JAMSHEDPUR: दो खेमों में बंटने की वजह से टेल्को वर्कर्स यूनियन कमजोर हो गया है। इनमें एक खेमा अध्यक्ष-महामंत्री और दूसरा खेमा कार्यकारी अध्यक्ष का है। दोनों ही गुट सत्ता के लिए एक-दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए हैं। भविष्य में किसी मान्यता रहेगी, यह भी अभी तक तय नहीं है। ऐसे में टाटा मोटर्स में कर्मचारियों का वेतन समझौता विवाद की भेंट चढ़ गया है।

वेट एंड वॉच की स्थिति

उधर, टाटा मोटर्स मैनेजमेंट भी अब वेट एंड वॉच की स्थिति में आ गया है। जानकार बता रहे हैं कि टेल्को वर्कर्स यूनियन विवाद में श्रमायुक्त का फैसला आने के बाद ही प्रबंधन ग्रेड रिवीजन में हाथ डालेगा क्योंकि किसी वजह से अगर वर्तमान यूनियन की मान्यता रद हो जाती है तो समझौता भी अमान्य हो जाएगा।

अप्रैल ख्0क्म् से लंबित

टाटा मोटर्स में कर्मचारियों का वेतन पुनरीक्षण पहली अप्रैल ख्0क्म् से ही लंबित चल रहा है। एक साल में टेल्को वर्कर्स यूनियन अध्यक्ष अमलेश कुमार व महामंत्री प्रकाश कुमार के नेतृत्व में वेतन पुनरीक्षण पर प्रबंधन के साथ करीब क्भ् दौर की वार्ता हो चुकी हैं। हर बार वार्ता बेनतीजा ही समाप्त हो जाती है। समझौता कब तक होगा? इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है।

कर्मचारियों में नाराजगी

वेतन समझौते में हो रहे विलंब से कर्मचारियों में आक्रोश बढ़ रहा है। विपक्षी खेमा कमजोर नेतृत्व की दुहाई देकर कर्मचारियों की नाराजगी को हवा देने में लगा है। उसकी मंशा भी ग्रेड कराना नहीं बल्कि सत्ता हासिल करना है। ऐसे में कर्मचारियों को समझ नहीं आ रहा कि किस पर भरोसा करें।

ग्रेड का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों के वेतनमान में समुचित वृद्धि करवाना है। जब तक वेतन वृद्धि पर बात न हो वार्ता को कैसे निर्णायक बनाया जा सकता है। क्फ् महीने से लंबित वेतन पुनरीक्षण से निश्चित रुप से कर्मचारियों का मनोबल गिरा है। विलंब की एक वजह यूनियन में आपसी खींचतान भी है। इसके बावजूद हमें यकीन है कि प्रबंधन और यूनियन मिलकर जल्द ग्रेड समझौता करेंगे।

प्रकाश कुमार, महामंत्री, टेल्को वर्कर्स यूनियन।

वेतन पुनरीक्षण में विलंब के लिए सीधे तौर पर यूनियन नेतृत्व दोषी है। पहली अप्रैल ख्0क्म् को समझौता लंबित हो गया था। इस पर वार्ता शुरू करने के लिए यूनियन ने नवंबर तक प्रबंधन को एक भी पत्र नहीं लिखा। सात माह बाद पत्र भेजा गया। दिसंबर से वार्ता शुरू हुई। इस बीच यूनियन में ही उथल-पुथल शुरू हो गई। क्भ् वार्ता के बाद भी कोई निर्णय नहीं होना अध्यक्ष-महामंत्री की विफलता को दर्शाता है।

संतोष सिंह, प्रवक्ता, तोते खेमा