- तीन दिवसीय अवधी नाट्य महोत्सव का आगाज

LUCKNOW: औरतों के साथ जानवरों जैसा सुलूक न किया जाए क्योंकि वो भी इंसान हैं, जो मर्द कर सकते हैं, वो औरत भी कर सकती हैं। उसको भी कंधा से कंधा मिलाकर चलने का हक है। पीवी अमन के लिखे नाटक काह न अबला कर सकै के साथ तीन दिवसीय अवधी नाट्य महोत्सव का आगाज राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में हुआ। इस नाटक की परिकल्पना व निर्देशन अचला बोस ने किया। यह नाट्य महोत्सव वरिष्ठ रंगकर्मी धरम श्री की स्वर्गीय माता व रंगकर्मी डॉ। रुपेश कुमार श्रीवास्तव को समर्पित है।

अनपढ़ से होती है शादी

नाटक काह न अबला कर सकै एक महिला प्रधान नाटक है जिसमें गंगादेवी जो सीधी-साधी और पढ़ी लिखी हैं। उसकी शादी गांव के प्रधान कृपादयाल से हो जाती है जो बहुत ही क्रोधी और अनपढ़ है। गांव के सरपंच की सीट महिला हो जाती है। तब गंगादेवी चुनाव लड़ती है और विजय हो जाती है, मगर कृपादयाल गंगादेवी का बढ़ता कद और उसको मिलने वाला मान सम्मान देखकर नाराज हो जाता है और गुस्से में पत्‍‌नी गंगादेवी से मारपीट करता है।

तब गूंजने लगते हैं नारे

गांव का भुजंग शराबी अपनी पत्‍‌नी को मारता है जिससे उसकी पत्‍‌नी पंचायत में इंसाफ के लिए आती है, लेकिन कृपा मना कर देता है। तब गंगादेवी आगे आकर आवाज उठाती है। उसकी बातें सुनकर लोग शर्मिदा होते है। उसका पति कृपादयाल गंगादेवी से माफी मंागता है और चारों तरफ से गंगादेवी जिंदाबाद के नारे लगते हैं। नाटक में तारिक इकबाल, दीपिका श्रीवास्तव, अशोक लाल, प्रभात कुमार बोस, ऋषभ तिवारी आदि लोगों ने बेहतरीन तरीके से किरदारों को निभाया।