पीके मूवी को लेकर हंगामा अब कुछ शांत हैं। लेकिन इस मूवी से उठे कई सवाल आज भी अनुत्तरित हैं? क्या ये सच नहीं कि हमारे और हमारे ईष्ट के बीच बहुत से ऐसे लोग, ऐसे सेंटर्स और ऐसी दुकानें हैं जो असल में रांग नम्बर हैं? आस्था, विश्वास और अंधविश्वास की बीच बारीक लकीर के बीच कहां-कहां रांग नम्बर लग रहा है इसकी पड़ताल करती ये रिपोर्ट जरूर पढ़े और हमारी इस बहस का हिस्सा भी बनें

ये तो डायरेक्ट 'रॉन्ग नम्बर' है भाई!

'पीके' फिल्म में दूसरे गोले से आया एलियन इस गोले के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता है। जानने की कोशिश करता है तो ऐसा कुछ जान जाता है जिसे हमें जानते हुए भी अनजान बने हुए हैं। फिल्म को लेकर खूब हो हंगामा हुआ लेकिन दूसरे गोले से आए शख्स की बातें कुछ ऐसी हैं जिस पर हर कोई सोचने को मजबूर हो जाए। आखिर क्यों जानिए इस खबर में।

- धर्म, आस्था और विश्वास के बीच अपने आस-पास बहुत है गड़बड़झाला

- कहीं श्रद्धा और विश्वास का केंद्र बना है अतिक्रमण तो कहीं अपना वर्तमान भूल भविष्य बांच रहे लोग

- लोगों को डरा कर भी की जा रही है कमाई, करोड़ों के ऊपर पहुंच चुका है कारोबार

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ङ्कन्क्त्रन्हृन्स्ढ्ढ: हर धर्म इंसान को भाईचारे, ईमानदारी, अनुशासन की सीख देता है। लेकिन धर्म के नाम पर कुछ तो गड़बड़झाला हो रहा है। इसकी आड़ में कहीं न कहीं रॉन्ग नम्बर लगाया जा रहा है। जिसे लोग जान बूझकर समझ नहीं रहे हैं। इस हकीकत को आपके सामने लाने के लिए आई नेक्स्ट रिपोर्ट ने समाज को पीके की नजर से देखने की कोशिश किया है। पेश है रिपोर्ट-

रोड पर है इनका कब्जा

धर्म स्थलों के नाम पर अतिक्रमण आम बात है। रिपोर्टर को सिटी में ढेरों ऐसी जगहें नजर आयीं जहां रोड के बड़े हिस्से में उपासना स्थल का कब्जा है। इसकी वजह से जाम लगता है। हर कोई इसमें फंसकर परेशान होता है। अक्सर जाम में एम्बुलेंस, स्कूल बस भी फंसी नजर आती है। मरीज जिंदगी के लिए जंग करता है तो छोटे बच्चे भूख-प्यास से बिलबिलाते हैं। कई बार तो लोग अपने अवैध निर्माण को किसी कार्रवाई से बचाने के लिए लोग इनका सहारा ले रहे हैं।

पीके का सवाल: क्या धर्म स्थल के नाम पर अतिक्रमण करना सही है। जो लोग अपने फायदे के लिए इनका इस्तेमाल कर रहे हैं क्या वह सही कर रहे हैं?

पहले अपना भाग्य बदले

कड़ी धूप, बरसात और भीषण ठंड में रोड साइड बैठकर ढेरों लोग भविष्य बताते हैं। कोई पांच रुपये में तो कोई 11 रुपये में हाथ की रेखा देखकर भविष्य बताता है। कुछ पक्षियों, जानवरों के सहारे भविष्य बांचने का दावा करते हैं। डर दिखाकर अंगूठी, झाड़-फूंक, समेत ढेरों तरीकों से रुपये बनाता है। कुछ ऐसे लोगों से रिपोर्टर के पूछने पर क्या आपने अपना भविष्य देखा? जवाब किसी ने नहीं दिया। कुछ पंडित जी के साथ तो बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं जिसका पता उन्हें पहले नहीं चल पाया।

पीके के सवाल: भविष्य का डर पर मनोकामना पूरी करने के तरीके बताने वाले अपना भविष्य क्यों नहीं सुधार रहे हैं। ताकि उन्हें दाल रोटी के लिए इस तरह परेशान नहीं होना पड़ता।

जहां चाहा रख दिया

कहीं पेड़ किनारे तो कहीं कूड़ाघर के बगल, पान-गुटखा की दुकान के पास जहां चाहा वहां खुद के निर्माता की प्रतिकृति को रख दिया। लोग इसके आगे शीश नवाते हैं। रुपये-पैसे चढ़ा जाते हैं। वह स्थान आस्था का केन्द्र तो बन जाता है लेकिन इसे बनाने वाले न तो सफाई का इंतजाम करते हैं न कुछ और।

पीके का सवाल: जगह-जगह आस्था का केन्द्र बना देने वालों कि आखिर मंशा क्या है? क्या इस बेअदबी से उन्हें बनाने वाला खुश हो जाएगा?

