- एक तरफ नई सड़कों के लिए हो रहा टेंडर, दूसरी तरफ अधूरा छोड़ दिया गया है कई सड़कों का निर्माण

- नगर निगम की बोर्ड की बैठक में भी उठ चुका है दो सड़कों के निर्माण में लापरवाही का मुद्दा

केस-1

बेतियाहाता हनुमान मंदिर के पीछे आवास विकास कॉलोनी के बीच से एक रोड का निर्माण शुरू किया गया था। इसका चयन नगरीय सड़क सुधार योजना में हुआ और एक साल पहले कार्य शुरू हो गया। आठ माह पहले 700 मीटर लंबे इस रास्ते का निर्माण शुरू हुआ। 600 मीटर तो तैयार हो गया लेकिन 100 मीटर रोड पर बड़ी गिट्टी बिछाकर छोड़ दी गई है। पब्लिक ने कई बार शिकायत की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इस समय गर्मी में धूल उड़ने लगी है और वाहन पंक्चर व दुर्घटनाएं होने लगी हैं।

केस-2

रामनगर एरिया की आजाद नगर कॉलोनी की सड़क एक साल पहले बीआरजीएफ योजना में स्वीकृत हुई। लगभग 25 लाख रुपए की लागत से बनने वाली इस सड़क पर ठेकेदार ने बड़ी वाली गिट्टी बिछाकर छोड़ दिया। इसके बाद ठेकेदार का पता नहीं है। पब्लिक नगर आयुक्त के पास कंप्लेंट करने जाती है तो वह केवल आश्वासन देते हैं। जनप्रतिनिधि जब पूछते हैं तो नगर निगम के अधिकारी जिला पंचायत भेजते हैं और जिला पंचायत कहती है कि उसके बाद ऐसी किसी योजना की फाइल नहीं है।

GORAKHPUR: नगर निगम हो या फिर कोई और संस्था, निर्माण कार्यो में इनका नजरिया पब्लिक की सोच से परे है। एक तरफ तो नई सड़कों के निर्माण के लिए टेंडर निकाला जा रहा है और दूसरी तरफ जिन सड़कों के लिए टेंडर निकाले गए थे, उनका कुछ हिस्से तक निर्माण कराकर अधूरा छोड़ दिया गया है। इससे उन एरिया की पब्लिक को खासी दिक्कत हो रही है। शहर में ऐसी एक-दो नहीं, बल्कि दर्जनों रोड हैं जो अधूरी पड़ी हैं और अधिकारी फंड का रोना रो रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ नई रोड को बनवाने के लिए उनके पास फंड कहां से आ रहा, इसका जवाब भी वे नहीं दे पाते।

क्यों नहीं हो रही कार्रवाई?

नगर निगम के कई कार्य अधूरे पड़े हैं। पब्लिक कंप्लेंट कर रही है लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही। जिस तरह से नगर निगम के जिम्मेदारों का पब्लिक के कंप्लेंट पर रिएक्शन है, उससे तो यही लगता है कि खुद विभाग ही ठेकेदारों को बचा रहा है। जिस विभाग व अधिकारी का ठेकेदारों की लापरवाही पर उन्हें दंडित करना चाहिए, वहीं उन्हें बचाने में लगा हुआ है।

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कॉलिंग

बहुत अधिक परेशानी हो रही है। अधिकारी हो या नेता सभी टालमटोल कर रहे हैं। दो-तीन माह में मोहल्ले की कोई भी रोड बन जाती है, लेकिन पब्लिक की कंप्लेंट दूर करने में निगम इंटरेस्ट नहीं ले रहा।

अनुराग गुप्ता, स्टूडेंट

नगर निगम शहरवासियों की सुविधा के लिए कोई गंभीरता नहीं दिखाता है। अगर इंटरेस्ट दिखाता तो यह स्थिति ही नहीं होती। कोई सड़क महीनों या सालों तक ऐसे ही गढ्डे में तब्दील रहती है और निगम के अधिकारी बस आश्वासन ही देते रहते हैं।

श्याम सुंदर तिवारी, सर्विसमैन

पता नहीं नगर निगम विकास का कौन सा फंडा अपनाता है। मोहल्लों की सड़क बनाने के नाम पर गिट्टी बिछाकर छोड़ दे रहे हैं और पब्लिक परेशानी झेल रही है। जिन एरिया में निगम के अधिकारी हैं, वहां फंड कम क्यों नहीं पड़ जाता?

ममता सोनकर, हाइसवाइफ

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