सही हाथ बोले तो गाइडेंस

एक वैज्ञानिक लैब में कुछ प्रयोग करके पेंसिल से फर्मूला लिख रहा था। बगल में रखी दूसरी पेंसिल ने उससे पूछा कि वह क्या लिख रही है? पहली वाली पेंसिल बिजी थी। लेकिन उसके बार-बार पूछने पर उसे बोलना ही पड़ा। बोली कि वह एक महान आविष्कार का फमूर्ला लिखने में व्यस्त है। दूसरी वाली ने पूछा कि क्या मैं भी महान काम कर पाउंगी? इस पर पहली वाली ने कहा कि हर पेंसिल में अच्छे से अच्छे साहित्य या किसी बड़ी उपलब्धि पाने का जरिया उसमें निहित होता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वह किसी अच्छे हाथों में जाए। जैसे एक अच्छे गुरु के गाइडेंस में व्यक्ति अच्छी बातें सीखकर महान बन जाता है।

कड़ा प्रशिक्षण और परिश्रम

लिखते-लिखते पेंसिल घिस गई तो वैज्ञानिक ने शॉर्पनर से उसे तेज किया और कॉपी पर छोड़कर आराम कुर्सी पर टेक ले आंखें बंद कर कुछ सोचने लगा। मौका मिला तो दूसरी वाली पेंसिल ने पहली वाली से पूछा कि शॉर्पनर में तो तुम्हें दर्द बहुत हुआ होगा? इस पर पहली वाली ने कहा कि अपनी कार्यक्षमता बढ़ाने और सक्रिय रहने के लिए लगातार प्रयास करते रहना पड़ता है। इसके लिए बहुत परिश्रम और कुशल प्रशिक्षण की जरूरत पड़ती है। प्रशिक्षण और परिश्रम के दौरान कष्ट तो होता ही है। अब इसकी चिंता करेंगे तो हमारे काम में निखार कैसे आएगा। अब देखना मैं पहले से भी अच्छा लिखने लगूंगी जैसे नई चीज सीख कर किसी के काम में और निखार आ जाता है। हर उस कामयाब व्यक्ति की जीवनी पढ़ो वह कितने कष्ट झेल कर महान बनता है।

गलती सुधारने की गुंजाईश

एकाएक वैज्ञानिक कुछ सोच कर उठा और फार्मूला पढ़ने लगा। वह पहले से लिखी कुछ लाइनों को रबर से मिटाने लगा। साथ ही उसके मुंह से निकला थैंक गॉड टाइम पर याद आ गया नहीं तो इस फर्मूले से तो ब्लास्ट हो जाता। दूसरी वाली पेंसिल ने पूछा कि यह क्या? तुमने गलत लिख दिया देखो उनका काम बिगड़ गया और अनर्थ हो जाता। पहली वाली पेंसिल ने कहा कि अब ठीक भी तो हो जाएगा। हमारी यही तो सबसे अच्छी खासियत है कि हम अपनी गलती सुधारने के लिए हमेशा गुंजाईश रखते हैं। जैसे कोई व्यक्ति बड़ा या महान तभी बन पाता है जब वह अपनी गलतियों को आसानी से स्वीकार करना सीखे और जीवन में उसे दोबारा न होने दे।

बाहरी लकदक नहीं अंदर देखो

तभी वैज्ञानिक टेबल पर पड़ी एक-एक पेंसिल उठा कर एक कागज पर थोड़ा चला कर देखता फिर उसे रखकर दूसरे को उठा लेता। लास्ट में उसने पहली वाली पेंसिल उठाई और उससे करेक्शन करके फिर से आराम कुर्सी पर लेट कर आंखें बंद कर कुछ सोचने लगा। इस बार दूसरी वाली पेंसिल ने उत्सुकता से पूछा कि उन्होंने तुम्हे ही क्यों उठाया जबकि वह चमकीली वाली पेंसिल कितनी सुंदर है। पहली वाली ने कहा कि देखो हमारी खासियत बाहर की लकड़ी नहीं बल्कि अंदर वाली ग्रेफाइट है। वह जितनी अच्छी होगी हमारी लिखावट उतनी ही अच्छी होगी। लकड़ी तो छिल कर उतर ही जाएगी। ठीक ऐसे ही जैसे फैशनेबल कपड़े-लत्ते नहीं किसी इंसान को उसके गुण महान बनाते हैं।