-होलिका दहन के लिए बड़े-बुजुर्गो का नहीं निकलता जत्था

-इंटरनेट ने दस वर्षो में बदल दी दुनिया, सीमित हो गए लोग

ALLAHABAD: फागुन का महीना चल रहा है। सोशल मीडिया पर होली के रंग बिखरने लगे हैं। लेकिन हकीकत में देखा जाए तो फागुनी बयार की रंगत जरा फीकी नजर आ रही है। यकीन न आए तो जरा बाजार में निकलकर देखिए, कहीं से आभास नहीं होगा कि सिर्फ छह दिन बाद होलिका दहन है। यूं तो बसंत पंचमी से ही गली-मोहल्लों से लेकर चौराहों तक पर होलिका दहन की तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। इस बार भी शहर में जगह-जगह होलिका दहन की तैयारी की गई है लेकिन उसका स्वरूप बदल गया है।

मोबाइल क्रांति ने किया दूर

-पिछले दस वर्षो में इंटरनेट व मोबाइल क्रांति ने युवाओं को त्योहारों से दूर कर दिया है।

-वन विभाग द्वारा पेड़ काटने पर प्रतिबंध लगा देने के चलते भी होलिका दहन का उत्साह हुआ कम।

-होलिका दहन के लिए मोहल्ले के लोगों को शामिल करने के लिए निमंत्रण देने की परंपरा अब टूटने के कगार पर।

अब तो झटपट होता है दहन

श्री कटरा रामलीला कमेटी के महामंत्री गोपाल बाबू जायसवाल ने बताया कि आठ वर्षो में होलिका दहन की परंपरा में बड़ा बदलाव आया है। पहले हम बुजुर्ग लोगों का जत्था होलिका दहन के लिए पंद्रह दिन पहले से लकड़ी इकट्ठा करता था। दहन के दिन सुबह ही मोहल्ले के सभी लोगों को पूजन व परिक्रमा करने के लिए आमंत्रित किया जाता था। अब वह बात कहीं दिखाई नहीं देती। सुधीर कुमार केसरवानी ने बताया कि अब तो वह दौर आ गया है कि जिस दिन होलिका दहन होता है उसी दिन लकड़ी खरीदी जाती है। जहां देखो ठंडई की जगह मद्यपान का सेवन कर युवाओं की टोली मस्ती करती है। इसकी वजह से सभ्य घरों की महिलाओं ने होलिका दहन से दूरी बना ली है।

परिक्रमा नहीं डिस्को पर होती है मस्ती

बुजुर्गो की मानें तो पहले होलिका मइया का दहन करते समय लोग घेरे की परिक्रमा करते थे। कोई पांच तो कोई सात तो कोई दस बार परिक्रमा करके लकड़ी की राख को घर ले जाता था। लेकिन दस वर्षो में परिक्रमा की जगह डीजे ने ले ली है। श्याम जी पाठक ने बताया कि अब तो जहां होलिका नहीं जलती है वहां पर भी जमकर डीजे बजाया जाता है। इमें फूहड़ता से भरे गीतों पर युवाओं की टोली मस्ती करती है।

कॉलिंग

इंटरनेट ने त्योहारों का महत्व कम कर दिया है। होलिका दहन में जाने के बजाए ज्यादातर युवा मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं।

-गोपाल बाबू जायसवाल

दहन के दौरान अब तो यही देखने को मिलता है कि घरों की महिलाएं व बड़े-बुजुर्ग होलिका मइया का पूजन करने से डरने लगे हैं।

-राकेश चौरसिया

पहले भांग की ठंडई खूब पिलाई जाती थी। अब उसकी जगह अधिकतर लोग होलिका दहन के दिन से ही मद्यपान का सेवन करने लगे हैं।

-रमेश गोस्वामी

अब लोग घेरे की परिक्रमा करना भूल गए हैं। बड़े-बुजुर्गो को होलिका दहन में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं दिया जाता है।

-कन्हैया जायसवाल