पेमेंट में उलझे निगम-एजेंसी

पॉवर कॉरपोरेशन ने प्लांट के शुरू होने से अब तक20 लाख रुपए के बिल का नोटिस निगम को थमाया है। इसके साथ ही 7 दिनों के अंदर ही बकाए बिल का पूरा पेमेंट करने को चेताया है। ऐसा न करने पर प्लांट की पॉवर सप्लाई काट दिए जाने की चेतावनी भी दी है। रूल्स के मुताबिक इस बकाए बिल का पेमेंट एजेंसी एकेसी को किया जाना है, लेकिन एजेंसी के हाथ खड़े करने से यह निगम के लिए फांस बन गई है। प्रॉŽलम यह है कि निगम न तो एजेंसी पर पेमेंट के लिए दबाव बनाने की स्थिति में हैं और न ही अकेले इस बोझ को उठाने लायक कंडीशन में हैं।

Efficiency से आधा काम

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बाद प्लांट फिर से शुरू हुआ। इसके बाद बाकरगंज सहित शहर भर के कूड़े को डंप करने के साथ ही उससे कंपोस्ट बनाए जाने की उम्मीद भी जिंदा हो गई। काम शुरू हुआ पर प्लांट अपनी पूरी एफिशिएंसी से काम ना शुरू कर सका। अधिकारियों ने बताया कि निगम के ट्रक डेली करीब 300 मीट्रिक टन कूड़ा प्लांट में डाल रहे हैं, लेकिन एजेंसी बमुश्किल 125 से 140 मीट्रिक टन कूड़े को ही कंपोस्ट बनाने में यूज कर पा रही है। पूरी एफिशिएंसी से काम न होने पर एजेंसी के साथ ही प्लांट की यूटिलिटी पर भी सवाल उठ रहे हैं।

सिर्फ 35 worker available

रजऊ परसपुर में बने इस प्लांट को प्रॉपरली रन करने के लिए एजेंसी के पास शुरू से ही तीन चौथाई से भी ज्यादा स्टाफ की कमी है। निगम के अधिकारियों के मुताबिक प्लांट में 200 कर्मचारियों की जरुरत हैं, लेकिन एजेंसी ने 35 से ज्यादा कर्मचारियों को प्लांट पर अप्वांइट नहीं किया। इससे प्लांट में वर्किंग काफी अफेक्टेड रही। ऐसे में मजबूरन निगम को अपने एक दर्जन से ज्यादा कर्मचारी और मशीनें प्लांट की वर्किंग में लगवानी पड़ी हैं। इसके अलावा इन मशीनों के लिए यूज होने वाले डीजल का खर्च भी निगम उठाता है।

कूड़ा उठाने में भी लाखों की चपत

सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट तक शहर भर का कूड़ा पहुंचाने की जिम्मेदारी एजेंसी की तय की गई थी। तय किया गया था कि निगम शहर का कूड़ा कलेक्ट कर 62 ट्रिपिंग प्वाइंट पर स्टोर कर देगा। जहां से एजेंसी के ट्रक यह अनप्रोसेस्ड कूड़ा प्लांट तक ले जाएंगे, लेकिन एजेंसी ने शुरू से ही ऐसा करने पर अपने हाथ खड़े कर दिए। ऐसे में निगम को ही 62 पुराने और 116 नए ट्रिपिंग प्वांइट्स से अनप्रोसेस्ड कूड़े को उठाना पड़ रहा है। जिसमें हर महीने उसे करीब 18-20 लाख रुपए की चोट लग रही है। वहीं निगम ने अपने खर्च पर उठाए जाने वाले सॉलिड वेस्ट पर 85 रुपए पर टन चार्ज किया, लेकिन एजेंसी ने इसे भी देने से इंकार कर दिया। जिससे निगम को फाइनेशिंयली लॉस उठाना पड़ रहा है।

90% निगम उठा रहा बोझ

कागजों में प्लांट को चलाने में भले ही एंजेंसी मेहनत करती नजर आ रही हो, लेकिन असल में इसका सारा बोझ निगम के कंधों पर ही है। ऑफिशियल्स के मुताबिक प्लांट को रन करने में 90 फीसदी जिम्मेदारी निगम उठा रहा है। प्लांट में मशीनों की मेंटनेंस और न्यू पाट्र्स का खर्च भी कई बार एजेंसी निगम से ही लेती है। वहीं प्लांट में कूड़ा पहुंचाने से लेकर मशीनों को ऑपरेट करने में भी निगम के कर्मचारी जुटे हैं। पूरी एफिशिएंसी और इट्रेस्ट से काम न करने के बावजूद एजेंसी की मनमानी मानना निगम के लिए मजबूरी बना हुआ है।

नुकसान में plant

शहर के कूड़े को प्लांट में प्रोसेस्ड कर उससे कंपोस्ट बनाने और इसको बेचकर मुनाफा कमाने की योजना फिलहाल खटाई में पड़ी है। अपनी शुरुआत से ही प्लांट भारी घाटे को झेल रहा है। प्लांट में बनने वाली कंपोस्ट को शुरू में 1-2 रुपए पर केजी बेचे जाने की योजना थी, पर डिमांड कम होने के कारण इसकी कीमत घटाकर 50 पैसे पर केजी करना पड़ा। वहीं सोर्सेज का कहना है कि तैयार होने वाली कंपोस्ट को अब तक बड़ी मार्केट नहीं मिल सकी है। जिसके आगे भी ऐसी ही कंडीशन बने रहने की आशंका है। ऐसे में अगले 1-2 सालों तक प्लांट के अपनी ऑपरेटिंग कॉस्ट ही वसूल न कर पाने और नुकसान में रहने के आसार है।