रामचंद्र झा की कहानी। वह 15 दिनों से कोमा में हैं। बेबस और लाचार। डॉक्टरों का मानना है कि अगर समय रहते सही इलाज नहीं हुआ, तो उनकी मौत हो सकती है। झा जी सरकारी मुलाजिम हैं। उनकी किडनी खराब हो चुकी है।

'मुझे मौत चाहिए। मैं अब जिंदगी से हार चुका हूं। बेहतर होता मुझे मौत दे दी जाती। जिंदगी से कोई लगाव नहीं रहा। अब मैं और अधिक दिनों तक अपने परिवार वालों पर बोझ बनना नहीं चाहता हूं.' मौत से जूझ रहे स्टेट गवर्नमेंट के इंप्लाई रामचंद्र झा की यह आखिरी आवाज है। फिलहाल वे बोलने की स्थिति में नहीं हैं। पिछले 15 दिनों से वे कोमा में हैं। उनकी आवाज जा चुकी है। State small scale industries Co-operation में सिक्योरिटी गार्ड के रूप में तैनात श्री झा आज पैसे के अभाव में जिंदगी की आखिरी सांसें गिन रहे हैं।

ड्यूटी पर हुए थे बेहोश

छह जून, 2011 को ड्यूटी के दौरान रामचंद्र झा बेहोश होकर गिर पड़े। उन्हें आनन-फानन में श्रीराम नर्सिंग होम में एडमिट कराया गया। उम्मीद थी कि इलाज के लिए डिपार्टमेंट बकाए वेतन का भुगतान जरूर करेगा, लेकिन बहुत कोशिश के बाद केवल पांच हजार रुपए दिए गए। परिणाम हुआ कि श्रीराम नर्सिंग होम से हटा कर उन्हें आईजीआईएमएस में एडमिट कराया गया। रामचंद्र झा पिछले 16 सालों से इस आस में अपनी ड्यूटी कर रहे थे कि एक-न-एक दिन गवर्नमेंट पैसा दे ही देगी, लेकिन वह उम्मीद भी अब टूट गई। छह जून को यह उम्मीद भी खत्म हो गई, जब ड्यूटी के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ गई।

तो कर दिया गया बाहर

पैसा किस तरह किसी की जिंदगी पर बन आता है, यह रामचंद्र झा के मामले में देखने को मिला। पहले श्रीराम नर्सिंग होम ने पैसे के कारण इन्हें बाहर किया। बाद में आईजीआईएमएस ने पैसे के अभाव में बाहर किया और अंत में मकान मालिक ने भी बाहर का रास्ता दिखा दिया। सोर्सेज की मानें तो आईजीआईएमएस में मेडिसीन का खर्च भी नहीं उठा पाने के कारण डॉक्टरों ने 22 जून को यहां से नाम काट दिया। यहां से हटाने के बाद रामचंद्र झा जब चकारम स्थित अपने किराए के मकान में आए, तब मकान मालिक ने कई महीने से रेंट का भुगतान नहीं मिलने के कारण मकान खाली करवा दिया। फिलहाल रामचंद्र झा दरभंगा जिले के हरिपुर गांव में मौत का इंतजार कर रहे हैं।

बकाए में हैं 15 लाख रुपए

झा की गाढ़ी कमाई के 15 लाख रुपए वेतन मद में बाकी है। पिछले 16 सालों से सरकार ने एक रुपया इस मद में भुगतान नहीं किया है। इतनी गंभीर बीमारी की स्थिति में भी महज 10 हजार रुपए का भुगतान किया गया। वो भी पांच-पांच हजार की राशि दो बार में। बिहार स्टेट स्मॉल इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन लिमिटेड इम्पलाइज एसोसिएशन के जेनरल सेक्रेटरी सतन चौधरी ने बताया कि वर्ष 1995 के बाद से श्री झा समेत कुल 125 स्टाफ्स का वेतन बकाया है। इनमें से कई रिटायर कर गए हैं, तो कई लोगों ने पैसे के अभाव में दम तोड़ दिया। फिलहाल 41 स्टाफ्स काम कर रहे हैं। उनमें से मैक्सिमम की हालत कमोबेश रामचंद्र झा जैसी ही है। श्री चौधरी ने कहा कि इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने भी डिपार्टमेंट को कर्मियों के भुगतान का निर्देश दिया है। इसके बाद भी पैसे का भुगतान नहीं किया गया। रामचंद्र झा इसी साल 30 सितंबर को रिटायर कर रहे हैं।

लालू राम ने भी मांगी थी मौत

पिछले दिनों बिहार राज्य चर्मोद्योग निगम के स्टाफ लालू राम ने सीएम और डिप्टी सीएम समेत कई सीनियर ऑफिसर्स से मौत की इजाजत मांगी थी। पैसे की तंगी में परिवार की फटेहाली से उब चुके राम को भी झा की तरह पिछले 15 सालों से बकाया वेतन नहीं मिला है। एसोसिएशन के जेनरल सेक्रेटरी ने कहा कि यदि अगले एक महीने में डिपार्टमेंट ने बकाया वेतन भुगतान की दिशा में कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया, तो कॉरपोरेशन के इंप्लाइज सामूहिक आत्मदाह करेंगे। वहीं बिहार लोक उपक्रम कर्मचारी महासंघ के जेनरल सेक्रेटरी अश्विनी कुमार ने कहा कि कर्मचारी वेतन के अभाव में भूख मर रहे हैं।