खिलाडि़यों की पौध में सुविधाओं की खाद डाले सरकार

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PRAYAGRAJ: लोकसभा चुनाव 2019 संपन्न होने के बाद जो नई सरकार या पार्टी केंद्र में सत्तासीन होगी, उससे हर किसी की अनेक अपेक्षाएं हैं. यूथ को रोजगार चाहिए, तो व्यापारी को व्यापार के लिए अच्छा माहौल. खिलाडि़यों की चाहत है कि गवर्नमेंट कुछ ऐसी व्यवस्था करे कि अन्य देशों की तरह अपना भारत भी खेल में इंटरनेशनल लेवल पर अपनी चमक फैलाए. पता नहीं क्यों अब तक की सरकारें खेल और खिलाडि़यों को तरजीह की बात करती हैं, लेकिन सुधार कहीं दिखाई नहीं देती है. शनिवार को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने मिलेनियल्स स्पीक में खिलाडि़यों के साथ चर्चा की. जिसमें कुछ इसी तरह की बातें निकल कर सामने आई.

चाइना से सिर्फ टक्कर लेने की ही बात क्यों

लोकसभा चुनाव में मुद्दों और भविष्य की संभावनाओं पर बातचीत की शुरुआत ही थोड़ा ज्वलंत और आक्रामक मुद्दों के साथ हुई. जिसकी शुरुआत कोच अश्वनी कुमार यादव ने की. उन्होंने कहा कि चाइना से हम टक्कर लेने की बात करते हैं, लेकिन उसके अच्छे और बेहतर तरीकों को हम क्यों नहीं अपनाते. चाइना वर्षो से खिलाडि़यों की पौध तैयार करता चला आ रहा है. वह रूट लेवल पर बच्चे को एडाप्ट करता है. उस बच्चे को 18 साल तक प्रॉपर्ली ट्रेंड किया जाता है. उनके शिक्षा की व्यवस्था की जाती है. इससे खेल में पसीना बहा रहे हमारे देश के खिलाडि़यों को लाभ होगा. माध्यमिक विद्यालयों में खेल के मैदान खत्म हो रहे हैं. बच्चों के लिए मैदान ही नहीं है तो वे खेलेंगे कहां? खेलने का मौका ही नहीं मिलेगा तो प्रतिभाएं आगे कैसे बढ़ेंगी.

सरकार सुविधाएं मुहैया कराए, यहां टैलेंट भरे पड़े हैं

स्पोर्ट्स टीचर व कोच हेमेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि उच्च शिक्षा और ए क्लास रिक्रूटमेंट में मेरिट बेस पर कास्टिज्म खत्म होना चाहिए. खिलाडि़यों के लिए रोजगार श्रृजन होना चाहिए. अच्छे खिलाड़ी जॉब के लिए तरसते रह जाते हैं. खिलाड़ी का इंट्रेस्ट, पैरेंट्स का इंट्रेस्ट, बच्चे का फिजिकल स्ट्रेंथ, फाइनेंशियल स्ट्रेंथ, ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था जरूरी है. सरकार छात्रावास की व्यवस्था करे. टैलेंट भरा पड़ा है यहां, लेकिन कहीं फाइनेंस बीच में आता है, कहीं फ्यूचर बीच में आता है, कहीं इलनेस आ जाती है. जिससे एक अच्छा खिलाड़ी धराशायी हो जाता है.

मैं तो बच्चों से ट्रेनिंग की कोई फीस नहीं लेता. जो सक्षम हैं उन्हें भी कंशेसन दे देता हूं. लेकिन इतने से ही काम चलने वाला नहीं है. बेहतर खिलाड़ी तैयार करने के लिए सुविधाओं का बेहतर होना बेहद जरूरी है. स्पो‌र्ट्स डिपार्टमेंट है लेकिन यहां से खिलाडि़यों को फेसेलिटी नाम मात्र की भी नहीं मिलती. इसे बढ़ाने पर ही टैलेंट दम दिखा पायेगा. हम तो उसी के साथ होंगे जो खिलाडि़यों और खेल की बात करेगा.

