यंू कहें कि मैनेज करने में ही सारा फेस्टिवल निकल जाता है। कभी सामान का मैनेज करो तो कभी पैसे का, कहीं टाइम का मैनेज करो तो कभी खरीदारी में मैनेज करो। दशहरा से लेकर दिवाली तक यही हाल रहता है। हमने पटनाइट्स से जाना उनका हाल। इनके अनुसार फेस्टिवल फर्मैलिटी बन कर रह गया है। जैसे-तैसे फेस्टिवल को इंज्वाय करना पड़ता है, लेकिन छठ पर्व का मामला कुछ अलग है। इसमें किसी प्रकार की कटौती संभव नहीं है। आखिर आस्था का सवाल है।

कंप्रोमाइज नहीं कर सकते

दशहरा और दिवाली में तो कटौती कर सकते हैं, लेकिन छठ को मैनेज नहीं किया जा सकता है। आस्था का पर्व छठ पर हर चीज की खरीदारी हर हाल में करनी ही है। यह मानना है मीठापुर की पल्लवी सिंह का। पहली बार छठ करने अपने मायके आईं पल्लवी सिंह ने बताया कि चार दिनों के इस महापर्व में हर चीज की खरीदारी होती है। इसमें हम कोई कंप्रोमाइज नहीं कर सकते हैं। वहीं दशहरा और दिवाली पर हमने खर्च में कटौती करते हुए कई चीजों में मैनेज किया। बच्चों को समझाया और पटाखे भी कम जलाए।

छठ में गुंजाइश कम है

दिवाली पर सजावट से लेकर पटाखे और मिठाई की खरीदारी में भले ही कटौती करनी पड़ी, लेकिन छठ का मामला थोड़ा अलग है। वैसे चाहें तो कटौती कर सकते हैं, लेकिन गुंजाइश कम है। ऐसा मानना है मीठापुर की प्रियंवदा सिंह का। इस संबंध में उन्होंने बताया कि इस बार कद्दू महंगा था। हर साल 2 कद्दू की खरीदारी करती थी। लेकिन इस बार एक ही से काम चलाना पड़ा। वहीं गर्दनीबाग की पूजा सिंह ने बताया कि जो मन्नत वाला चढ़ावा होता है, उसमें कोई कटौती नहीं हो सकती है। बाकी में थोड़ा बहुत कर सकते हैं।

महंगाई पर भारी है छठ

छठ हमारी आस्था और परंपरा से जुड़ा पर्व है। इसका हर कुछ डायरेक्ट भगवान से जुड़ा है। इसमें चाहते हुए भी हम कटौती नहीं कर सकते हैं। एसके नगर की वर्षा सिंह ने बताया कि सालों भर महंगाई से परेशान रहते ही हैं। आजकल हर फेस्टिवल में कुछ ना कुछ कटौती करनी ही पड़ती है। लेकिन छठ में हम कोई कटौती नहीं कर सकते हैं। वहीं एसके नगर की ही चंद्रावती सिंह ने बताया कि छठ हमारी परंपरा है। यह ऐसा पर्व है जो हमारी आस्था से जुड़ा है। इस कारण यह पर्व हर महंगाई पर भारी पड़ता है.

 

बातचीत फोटो है

 
पटाखे में कटौती की

इस बार दिवाली में पटाखे की खरीदारी में काफी कटौती की है। क्योंकि दूसरी चीजों पर कटौती करना थोड़ा मुश्किल था, इस कारण मैंने पटाखे में ही कटौती कर ली।

स्निग्धा प्रसाद, हाउस वाइफ.

 
घर की मिठाई से चलाया काम

इस बार मिठाई की खरीदारी पर मैंने कटौती की है। घर में ही मिठाई बना लिया। इस बार मिठाई के दाम पिछले साल की तुलना में अधिक थे। पटाखे में भी कटौती की है।

उषा झा, हाउस वाइफ.

 
घर का नहीं करवाया पेंट

सोचा था कि घर का पेंट करवाएंगे, लेकिन महंगाई के कारण कैंसिल कर दिया। घर की सजावट में भी कई तरह की कटौती करनी पड़ी। इस बार दिवाली कामचलाऊ रही।

प्रो। निभा, प्रोफेसर, गंगा देवी कॉलेज.

 

यह मैटर फोटो नं 2063 पर लिखाएगा

 
पटाखे कम जलाने को मिले। हर बार 10 से 15 पैकेट मिलते थे। इस बार तीन-चार पैकेट ही मिले।

निशांत प्रताप

 
मम्मी हर बार दो डे्रस दिलवाती थी। इस बार दिवाली और छठ दोनों मिलाकर एक ही डे्रस मिला।

अनुष्का

 
घर की सफाई के लिए दशहरा से दिवाली तक मजदूर रखते थे। इस बार एक हफ्ते के लिए ही मजदूर रखे।

प्रशांत प्रताप

 
दशहरा की छुट्टी पर हमलोग बाहर घूमने जाते थे। इस बार कहीं नहीं गए। घर में ही छुट्टी बिताई।

आदित्य