- गांववालों के लिए भगवान से कम नहीं थे सत्येंद्र चौधरी

- साढ़े चार साल से गांव में प्रधान का पद संभाल रहे थे सतेंद्र

- प्रधान की मौत पर हर किसी की आंखे हुई नम

Meerut: दूसरों को जीवन देने वाला आज खुद ही जीवित नहीं रहा, जाने किसकी नजर लग गई हमारे प्रधान को। गांव वालों के मसीहा कहे जाने वाले सतेंद्र की मौत पर आंख नम नजर आई। रामपुर मोती गांव के प्रधान सतेंद्र चौधरी व उनकी धर्मपत्‍‌नी चंद्रकांता की गुरुवार को हत्या हुई तो पूरा गांव शोक में डूब गया। सतेंद्र जो दूसरों को जीवनदान देने में माहिर थे, उनकी मौत पर सभी को बस यही दुख था कि काश कोई तो उनको बचाने वाला होता।

किसी से नहीं करते थे भेदभाव

गांव के लोगों की आंखे बस अपने उसी प्रधान को ढूंढ रही थी, जिसने हंसते मुस्कुराते हुए हरदम उनका ख्याल रखा था। साढ़े चार साल से गांव के प्रधान सतेंद्र ने कभी भी जातिवाद को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया था। गांव का हर बच्चा उनको बेहद प्यार करता था। उनकी मौत की खबर सुनते ही गांव क्या बूढ़ा और क्या जवान हर कोई दौड़ा पहुंच गया। उनकी मौत हुई है यह बात मानने को तो कोई तैयार ही नहीं था। सभी को यही लग रहा था कि शायद अभी उनका प्रधान सतेंद्र और उनकी पत्‍‌नी चंद्रकांता आंखे खोल लेंगे, फिर गांव का हालचाल पूछेंगे। गांव में रहने वाली कलावती ने बताया कि हमारा प्रधान और उनकी पत्‍‌नी दोनों ही गांव का पूरा ख्याल रखते थे। अक्सर गांव से निकलते समय वह गांव के घर-घर का हालचाल पूछते थे। अगर गांव में किसी बच्चे को भी कोई परेशानी होती तो वह बहुत ही सूझबूझ से उसका हल करते। दूसरों की समस्या को वह अपनी ही समझते थे। वह गांव में किसी का हौसला नहीं टूटने देते थे।

महिलाओं की सुरक्षा का ध्यान

गांव के विकास के लिए ही नहीं बल्कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी वह बेहद सतर्क रहते थे। उन्होंने गांव में न केवल विकास कार्य करवाए है। बल्कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी उनकी अक्सर चिंता रहा करती थी। उनकी धर्मपत्‍‌नी चंद्रकांता और सतेंद्र दोनों ही अक्सर गांव में महिलाओं की सुरक्षा का ध्यान रखते थे। गांव के लोगों को हर योजना का लाभ दिलाना, पेंशन बनवाने से लेकर हर कार्य वह करवाया करते थे। गांव में रहने वाली तारा का कहना था कि उन्होंने गांव में गरीबों के लिए नि:शुल्क राशन बांटने और इलाज की भी योजना निकाली थी।

बिना वोट के कर दी प्रधान की घोषणा

गांव में पिछले साढ़े चार साल से प्रधान रहे सतेंद्र चौधरी अगली बार भी प्रधान बनने वाले हैं, इसका भी फैसला हो गया था। गांव के लोगों की संयुक्त सहमति के साथ यह तय कर दिया गया था। गांव निवासी महेंद्र ने बताया कि वह गांव के मसीहा कहे जाते थे।

मेरी बड़ी बहन जैसी थी चंद्रकांता

अपनी जेठानी के बारे में बात करते हुए देवरानी संतोष ने कहा कि चंद्रकांता मेरी भाभी नही बल्कि मेरी दीदी जैसी ही थी। वह मुझे अपनी छोटी बहन ही मानती थी। उन्होंने कभी मुझसे देवरानी जैसा व्यवहार नहीं किया। वह हमेशा मुझे अपनी बहन ही बोलती थी और हमेशा मेरे साथ रहती थी और मेरा ध्यान रखती थी।

बड़ी बहू को बहुत ही दुलार करते थे

बड़ी बहू प्रियंका जो प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं वह सतेंद्र और चंद्रकांता की बहुत ही प्रिय थी। रोते-रोते अपने पिता समान ससुर और मां समान चंद्रकांता को याद करते हुए प्रियंका ने यह बात बताई। उसने बताया कि उन्होंने उसका नाम प्यार से गुडि़या रखा हुआ था। वह उसे अपनी बेटी ही मानते थे और बहुत ज्यादा प्यार करते थे।

दादा को लहूलुहान देखकर सहम गया नन्हा अर्जुन

दादा का दुलारा अर्जुन अपने दादा को खून से लथपथ देखकर बहुत ही घबरा गया था। उसकी मां प्रियंका ने बताया कि छोटा पोता अर्जुन जो कभी दादा की गोद से नहीं उतरता था, आज उसके मन में डर बैठ गया है। अपने दादा को लहूलुहान देखकर वह सुबह से बस यही कह रहा है कि मेरे दादा-दादी बहुत ही डरावने लग रहे थे, मैं अब कभी उनके पास नहीं जाऊंगा। प्रियंका ने रोते हुए कहा कि अर्जुन को क्या पता कि उसके दादा-दादी अब उसके पास होंगे ही नहीं। बहू राजूल ने बताया कि अर्जुन तो अपने दादा-दादी के बिना उठता तक नही था।