ऋषि शर्मा

टेनिस जैसा खेल बहुत महंगा. रैकेट बॉल बहुत महंगी है. एक घंटा अगर प्रॉपर कोई खिलाड़ी खेल रहा है तो 400 से 500 रुपये की बॉल घिस जाती है. स्पो‌र्ट्समैन जो खेल रहे हैं उनके लिए रूट लेवल पर वर्किंग करनी होगी. उन्हें फेसेलिटी देने के लिए एक सिस्टम बनना चाहिए. जो बच्चा डिस्ट्रिक चैम्पियन है, या रनर अप है, उन बच्चों को किसी न किसी संस्था या स्कूल के माध्यम से प्रमोट करना चाहिए.

अश्वनी कुमार यादव

सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है. प्लेयर्स के लिए जॉब की कोई गारंटी नहीं है. ग्राउण्ड लेवल पर ही खेल को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इंटर कॉलेजों में अब ग्राउंड खत्म हो रहे हैं. जहां ग्राउण्ड हैं वहां खेल के प्रशिक्षक नहीं हैं. इससे खिलाड़ी प्रतिभा होने के बाद भी आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं. हमें तो ऐसा राजनीतिज्ञ चाहिये जो खिलाडि़यों के हित के बारे में सोचे और सुविधाएं बढ़ाने पर काम करे.

हेमेंद्र श्रीवास्तव

खिलाडि़यों के साथ बड़ी प्राब्लम यह है कि जैसे तैसे वह नेशनल खेल भी लेता है तो भी उसे रोजगार नहीं मिलता. खिलाडि़यों के सामने बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है. किसानों की तरह खिलाडि़यों को भी आर्थिक मदद दी जानी चाहिए ताकि वह बेहतर जीवन जीने के लिए खेल सके. फेडरेशन में पैसा खत्म न हो जाए, इसलिए खिलाडि़यों का पैसा उनके खाते में डायरेक्ट जाना चाहिए.

आंचल सिंह

अब तक की सरकारों की व्यवस्था बेस तक नहीं पहुंची हैं. स्कूलों में स्पो‌र्ट्स के नाम पर कोरम पूरा किया जाता है. कहने को हर लेवल पर प्रतियोगिताएं होती हैं. ज्यादातर या तो वह ट्रेडिशनल गेम्स तक ही सीमित होती हैं. गेम्स के नाम पर आने वाला फंड स्टेडियम तक ही सीमित हैं. यहां से उन्हीं खिलाडि़यों की मदद होती है जो यहां प्रैक्टिस करते हैं.

रवि प्रकाश मौर्य

कास्टिज्म को खत्म करने की जरूरत है. कास्ट से परसेंटेज को खत्म कर दिया गया है. पूरी मेजॉरिटी को बांट दिया गया है. पहले लोग मेहनत करते थी कि अच्छा परसेंटेज आएगा तो अच्छा रिस्पांस मिलेगा. लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. क्वालिफिकेशन में क्वालिफिकेशन की बात हो. हम तो ऐसे ही दल के साथ जाएंगे तो हमें बांटने की जगह जोड़ने की बात करेगा.

अमित श्रीवास्तव

रिजर्वेशन सिस्टम के थ्रू सब कुछ आता है. टीचर और कोच का सेलेक्शन आरक्षण के मुताबिक हो रहा है. कोटे वालों में 100 परसेंट योग्यता नहीं है, जब वे खुद 100 परसेंट नहीं हैं तो बच्चों को 100 परसेंट वाला कैसे बना पाएंगे. इस पर सभी को गंभीरता से विचार करना चाहिए क्योंकि आप देश के लिए खिलाडि़यों को तैयार करने की बात कर रहे हैं. हम तो उसे ही चुनेंगे जो बात की जगह काम करके दिखाये.

भारतेंद्र त्रिपाठी

मैं कानपुर यूनिवर्सिटी की तीन बार सिल्वर मेड लिस्ट हूं. लॉन टेनिस में कॅरियर बनाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया. इसके बदले में मुझे मिली है एक स्कूल में कोच के रूप में तैनाती. वहां से इतने कम पैसे मिलते हैं कि अपना खर्च चलना मुश्किल है. खेल को आगे कैसे ले जाऊं, इस पर सोचना भी मुश्किल है. खेलों से बेरुखा व्यवहार करने वालों से बात नहीं करेंगे.

