घर जाने की थी जल्दी

सिटी के बटलर प्लाजा में केदारनाथ से लौटकर आने वाले श्रद्धालुओं क ो लेकर आ रही बसों को रोककर यात्रियों के भोजन आदि का अरेंजमेंट किया गया था। ये बसें परिवहन निगम की आपदा राहत सेवा के तहत यात्रियों को उनके नियत स्थान तक पहुंचाने के लिए निशुल्क चलाई गई हैं। जब बसों को रोककर यात्रियों से खाने के लिए कहा गया तो उनका मन अपने खोए साथियों के लिए मायूस था। उन्हें खाने की नहीं, घर पहुंच कर अपनों से मिलने की जल्दी थी। हालांकि, बार-बार कहने पर श्रद्धालुओं ने भरे मन से कुछ खाया।

बसों में छाई है मायूसी

श्रद्धालुओं को लेकर आई बस के कंडक्टर वीरेंद्र कुमार ने बताया कि कहने को तो बस पूरी भरी है और उसमें छोटे बच्चे भी हैं। पर उन्होंने अब तक अपने जीवन में भरी हुई बस में इतनी मायूसी कभी नहीं देखी। एकदम सन्नाटा पसरा हुआ है। उन्होंने देखा कि लोग बैठे-बैठे रोने लगते हैं। कोई किसी से बात नहीं कर रहा है। सबने इस यात्रा में कुछ ना कुछ खोया है। बस सबको अब घर लौटने की ही जल्दी है। रास्ते में कोई बस रोकता भी है तो ये लोग खाने के लिए भी नहीं उतरते हैं। अब भी कुछ लोग बस में ही बैठे हुए हैं।

पत्थर से टकराईं, हाथ में हुआ fracture

बस्ती से आई यशोदा ने बताया कि वह 5 दिन तक भूखी-प्यासी केदारनाथ के जंगल में फंसी रहीं। इस दौरान वह कई बार पत्थर से टकराईं, इसलिए उनके हाथ में फ्रैक्चर भी हो गया है। पर उनके चेहरे पर बाबा केदार के दर्शन लाभ की खुशी जरूर दिखाई दे रही थी, वहीं कुछ साथियों के अब तक ना मिलने की मायूसी भी बार-बार चेहरे पर छा रही थी। कहती हैं, वह कई बार नदी में गिरीं लेकिन फिर खुद को संभाला, फिर पहाड़ पार किए। बीच में लुटेरों ने उनकी गले की चेन भी खींची। मायूस यशोदा को जब खीर खाने को दी गई तो उन्होंने मना कर दिया, उन्हें तो बस घर वालों से मिलने की जल्दी थी।

60 में से बचे केवल 10 श्रद्धालु

गोरखपुर से आईं धनवती ने बताया कि जब वह मंदिर में आए सैलाब के बाद बच गईं तो उन्होंने वापस आने के लिए साथियों की तलाश शुरू की। वह अपने घर से एक पूरी बस करके गईं थीं, जिसमें अब केवल 10 लोग ही बाकी हैं। उन्होंने बताया जब वह वापस लौट रही थीं तो रास्ते में जंगल में कु छ नेपाली लोगों ने यात्रियों को रोककर उनसे लूटपाट कर रहे थे। जो लोग आसानी से उन्हें अपना सामान दे देते थे, उन्हें तो वह निकल जाने देते थे। पर जो लोग आनाकानी करते थे, उन्हें वह पहाड़ी से खाई में फे क दे रहे थे। इतना ही नहीं, उन लोगों के पास एक गत्ते की पेटी बहुत सारे रुपए भी थे। रास्ते में 5 दिन तक उन्हें कुछ भी खाने को नहीं मिला और वह झरने का पानी पीकर ही आगे बढ़ती गईं। कहतीं हैं उन्हें रास्ते में कई बार अहसास हुआ कि वह अब नहीं चल पाएंगी।

सैलाब की भेंट चढ़ गए दो साथी

जौनपुर के जयकिशोर शर्मा यूं तो मुंबई में बिजनेस करते हैं पर पिताजी की मृत्यु की वजह से जौनपुर आए थे। इसी दौरान परिवार के ही 7 लोगों के साथ पिताजी का पिंडदान करने के लिए बद्रीनाथ जाने का प्रोग्राम बना लिया। जयकिशोर ने बताया कि वह जब केदारनाथ में थे, तभी सैलाब आया और सब साथी बिखर गए। अब वह केवल 5 लोग ही वापस आए हैं। साथ वालों के बारे में पूछते ही जयकिशोर की आवाज भारी हो जाती है। आंखों से आंसू बह निकले। इसके बाद तो वह मानो अपने जज्बातों पर काबू ही ना कर पाए हों। उन्होंने बताया कि वह 5 लोग बमुश्किल पहाड़ों को पार करके बेस कैंप तक पहुंचे, वहां तक पहुंचने के लिए भी घोड़े वालों ने उनसे 10 हजार रुपए लिए। अब उनके पास कुछ भी नहीं बचा। यह उनकी छह महीने की कमाई थी। इसके बावजूद पिताजी का पिंडदान भी नहीं हो पाया।

नहीं बख्शी महिलाओं की आबरू

लखनऊ के मलिहाबाद के रहने वाले गोकुल अपने गांव से 20 लोग के साथ केदारनाथ की यात्रा पर गए थे। जब सैलाब आया तो वह मंदिर परिसर के पास ही थे। कहते हैं, तीन मिनट में ही पूरा केदारनाथ मंदिर परिसर मलबे से भर गया। इसी सैलाब में उनके साथी भी बहने लगे, वह चाहकर भी किसी को बचा नहीं पाए। वह एक पत्थर से चिपक कर बच पाए। अब उनके काफिले में 11 लोग ही बचे हैं। उन्होंने बताया कि जब सैलाब शांत हुआ तो वह अपने बचे हुए साथियों के साथ चार दिन तक भूखे रहकर पर्वत पार करते चले गए। इसके  बाद वह बेस कैंप पर पहुंच पाए। पर इन चार दिनों में उन्होंने वहशीपन की हद देखी। गोकुल कहते हैं कि रास्ते में जो भी लाशें पड़ी थीं, कुछ नेपाली लोग उनके  अंग काटकर ले जा रहे थे, ताकि वह गहने रख सकें। उन्होंने अपनी आंखों से महिलाओं का बलात्कार भी होते देखा पर उस समय वह मजबूर थे।