर्ट सब कुछ कई दिनों तक थम गया था। इसका प्रभाव आज भी वहां के जनजीवन पर देखा जा रहा है। जानकार बताते हैं कि हालात सामान्य होने में अभी और वक्त लगेंगे। लेकिन इन हालातों को देख और खबरें पढ़कर पटनाइट्स की रूह कांप रही है। पटनावासी इस कल्पना मात्र से सिहर उठते हैं कि अगर चेन्नई की तुलना में आधी फीसदी बारिश भी पटना में हुई तो पटना को जलमग्न होने से कोई नहीं रोक सकता। जबकि, पिछले कुछ वर्षों से पटना में बारिश कम हो रही है। शहरवासियों की यह चिंता इसलिए भी जायज है कि शहर में ड्रेनेज की समस्या इतनी विकराल रूप ले चुकी है कि तमाम कोशिशों के बाद भी हर साल लोगों को जलजमाव झेलना ही होता है।

बारिश हो रही कम, बढ़ती जा रही समस्या

पिछले पंद्रह वर्षों से भी अधिक समय से पटनाइट्स जलजमाव को झेलने पर मजबूर हैं। हर साल निगम और सरकार की ओर से यह भरोसा दिया जाता है कि ऐसी समस्या अगले साल नहीं होगी, लेकिन ऐसा होता नहीं है। अब तो लोग जलजमाव को झेलने को आदि भी हो चुके हैं। कई इलाके लोग यह मानने लगे हैं कि उनके ग्राउंड फ्लोर का बहुत महत्व नहीं है। चार-पांच घंटे की बारिश में भी कई इलाकों में घरों में पानी घुस जाता है। जानकारों की माने तो पिछले सात सालों से लगातार बारिश की मात्रा घटी है। लेकिन जिस तेजी से बारिश की मात्रा घटी है उसी तेजी से जलजमाव भी विकराल हुआ है। बारिश कम तो हुई है लेकिन उसी अनुपात में शहर में अनियमितता भी बढ़ी है। बिना मापदंड के सड़कों का बन जाना, नालों का अतिक्रमण हो जाना भी जलजमाव के प्रमुख कारण माने जा रहे हैं। साथ ही जलजमाव के इलाके के लोगों की माने तो नाले और मेन होल की समय से सफाई का न होना भी इस समस्या का कारण बताते हैं।

इस साल ब्क् प्रतिशत कम हुई है बारिश

इस साल भी अगस्त महीने में बारिश हुई। कई इलाकों में जलजमाव से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। खासकर नाला रोड, आर्यकुमार रोड, दलदली, कंकड़बाग, पाटलीपुत्रा अदि के इलाकों में कई दिनों तक जलजमाव को झेलना पड़ा। जबकि मौसम विभाग की मानें तो इस साल तुलनात्मक रूप से ब्क् प्रतिशत कम बारिश हुई है। इस साल भ्म्0 एमएम बारिश दर्ज की गयी। वहीं बीते साल भी तुलनात्मक रूप से क्7 प्रतिशत कम बारिश पटना में हुई थी। आंकड़ों की मानें तो लगातार पटना में बारिश का प्रतिशत कम होता जा रहा है। बावजूद जलजमाव से मुक्ति नहीं मिल रही है। साल ख्0क्ब् में कम बारिश होने के बाद भी दर्जनों मुहल्लों में हफ्ते भर तक जलजमाव रहा था। कई मुहल्ले में तो ग्राउंड फ्लोर रहने लायक ही नहीं बचा था। गांधी मैदान, राजेंद्र नगर आदि के आसपास के इलाके अधिक दिनों तक प्रभावित रहे थे। निगम के इंजीनियर्स भी इस बात को मानते हैं कि जब पानी नाले से बहेगा नहीं तो घर के आगे ही तो जमेगा।

हाई कोर्ट ने कहा था सबसे गंदी राजधानी

साल ख्0क्ब् में जलजमाव से त्रस्त होकर पटनाइट्स ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। तब जस्टिस वीएन सिन्हा और जस्टिस पीके झा ने कहा था कि पटना देश की सबसे गंदी राजधानी है। यहां लोग धूल, गंदगी और जलजमाव से तंग आ चुके हैं। मामले में हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह से भी जवाब-तलब किया था। उस समय भी मुख्य सचिव ने हाईकोर्ट को आश्वस्त किया था कि इन समस्याओं पर गंभीरता से विचार किया जाएगा और हल निकाला जाएगा। बावजूद इसके लोगों ने साल ख्0क्भ् के जलजमाव को झेला और आगे भी झेलने को अभिशप्त हैं।

ख्ख् दिनों तक जमा रहा गया था पानी

बात साल क्999 की है। भारी बारिश के कारण पूरा पटना परेशान था। कई इलाकों में जलजमाव था। राजेंद्र नगर के लोगों ने बताया कि तब इस मुहल्ले में तब ख्ख् दिनों तक चार फुट पानी जमा रह गया था। इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट की फटकार के बाद पानी निकालने की कोशिश की गयी। सड़कें तोड़कर उसे सीवरेज से मिलाया गया था। लेकिन इतने दिनों बाद भी न तो पब्लिक और न ही व्यवस्था से कोई सीख लेने को तैयार है। सड़कों को बेतरतीब बनना, मानक से ज्याद ऊंची बन जाना आम हो गया है। यह भी जलजमाव के प्रमुख कारण हैं। सड़कें नाले से ऊंची-ऊंची बनाई जा चुकी है। इस कारण ही ग्राउंड फ्लोर में पानी जमा हो जा रहा है। साथ ही नालियों या मेन होल का समय से सफाई न होना भी प्रमुख कारण है।

पटनाइट्स अभिश्प्त हैं जलजमाव को झेलने के लिए। कई सालों से लगातार बारिश कम हुई है। बावजूद इससे वाटर लॉगिंग तो हो ही रही है। इस साल भी बारिश कम हुई लेकिन लोगों की परेशानी कम नहीं हुई।

एके सेन, डायरेक्टर, मौसम विभाग

ध्वस्त ड्रेनेज सिस्टम के भरोसे है पटना। कोई प्लान ही नहीं है। न तो नालों की सफाई समय से होती और न हीं कोई स्थायी उपाय ढूंढा जा रहा है। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट को तो डिपार्टमेंट अपग्रेड करना ही भूल गया है।

एनएस मौर्या, एसोसिएट प्रोफेसर, एनआईटी