अंजली यादव

स्कूलों में साइंस ओलम्पियाड, मैथ ओलम्पियाड के साथ ही करीब-करीब सभी सब्जेक्ट के कम्पटीशन होते रहते हैं. स्पो‌र्ट्स में ऐसा क्यों नहीं होता. छोटा बच्चा आज साइंस ओलम्पियाड में शामिल होता है, तो उसके मन में डॉक्टर बनने या फिर साइंस से जुड़े फिल्ड में अट्रैक्शन बढ़ता है. यह प्रयास स्पो‌र्ट्स के लिए भी होना चाहिए. इससे स्कूल से शुरू होकर नेशनल लेवल तक स्पो‌र्ट्स के लिए माहौल बनेगा. ऐसा रोड मैप देने वाली पार्टी ही हमारी पसंद होगी.

तेजस्व श्रीवास्तव

शहर से ज्यादा प्रतिभाएं गांवों में मौजूद हैं. सोरांव की महिला ने मैराथन में कामयाबी हासिल की है. इंदिरा मैराथन में हंडिया की महिला ने पोजीशन हासिल की. अफसोस यह है कि उसे पुरस्कार दिये जाने के समय राजनीतिज्ञ बड़ी बड़ी बातें करते हैं लेकिन, प्रोग्राम समाप्त होते ही सबकुछ भूल जाते हैं. स्पो‌र्ट्स के साथ पॉलिटिक्स नहीं होनी चाहिए.

सौरभ मौर्या

कड़क मुद्दा

स्पोर्ट्समैन को मिले रेस्पेक्टेबल जॉब

फाइनेंस सबसे बड़ी बाधा है खेल में. अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाडि़यों को प्रमोट करना चाहिए. जॉब सबसे बड़ी समस्या है खिलाडि़यों के लिए. बच्चा अगर मेडिकल की पढ़ाई पढ़ रहा है तो वह सफल होकर डॉक्टर बनेगा. इंजीनियरिंग पढ़ने वाला इंजीनियर बनेगा. लेकिन, नेशनल व इंटरनेशनल लेवल का प्लेयर क्या बनेगा? क्या बनकर रह जाएगा इसकी कोई गारंटी नहीं है. स्पो‌र्ट्समैन को एक रिस्पेक्टेबल जॉब मिलना चाहिए.

मेरी बात

इंटरनेशनल प्लेयर मो. कैफ ने भी नजर फेर ली

कोच हेमेंद्र शर्मा ने बताया कि इंटरनेशनल क्रिकेट प्लेयर मो. कैफ इलाहाबाद के ही रहने वाले हैं. यहां के कई क्रिकेट मैदानों में प्रैक्टिस करके वे आज इंटरनेशनल खिलाड़ी बने हैं. लेकिन, उन्होंने यहां के बच्चों को प्रमोट देने के लिए कुछ नहीं किया, जबकि मैने खुद रिक्वेस्ट की थी आप बच्चों को प्रमोट करने के लिए कुछ करें. उन्होंने मुस्कुरा कर नजर फेर ली, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया.

सतमोला- खाया पिया पचाया

ओलम्पिक खिलाड़ी जीत कर आता है तो उसको करोड़ों रुपये दिए जाते हैं, ये सम्मान गलत नहीं है. लेकिन, खिलाडि़यों की जो पौध आज निकल रही है, उसके लिए हमारे सिस्टम में खाद-पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. जब खिलाडि़यों की पौध में सुविधाओं की खाद नहीं डाली जाएगी तो पौधे ग्रो कैसे करेंगे.

मेरी बात

खिलाड़ी कभी 30 मिनट में तैयार नहीं किया जा सकता है

खेल को बढ़ाने और आगे ले जाने की बात होती है. बड़े-बड़े स्कूलों के प्रिंसिपल और मैनेजमेंट स्पो‌र्ट्स टीचर व कोच को सप्ताह में एक दिन पीरियड देने को तैयार नहीं हैं. एक पीरियड नहीं देते हैं और चाहते हैं कि ओलम्पिक प्लेयर हमारे यहां से निकल जाए. फोर्स फुली एक पीरियड गेम का भी होना चाहिए. स्पो‌र्ट्स को तरजीह न देने की वजह से बच्चों का फिजिकल डेवलपमेंट नहीं हो पा रहा है. खिलाड़ी कभी 30 मिनट में तैयार नहीं किया जा सकता है.

उमेश खरे