वह तो डरा रहे हैं

अचानक रिपोर्टर के मोबाइल का मैसेज टोन बजता है। भेजने वाले ने आड़ी-तिरछी कुछ रेखाएं खींच दी है। उसे कुछ गंभीर नाम दे दिया है। लिखता है कि दस लोगों के पास फारवर्ड करो तो शुभ समाचार मिलेगा। इग्नोर किया तो बुरे परिणाम होंगे। वाट्सअप, फेसबुक, सब तो इसी से भरे हैं। टीवी के लगभग हर चैनेल पर यंत्र से लेकर किताब तक बेचने का बड़ा धंधा हो रहा है। जिसमें बताया जाता है इसे लेने पर शुभ और न लेने पर अशुभ होगा।

पीके के सवाल: धर्म के नाम पर धर्म के नाम पर डराना कितना सही है? क्या ऊपरवालाने के इस तरह का अंधविश्वास फैलाने का परमीशन दिया है?

मां की आंचल हो रही मैली

लाख कोई कहे लेकिन पूजा-पाठ का सामान गंगा में डाला जाना है। रिपोर्टर गंगा किनारे पहुंचता है आंखें फट जाती हैं गंदगी देखकर। गंगा किनारे मौजूद होटल, लॉज, घर, मकान, दुकान, फैक्ट्री की गंदगी इसमें आ जा रही है। लोगों को मल-मूत्र तक गंगा में पहुंच रहा है। लोग गंगा को मां कहकर बुलाते हैं लेकिन उसमें वह सबकुछ करते हैं जिससे नदी का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है।

पीके के सवाल: एक ओर लोग अपने घरों की सफाई पर पूरा ध्यान देते हैं। वहीं दूसरी ओर जिस गंगा को सम्मान देते हैं उसके साथ ऐसा बर्ताव क्यों करते हैं?

कमाई करोड़ों में

शहर में घूमते पीके ने देखा धर्म स्थलों के बाहर भारी भीड़ जमा है। जिसके बाद जितना सामर्थ है वह चढ़ावा चढ़ा रहा है। माला-फूल से लेकर इत्र, धूपबत्ती और न जाने क्या-क्या। धर्म स्थल का एक नुमाइंदा रुपयों को सहेज रहा है। अन्य सामान भी उसके पास पहुंच रहा है। थोड़े वक्त में ही हजारों रुपये जमा हो जाते हैं। जो सामग्री जमा होती है उसे वापस दुकानदार को देकर और रुपये इकट्ठा हो जाते हैं। आसानी से अंदाज लगाया जा सकता है कि एक दिन का कमाई हजारों में है पूरे साल की कितनी होगी?

पीके का सवाल: रुपये के साथ अन्य सामग्री का चढ़ावा चढ़ाने के लिए कौन कहता है? कोई खुद वह जिसके नाम पर धर्म स्थल बना है या वह जिन्होंने इसे बनवाया है?

नोट दो नोट

शहर में घूमते पीके को ऐसे लोग नजर आए जिन्होंने अपना रूप कुछ ऐसा बनाया था जिसके प्रति लोग आस्था रखते हैं। वह बर्ताव भी ऐसे करता है जैसे उसके पास अद्भुत शक्ति है। इनमें बच्चे भी शामिल होते हैं। सामने आने वाला इन्हें बिना कुछ दिए आगे नहीं बढ़ सकता है। उस पर भी तुर्रा यह कि सिक्के नहीं नोट दो। जितना नोट दो दोगे उसका कई गुना वापस मिल जाएगा। यह खेल सुबह से लेकर शाम तक चलता रहता है। कभी कहीं तो कभी कहीं।

पीके के सवाल: क्या हर कोई अद्भुत शक्ति वाला हो सकता है? अगर नहीं तो रुपये मांगने का यह कौन सा तरीका है? इसमें बच्चों का इस्तेमाल करना कितना सही है?

पीके की बातों से आप सहमत हैं तो हमें अपनी राय भेजें

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