कभी हमारे बेटे यहां बम ब्लास्ट में मरते हैं तो कभी हमारे मवेशी। हमारे घरों की दीवारों में पड़ी दरारें देखकर मन हर समय दु:खी रहता है। पिछले दस सालों में हमारे गांवों का केवल रक्तरंजीत इतिहास हमें रोजाना डराता है.  हमारी अपनी सेना हमारी खून की प्यासी है। और सरकार मौन। बुजुर्ग का ये दर्द लाजिमी भी है। रायपुर में पिछले तीन सालों में ही बम ब्लास्ट में छह मौतें हो चुकी है। ये हादसे बुजुर्ग के दर्द और जज्बात की तस्दीक करती हैं।

 

लालच भी है कारण

रायपुर के मालदेवता गांव के निकट आर्मी की मोर्टार और सेमी आर्टिलरी फायरिंग रेंज स्थित है। फायरिंग रेंज से रायपुर ब्लॉक के केसरवाला, रायपुर, औली, सौड़ा और द्वारा गांव पूरी तरह से प्रभावित होते हैं। इन्हीं गांवों के खेतों में अक्सर मोर्टार और प्रोजक्टाइल मिसाइल बिना डिफ्यूज हुए गिरती हंैं। आबादी वाले इलाके में गिरे स्क्रेप को बच्चे जिज्ञासा पूर्वक उठा लेते हैं। जिसके बाद हदसा होता है। वहीं बम हादसे के पीछे कई बार अद्र्धशास्त्र भी जुड़ा होता है। असल में, मोटार्र और प्रोजक्टाइल के खोल और उसके अंदर काफी मात्रा में पीतल और तांबा होता है। हर बम से निकले पीतल की कीमत बाजार में ढाई सौ से साढ़े चार सौ तक मिलती है। कूड़ा बिनने वाले इसी लालच में आर्मी की फायरिंग रेंज में घुस कर स्क्रेप को उठा लेते हैं और फिर हादसे के शिकार होते हैं।

कांपती है जमीन

इन गांवों में दु:ख महज बेटों को खोने का ही नहीं है। प्रादेशिक प्रधान संगठन के अध्यक्ष और केसरवाला गांव के प्रधान सूरत सिंह नेगी कहते हैं कि गांव में रात को सोना दुभर हो जाता है, क्योंकि आर्मी की फायरिंग देर रात को होती है। जोरदार विस्फोटों से घरों में दरारें पड़ गई हैं और कई बार तो खिड़कियों के शीशे तक चटक जाते हैं। आर्मी की किसी भी यूनिट को जब प्रैक्टिस-बमबारमेंट करना होता है तो उन्हें गांव के प्रधानों से एनओसी लेनी होती है। लेकिन, यहंा ऐसा कुछ नहीं होता।

बना दिया दिल का मरीज

केसरवाला गांव के निवासी टीएस पंवार कहते हैं कि मुझे इन धमाकों ने हार्ट का पेंशट बना दिया है। रात को जब सोता हूं तो बम धमाकों से घबराहट होती है। कॉर्डियोलोजिस्ट ने दो टूक कहा दिया है कि जिंदा रहना है तो पलायन कर जाओ। डर लगा रहता है कि न जाने कब कोई बम घर पर न गिरे। इन बमों के कारण हजारों रुपयों की दवाई हर माह खानी पड़ रही है। पूर्ण ंिसंह मनवाल कहते हैं कि अभी कुछ समय पहले ही घर बनाया था। धमाके इतने तेज होते हैं कि पूरी जमीन कांप जाती है। नए घर में भी दरारें पड़ गई हैं। गुस्सा आता है, लेकिन लड़ें किससे। सरकारी सेवा से रिटायर्ड जगमोहन सिंह नेगी कहते हैं कि लाखों खर्च कर मकान बनाया, लेकिन इन बमों ने इसे दो साल में ही पुराना कर दिया है। हर समय बच्चों के लिए डर लगा रहता है। बच्चे भी खौफ में रहते हैं। गांव के कई बच्चे इस कारण अपाहिज भी हो चुके हैं।

रक्षा मंत्रालय को भी लिखा था पत्र

13 जनवरी 2009 को ऐसे ही एक घटना में तीन कूड़ा बिनने वालों की मौत हो गई थी। तत्कालीन एसएसपी अभिनव कुमार ने इस संबंध में रक्षा मंत्रालय को एक पत्र भी लिखा था। लेकिन, उसके बाद फिर इस और किसी ने ध्यान नहीं दिया। कार्यवाहक एसएसपी अजय जोशी ने बताया कि ऐसा पत्र अगर भेजा गया है तो उसे देखा जाएगा। उसमें क्या कार्रवाई हुई और अगर कहीं रुकी हुई तो उसे गति दी जाएगी।