- 2010 में कार्यदायी संस्था ने जिला अस्पताल प्रशासन को हैंडओवर की थी बिल्डिंग

- प्लास्टिक सर्जन और स्टाफ के इंतजार में बीत गए आठ साल, देखरेख के अभाव में जर्जर हो गई हालत

GORAKHPUR: जिला अस्पताल प्रशासन कवायदें तो तमाम करता है लेकिन कुछ एक ही हकीकत की जमीन पर उतर पाती हैं। यहां 45 लाख की लागत से बने प्लास्टिक सर्जरी वार्ड का हाल भी कुछ ऐसा ही है। आठ साल पहले अस्पताल प्रशासन को बिल्डिंग हैंडओवर होने के बावजूद अब तक इसे शुरू नहीं कराया जा सका है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वार्ड के लिए मानव संसाधन व उपकरणों की डिमांड भेजी गई था लेकिन आठ साल गुजर जाने के बाद भी न तो प्लास्टिक सर्जन ही मिले और न ही पैरामेडिकल स्टाफ। वहीं इस दौरान मरम्मत के अभाव में पूरी बिल्डिंग जर्जर हो चुकी है। जिसका स्थिति का अंदाजा इसकी छतों के उजड़े प्लास्टर व टूटी खिड़कियों को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है।

सबकुछ सही पर लटक गया वार्ड

ग्रामीण अंचल से लेकर शहर से भी आए दिन जिला अस्पताल में बर्न के अलावा एक्सीडेंटल व सामान्य केस आते रहते हैं। 2008 में शासन स्तर पर जिला अस्पताल में 45 लाख 10 हजार की लागत से प्लास्टिक सर्जरी वार्ड बनाने का फैसला लिया गया। इसके लिए वित्तीय स्वीकृति भी प्रदान कर दी गई। शासन ने कार्यदायी संस्था को पहली किस्त भी जारी कर दी। 29 मार्च 2010 को कार्यदायी संस्था ने बिल्डिंग तैयार कर जिला अस्पताल प्रशासन को हैंडओवर कर दी। बिल्डिंग हैंडओवर होने के बाद जिला अस्पताल प्रशासन ने शासन को वार्ड के लिए कई बार मानव संसाधन व उपकरणों डिमांड भेजी। लेकिन न तो प्लास्टिक सर्जन ही मिले और न ही पैरामेडिकल स्टाफ। तब से आठ साल बीत गए लेकिन वार्ड को चालू नहीं कराया जा सका है।

बनकर रह गया जनरल वार्ड

वार्ड की वर्तमान हालत की बात करें तो देखरेख के अभाव में इसकी स्थिति बेहद दयनीय हो गई है। वार्ड में लगी खिड़कियां टूट कर अलग हो गई हैं। बिल्डिंग की छत व दीवार के प्लास्टर टूट कर गिर रहे हैं। फर्श व रैंप का भी हाल काफी खराब हो गया है। वर्तमान में इस बिल्डिंग में सामान्य मरीजों का इलाज होता है। वहीं, यहां लगाए गए दो एसी भी पूरी तरह खराब हो गए हैं। दीवारों की भी स्थिति खराब है।

हर बार मिलता रहा आश्वासन

जिला अस्पताल एसआईसी डॉ। राज कुमार गुप्ता का कहना है कि वार्ड तैयार होने के बाद से ही जिला अस्पताल प्रशासन ने कई बार मानव संसाधन व उपकरण के लिए शासन को डिमांड भेजी। लेकिन इस प्रपोजल पर अमल नहीं किया जा सका। हर बार सिर्फ जल्द नियुक्ति का आश्वासन ही मिलता रहा।

प्लास्टिक सर्जरी वार्ड में बेड की संख्या - 6

मानव संसाधन के लिए ये भेजी गई थी डिमांड

- प्लास्टिक सर्जन - 1

- मेडिकल ऑफिसर - 2

- एनेस्थिस्टिक - 2

- मर्स - 2

- स्टाफ नर्स - 14

- वार्ड ब्वॉय - 10

- स्वीपर - 6

- काउंसलर - 1

- ओटी अस्सिटेंट - 1

ग्राउंड व फ‌र्स्ट फ्लोर ये थी सुविधा

वार्ड, नर्सिग स्टेशन, लॉबी, रैंप, शौचालय, मेडिकल ऑफिसर रूम, वाश रूम, ऑपरेशन थियेटर, स्टेरलाइजेशन, ड्रेसिंग रूम

बॉक्स

बीआरडी में भी सिर्फ एक प्लास्टिक सर्जन

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में पड़ोसी देश नेपाल, बिहार और गोरखपुर सहित आसपास जिले के हजारों मरीज इलाज के लिए आते हैं। वहीं सबसे ज्यादा बर्न केस भी यहां पहुंचते हैं। लेकिन यहां भी एक ही प्लास्टिक सर्जन होने के चलते बर्न केसेज के ट्रीटमेंट में परेशानी आती है। वहीं जिला अस्पताल में भी बर्न केसेज की संख्या काफी ज्यादा रहती है। यहां पर अभी जनरल सर्जन ही ऐसे केसेज को हैंडल करते हैं। गंभीर केस को केजीएमयू या पीजीआई हायर सेंटर के लिए रेफर कर दिया जाता है।

वर्जन

प्लास्टिक वार्ड की पूरी रिपोर्ट मंगाकर इसकी विस्तृत जानकारी ली जाएगी। बिल्डिंग की मरम्मत व मानव संसाधन के लिए प्रपोजल तैयार कर शासन को भेजा जाएगा।

- डॉ। राज कुमार गुप्ता, एसआईसी जिला अस्पताल