ये विचार-विमर्श का विषय रहा है कि चुम्बकीय क्षेत्र के साथ ही अन्य संकेतों की मदद से पक्षी दिशा का निर्धारण किस तरह करते हैं। ये शोध, विज्ञान पत्रिका 'साइंस' में प्रकाशित हुआ है। लेकिन इस सवाल का जबाव नहीं मिला है कि परिंदे चुम्बकीय क्षेत्र को भांपते किस तरह हैं।

अमरीका स्थित बेयलोर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर डेविड डिकमैन और उनके साथियों ने एक प्रयोग किया। उन्होंने कबूतरों को उस जगह रखा जहां उनके आसपास मौजूद चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और क्षमता अलग-अलग थी।

प्रोफेसर डिकमैन और उनकी साथी ली-किंग वू का मानना है कि कबूतर की 53 कोशिकाएं चुम्बकीय क्षेत्र में बदलाव के प्रति संवेदी हैं। उनका कहना है कि चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति व्यवहार के मामले में हर तंत्रिका की अपनी अलग विशेषताएं हैं। लेकिर हर कोशिका उत्तर-दक्षिण दिशा और ऊपर-नीचे की पहचान कर सकती है।

दिशासूचक

कबूतर की ये कोशिकाएं ठीक वैसे ही काम करती हैं जैसे कोई दिशासूचक, दिशाओं की जानकारी देता है। साथ ही ये उड़ान के रास्ते में आने वाली किसी वस्तु की दूरी भी बताती हैं।

प्रोफेसर डिकमैन ने बीबीसी न्यूज को बताया, साइंस पत्रिका में वर्ष 1972 में प्रकाशित एक शोध में कहा गया था कि पक्षी चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति संवेदी नहीं होते लेकिन हमारे शोध से पता चलता है कि परिंदे इसके प्रति संवेदी होते हैं।

कहा जाता है कि पक्षियों की नाक, चोंच या कान के अंदर धातु की मात्रा पाई जाती है जिसकी वजह से वे चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति संवेदी होते हैं।

हाल ही में शोधकर्ताओं ने पाया कि कबूतर की चोंच में एक खास तरह की कोशिकाएं पाई जाती हैं जो दिशासूचक की तरह काम करती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये एक तरह की श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं।

जर्मनी स्थित ओल्डेनबर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनरिक मोरिटसेन, डॉक्टर डिकमैन के शोध के नतीजों को सावधानीपूर्वक देखने की बात कहते हैं।

वे कहते हैं, ''चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति संवेदी कोशिकाओं दिमाग में कई जगह होंगी और डॉक्टर डिकमैन ने संभवत: उन्हें खोज निकाला है। यदि वाकई ऐसा है तो ये एक बहुत महत्वपूर्ण खोज है, लेकिन केवल समय ही ये तय कर सकता है.'' वे कहते हैं, ''इससे मिलते-जुलते कई दावे किए गए हैं और अभी तक इनमें से किसी की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हुई है.''

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