- स्वास्थ्य विभाग के खिलाफ भी चल रहे तीन केस

- अब भी कई जगह भ्रूण लिंग परीक्षण की आशंका

- सेक्स रेशियो में इजाफा लेकिन अब भी नहीं सामान्य

DEHRADUN : भ्रूण लिंग परीक्षण के आरोप में रुड़की में एक डॉक्टर सहित चार लोगों की गिरफ्तारी के मामले को लेकर उत्तराखंड में प्री कंशेप्शन एंड प्री नेटल डाइग्नोस्टिक टेक्नीक (पीसीपीएनडीटी) एक्ट को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। आश्चर्य तो यह है कि ये गिरफ्तारी उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग ने नहीं, बल्कि हरियाणा से आई टीम ने की है। इससे यह साफ हो गया है कि हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों से लोग भ्रूण लिंग परीक्षण करवाने के लिए उत्तराखंड आ रहे हैं। हालांकि स्वास्थ्य विभाग पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर लगातार नजर रखने और समय-समय पर जरूरी कार्रवाई करने का दावा करता रहा है। इस बीच देहरादून में लिंग अनुपात में पहले की अपेक्षा कुछ बढ़ोत्तरी जरूर दर्शायी गई है, लेकिन अब भी लिंगानुपात सामान्य से कम होना इसी ओर संकेत करता है कि कहीं न कहीं अभी भी भ्रूण लिंग परीक्षण का धंधा जारी है।

21 साल में सिर्फ 5 केस

पीसीपीएनडीटी एक्ट 1996 में पूरे देश में लागू कर दिया गया था। एक्ट के लागू होने के बाद देहरादून में स्वास्थ्य विभाग की ओर से मात्र 5 अल्ट्रासाउंड केन्द्रों के खिलाफ ही अदालत में मुकदमा दर्ज किया जा सका है। इनमें से एक भी मामले में किसी को आज तक जेल की सजा नहीं हो पाई है। एक मामले में अदालत ने आरोपी को दोषमुक्त कर दिया था, जबकि एक अन्य मामले में आरोपी को कागजात दुरुस्त न रखने के लिए 700 रुपये का मामूली जुर्माना लगाकर उसका रजिस्ट्रेशन बहाल कर दिया गया था। बाकी 3 मामले अब भी अदालत में हैं।

तीन मामले विभाग के खिलाफ

इस मामले में तीन केस विभाग के खिलाफ भी चल रहे हैं। विभाग की ओर से योग्यता पूरी न होने के आरोप में 2014 में विकासनगर के तीन डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन रद कर दिया गया था। तीनों डॉक्टरों ने विभाग के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया था और हाईकोर्ट से स्टे भी ले आये थे। मामले अब भी विचाराधीन हैं।

अब तक दर्ज मामले

आरोपी वर्ष स्थिति

डॉ। चित्रा अग्रवाल 2004 दोषमुक्त

डॉ। विनोद चौहान 2004 विचाराधीन

डॉ। प्रमोद त्यागी 2005 700रु। जुर्माना

डॉ। मधु खंडूरी 2005 विचाराधीन

डॉ। सीएल कोहली 2016 विचाराधीन

इस साल 16 मशीनें सील

पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत स्वास्थ्य विभाग अल्ट्रासाउंड मशीनों को सील करने तक ही सीमित है। इस वर्ष अब तक 14 मशीनें सील की गई हैं। इनमें उन सरकारी अस्पतालों की मशीनें भी शामिल हैं, जहां रेडियोलॉजिस्ट नहीं हैं। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड केन्द्रों में लगी सभी पोर्टेबल मशीनें भी सील की गई हैं। पोर्टेबल मशीनें केवल उन अस्पतालों में रखने की इजाजत है, जहां मरीजों को भर्ती किया जाता है। इसके अलावा खराब हो चुकी मशीनों को भी विभाग सील कर देता है।

सील की गई मशीनें

अस्पताल कारण

ओएनजीसी, 3 मशीन रेडियोलॉजिस्ट नहीं

सरकारी मोबाइल वेन ओएमयू साइन नहीं

सेंट मेरी मसूरी पुरानी खराब मशीन

दून अस्पताल, 3 मशीन पुरानी खराब

सीएचसी रायपुर रेडियोलॉजिस्ट नहीं

सीएचसी सहसपुर रेडियोलॉजिस्ट नहीं

विकासनगर, 2 मशीन रेडियोलॉजिस्ट नहीं

डॉ। आशा रावल पोर्टेबल मशीन

डॉ। आरती लूथरा खराब मशीन

डॉ। अर्चना लूथरा खराब मशीन

डॉ। एनके अग्रवाल रिन्यूअल नहीं कराई

लिंगानुपात में बढ़ोत्तरी

इस सब परिस्थितियों के बीच यह एक अच्छी खबर है कि देहरादून जिले में पिछले कुछ सालों में पैदा हुए बच्चों को लिंगानुपात बेहतर हुआ है, हालांकि अभी यह सामान्य से काफी कम है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि देहरादून भू्रण लिंग परीक्षण पूरी तरह बंद होने का दावा नहीं किया जा सकता।

लिंगानुपात एक नजर में

वर्ष लिंगानुपात

2010-11 836

2011-12 653

2012-13 886

2016-17 913

(लिंगानुपात- प्रति हजार लड़कों पर लड़कियां की संख्या, स्रोत - एएमएच एवं एचएमआईएस)

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हम लोग नियमित रूप से पीसीपीएनडीटी के तहत मशीनें सील करने की कार्रवाई करते हैं। देहरादून के इस मामले में फूल प्रूफ होने का दावा नहीं किया जा सकता, लेकिन बिना पुख्ता सबूत के किसी के खिलाफ कार्रवाई भी संभव नहीं है। किसी की मशीन सील करने पर ही कई तरह के दबाव आने लगते हैं।

-डॉ। टीसी पंत, सीएमओ एवं नोडल अधिकारी पीसीपीएनडीटी।