BHU में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने स्टूडेंट्स में भरा जोश

बीएचयू के शताब्दी वर्ष लेक्चर में सुरक्षित बचपन से ही सुरक्षित भारत की रखी नींव

VARANASI

मैदान के अंदर खेल रहा खिलाड़ी ही इतिहास बनाता है। बाहर वाले दर्शक तो तो सिर्फ ताली बजाते हैं। हमें खुद को मैदान के अंदर वाला खिलाड़ी साबित करना है। क्योंकि मेरी नजर में आप ही हीरो हैं। जिसके बाजुओं में समाज को बदलने की ताकत है। यह बातें मंगलवार को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने बीएचयू में कही। वह बीएचयू के शताब्दी वर्ष समारोह की कड़ी में 'सुरक्षित बचपन सुरक्षित भारत विषयक' स्पेशल लेक्चर दे रहे थे। उन्होंने कहा कि विश्व के दस करोड़ बच्चे आज गरीबी, यौन शोषण, भूख, बालश्रम जैसी विसंगतियों से पीडि़त हैं। हमें उनके लिए सोच कर कुछ करना होगा। क्योंकि हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम की है। हम पूरी दुनिया को एक परिवार के रूप में देखते हैं।

ताकि सुरक्षित रहें हमारी बेटियां

लड़कियों के प्रति बढ़ रहे अपराध पर कहा कि यह बहुत ही चिंता का विषय है कि जिस देश में दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी की पूजा होती हैं वहां लड़कियों की खरीद फरोक्त की जाती है। उन्होंने वेश्यावृति, तस्करी आदि रोकने के लिए एंटी ट्रैफिकिंग लॉ बनाने की वकालत की।

पूरब से होगा करुणा का वैश्वीकरण

कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि आज हम ग्लोबलाइज हो गये हैं। ग्लोबलाइजेशन की हवा पश्चिम से पूरब की ओर बही है। पर मुझे जो महसूस होता है कि हमारे युवाओं में जिनमें मैं रियल हीरो देखता हूं वे पूरब से पश्चिम की ओर एक ग्लोबलाइजेशन की हवा बहाने की ताकत रखते हैं। उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी प्रेसिडेंट बिल क्लिंटन और उनकी मुलाकात का एक प्रसंग भी शेयर किया। कहा कि एक बाल मजदूर जिसे कालू जिसे हमने एक कारखाने से आजाद कराया था वह भी मुलाकात के दौरान हमारे साथ था। उसने मुलाकात के दौरान यूएस प्रेसिडेंट से पूछा कि मैं दुनिया का अंतिम व्यक्ति विभिन्न देशों में जाकर लोगों को बाल श्रम के प्रति जागरुक कर रहा हूं पर आप क्या कर रहे हैं। प्रेसिडेंट इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं थे। उसके अगले ही दिन उन्होंने इस मद में खर्च किये जाने वाले अपने बजट में छह गुने की बढोत्तरी कर 18 करोड़ डॉलर कर दिया है।

बीएचयू कैंपस में आती है यज्ञ की सुंगध

उन्होंने बीएचयू को संर्पूण विद्या की राजधानी बनाया। उन्होंने महामना को नमन करते हुए कहा कि 100 साल पहले उस मंत्र दृष्टा ने जब इस देश में अंग्रेजों का राज्य था, इतना बड़ा सपना देखा। कहा कि कैंपस में घुसते ही बाई तरफ महिला महा विद्यालय की स्थापना भी उनकी बड़ी सोच का परिणाम थी। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को पहले बल्कि एक कदम आगे रखा। क्योंकि वह जानते थे कि महिला अगर शिक्षित होगी तभी समाज शिक्षित होगा। कहा कि बीएचयू कैंपस से उन्हें यज्ञ की सुंगध आती है।

चिडि़या बन बुझाइये जंगल की आग

हर हर महादेव और भारत माता की जय के उद्घोष के बीच कैलाश सत्यार्थी ने अपने भाषण के दौरन एक कहानी भी सुनाई। कहा कि एक जंगल में आग लग गयी थी। सारे लोग भाग रहे थे। जंगल का राजा शेर भी भाग रहा था। लेकिन एक चिडि़या थी जो जंगल की ओर जा रही थी। शेर ने उसे देखकर कहा कि कहां जा रही हो उधर जल जाओगी। इस पर चिडि़या ने जवाब दिया कि मैं जंगल में आग बुझाने जा रही हूं। मेरी चोंच में एक बूंद पानी है मेरा प्रयास इसी एक बूंद पानी का है। उन्होंने युवाओं से कहा कि आप को वही चिडि़या बन कर जंगल की इस आग को बुझाने का प्रयास करना है। उन्होंने अपने भाषण का समापन दुश्यंत कुमार की लाइनें पीर पर्वत से हुई है अब पिघलनी चाहिए सुना कर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वीसी प्रो गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने की। आ‌र्ट्स फैकल्टी के डीन प्रो कुमार पंकज व सोशल साइंस फैकल्टी के डीन प्रो मंजीत चतुर्वेदी ने कैलाश सत्यार्थी के जीवन के बारे में बताया। धन्यवाद रजिस्ट्रार डॉ केपी उपाध्याय ने किया।

साढ़े चार दिन के खर्च में पढ़ेगा बचपन

सत्यार्थी ने बताया कि दुनिया में सेना, हथियार आदि पर सालाना 1.6 अरब डॉलर खर्च होता है, जबकि शिक्षा के लिए मात्र 22 बिलियन की ही जरूरत है। कहा कि अगर साल में मात्र चार दिन भी इसपर अंकुश लगा दिया जाए तो उस खर्च से दुनिया के सारे बच्चे पढ़ सकते हैं।

दस करोड़ के लिए दस करोड़

कैलाश सत्यार्थी ने अपने मिशन दस करोड़ के लिए दस करोड़ के बारे में भी मीडिया को बताया। कहा कि पूरी दुनिया में दस करोड़ से अधिक बच्चे किसी न किसी तरह की हिंसा के शिकार हो रहे हैं। मैं उन दस करोड़ बच्चों के लिए दस करोड़ लोगों को खड़ा करने की मुहिम चला रहा हूं। उन्होंने बताया कि विश्व का कोई भी व्यक्ति उनके इस मुहिम में 1000mn.org पर क्लिक कर शामिल हो सकता है।